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बर्बादी की वजह बनते बीज- जाहिद खान

बीज खेती की बुनियाद है और अच्छे बीज, अच्छी खेती की जमानत। पर ये बीज ही आज किसानों को खून के आंसू रूला रहे हैं। हाल के सालों में ऐसे कई मामले सामने निकलकर आए हैं, जब बीज किसानों की बर्बादी की वजह बने। किसान अधिक पैदावार की लालच में संकर और जीएम बीजों का इस्तेमाल करते हैं और बाद में सिर्फ छले जाते हैं। हैरत की बात यह है कि किसानों की बर्बादी के पीछे सिर्फ बहुराष्ट्रीय कंपनियां ही अकेले जिम्मेदार नहीं हैं, जो किसानों को ऊंचे दामों पर अपने घटिया और प्रयोगात्मक बीज बेच रही हैं, बल्कि हमारे देश की राज्य सरकारें भी हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इशारों पर ये राज्य सरकारें अपने किसानों का भविष्य को दांव पर लगा रही हैं। कोई जांच-अनुसंधान किए बिना राज्य सरकारों ने किसानों के बीच ऐसे बीज बांटे हैं, जिसमें दाना तक नहीं आया। अलबत्ता, पौधे खूब लहलहाए। दाना न आने से पूरी फसल बर्बाद हुई तो हुई, किसान भी कर्ज में डूब गए। परेशान किसान जब बर्बाद फसल के मुआवजे के लिए बीज कंपनियों के पास पहुंचे तो उन्होंने अपने हाथ खड़े कर दिए। सरकारों से भी उन्हें महज आश्वासन मिला। एक तरफ ये घटिया बीज किसानों पर कहर ढा रहे हैं तो दूसरी ओर आज भी हमारे देश में ऐसा कोई सख्त कानून नहीं है, जो नुकसान होने पर इन बीज कंपनियों से किसानों को उचित मुआवजा दिलवा सके। इसी बात का नतीजा है कि दोषसिद्ध होने के बाद भी ये कंपनियां हर बार बच निकलती हैं। पिछले दिनों महाराष्ट्र के धुले और मध्य प्रदेश के खरगौन जिले में किसानों ने बेयरबायो साइंस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी द्वारा उत्पादित कपास के संकर बीजों के कारण फसलों के नुकसान की शिकायत की। जांच के बाद पता चला कि किसानों की शिकायत सही थी। किसानों को 44 लाख 77 हजार 672 रुपये का नुकसान हुआ। बहरहाल, प्रशासन ने कंपनी को निर्देश दिए कि वह किसानों को उनकी फसलों का मुआवजा दे, लेकिन कंपनी इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में चली गई। जाहिर है, अब अदालत के फैसले के बाद ही इन किसानों को अपनी फसलों का मुआवजा मिलेगा या यह भी हो सकता है कि अदालत कंपनी के पक्ष में फैसला सुना दे। बहरहाल, बीज कंपनियों के इस गोरखधंधे में कई बार सरकारें भी शामिल होती हैं। मध्य प्रदेश के अंदर साल 2010 में दलहन की फसल के समय शिवराज सरकार ने पूरे सूबे में किसानों को बीज बांटे। फसल आई तो मालूम चला कि बीज घटिया थे। हजारों हेक्टेयर जमीन पर फसल का एक दाना नहीं निकला। अकेले सागर संभाग के पांच जिलों में 15 हजार हेक्टेयर भूमि से अधिक की फसल बर्बाद हुई। सरकारी सर्वे के ही मुताबिक करीब 40 हजार किसानों की फसलें घटिया बीज के कारण बर्बाद हुई। किसानों की बर्बादी का जिम्मेदार सीधे-सीधे मध्य प्रदेश सरकार का कृषि विभाग था, जिसने पूरे राज्य में खुद बीज बांटे। खैर, किसानों ने जो भुगता, वह भुगता मगर फिर भी दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आश्वासन के मुताबिक न तो किसानों को मुआवजा बंटा और न सरकार किसानों के हक की लड़ाई को खुद लड़ने के दावों को लेकर उपभोक्ता फोरम में गई। किसानों की बर्बादी भी भाषणों और जांच व कार्रवाई के दावों तक सीमित होकर रह गई। किसानों को घटिया बीज वितरित करने वाली कंपनी को बाद में पुलिस ने यह कहकर क्लीनचिट दे दी कि बीज तो असली थे, लेकिन किसान अनाड़ी। बीज 120 दिन में फसल देने वाला था, किसानों ने इसे 90 दिन में ही फसल देने वाला समझ लिया। मध्य प्रदेश की तरह बिहार के किसान भी घटिया बीजों के शिकार हुए। साल 2011 में बिहार सरकार के कृषि विभाग ने किसानों को भारी सब्सिडी देकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के धान के बीज बांटे। बारह सौ रुपये के बीज के एक पैकेट पर सरकार ने किसानों को एक हजार की सब्सिडी दी। किसानों ने भी बड़े उत्साह से अपने खेतों में धान के ये बीज बोए। पौधे लहलहाए तो किसानों के चेहरे खिल उठे, लेकिन उनके चेहरे उस वक्त मुरझा गए, जब उन्होंने मक्के से हरी परतें निकालीं। उन्हें काटो तो खून नहीं। धान में चावल नहीं था। चावल की जगह खंखड़ी निकला। भागलपुर, समस्तीपुर, मुजफ्फरनगर, पटना के दानापुर आदि कई जगहों पर किसान इन घटिया बीजों की वजह से बर्बादी की कगार पर पहंुच गए। कोई 61 हजार एकड़ में मक्का की फसल बर्बाद हो गई। किसानों के साथ धोखा सिर्फ धान के बीजों में ही नहीं हुआ, मूंग के बीजों में भी वे ठगे गए। कृषि विभाग के अफसरों ने किसानों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मूंग के बीज भी मुफ्त बांटे। इस बार बीज के साथ किसानों को खाद, कीटनाशक आदि भी वितरित किया गया, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात। इन पौधों में भी दाने नहीं आए। बिहार के मुजफ्फरनगर, मधुबनी, दरभंगा और बक्सर के किसान आज उस घड़ी को कोस रहे हैं, जब उन्होंने कृषि विभाग और बीज कंपनियों के बहकावे में आकर पारंपरिक बीजों को छोड़ अपने खेतों में उनके उगाए बीजों को डाला। बहरहाल, यहां भी जब मुआवजे की बात आई तो बीज उपलब्ध कराने वाली कंपनी ने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि किसानों ने समय से पहले बीज बो दिया और ठंड की वजह से ऐसा हुआ। बीज की वजह से किसानों की बर्बादी की ये कुछ मिसाल भर हैं। वरना, देश में ऐसी घटनाएं कई जगह और बार-बार दोहराई जा रही हैं। किसान ज्यादा पैदावार की लालच में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के फंदे में आ जाते हैं और जब तक कुछ समझ पाते, बहुत देर हो जाती है। सरकारें, जिनका काम किसानों को इस बहकावे से बचाना है, वे भी कई बार इन कंपनियों के साथ मिली होती हैं। जिसके चलते किसानों को उनकी फसल का मुआवजा भी नहीं मिलता। देश में हाल-फिलहाल ऐसा कोई कानून नहीं, जिससे इन बीज कंपनियों पर हर्जाना भरने के लिए दबाव डाला जा सके।