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बाढ़ और राजनीति का मौसम --- प्रेम कुमार

बाढ़ ने भले ही देश में डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में ले लिया हो या रेडक्रॉस ने भारत, नेपाल और बांग्लादेश में आयी बाढ़ को दक्षिण एशिया में गंभीर मानव संकट करार दिया हो, लेकिन भारत की राजनीति इस बाढ़ से सूखी है. ऐसा लगता है कि देश की राजनीति को कोई फर्क नहीं पड़ता कि अकेले बिहार में 1 करोड़ से ज्यादा लोग, तकरीबन पूरा असम और पूर्वी उत्तर प्रदेश बाढ़ की त्रासदी झेल रहा है. नेता उन कार्यक्रमों में व्यस्त हैं जो उनके राजनीतिक भविष्य को सुखाड़ से बचा सकें. इस क्रम में वे एक-दूसरे की आलोचनाओं की बाढ़ को राजनीति में ज़रूर दावत देते दिख रहे हैं. हां, गुजरात जैसे राज्य में चूंकि चुनाव होने वाले हैं, इसलिए वहां बाढ़ में फंसे लोगों के लिए संवेदना नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी दोनों के दिलों में दिख रही है.

बिहार में बाढ़ और राजनीति
बात बिहार से ही शुरू करें जहां 17 ज़िलों के एक करोड़ से ज्यादा लोग बाढ़ की विभीषिका झेल रहे हैं. भोजन से लेकर पानी का संकट है. मरने वालों का सरकारी आंकड़ा यहां डबल सेंचुरी की ओर बढ़ रहा है. कोसी के डूब क्षेत्र में आने वाले इलाकों के अलावा भी चंपारण जैसे इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. इन बातों से बेख़बर आरजेडी ‘जनादेश अपमान यात्रा' निकालने में जुटी है. शनि, रवि, जन्माष्टमी और स्वतंत्रता दिवस की लगातार चार दिन की छुट्टियों के बाद 16 अगस्त से तेजस्वी यादव ने चंपारण से ही इस यात्रा का आग़ाज़ किया. नाम से ही स्पष्ट है और उन्होंने नीतीश और बीजेपी पर हमला बोला. गांधी के ‘हे राम' और बीजेपी के ‘जय श्री राम' का स्मरण करते हुए नीतीश को धोखेबाज बताया.

बाढ़ के सामने क्यों विवश दिख रही है राजनीति?
खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जरूरत की इस घड़ी में हवाई सर्वेक्षण करने के बाद जेडीयू को एनडीए में जोड़ने की सियासत में जुट गये. जेडीयू के वरिष्ठ नेता शरद यादव का ध्यान अपनी ही पार्टी में ‘जन अदालत' लगाने पर आ टिका. दोनों दलों के समर्थक पटना में एक-दूसरे से मारपीट करने को भी उतारू हो गये. लोकजनशक्ति पार्टी के राम विलास पासवान और केंद्र सरकार में मंत्री उपेंद्र कुशवाहा कहां हैं, बिहार के लोगों को नहीं पता. सुशील मोदी का ध्यान लालू परिवार को सत्ता से उखाड़ने के बाद भी राजनीति में ही फंसा हुआ है. बाढ़ के लिए कोई बेचैनी इन नेताओं में नहीं दिखती. कांग्रेस हो या वामपंथी दल सभी मान बैठे हैं मानो बाढ़ के सामने राजनीति विवश है.


गोरखपुर गये राहुल, बाढ़ पीड़ितों से क्यों रहे दूर?
पूर्वी यूपी के 20 ज़िलों में बाढ़ का कहर है. नेपाल से छोड़े गये पानी से यह क़हर जानलेवा हो गया है. लेकिन, राजनीतिज्ञों को कहां इसकी फिक्र. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज तो पहुंच गये, जहां ऑक्सीजन की कथित कमी की वजह से बच्चों की मौत हुई थी. मगर, सवाल ये है कि क्या मौत की वेदना राहुल को गोरखपुर खींचकर लायी है? अगर, ऐसा होता तो पूर्वी यूपी में बाढ़ के कारण अब तक 40 से ज्यादा लोगों की जानें गयी हैं, उसकी भी वेदना उन्हें होती और वे बाढ़ प्रभावित इलाकों में राहत के साथ मौजूद होते.


गोरखपुर है ‘राजनीतिक बम', बाढ़ क्यों ‘डिफ्यूज बम'?
पूर्वी यूपी में करीब 13 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं, लेकिन राहुल उनकी सुधि लेने नहीं पहुंचे. वजह साफ है गोरखपुर में मौत के लिए राहुल योगी और मोदी सरकार को कोस सकते हैं, उन पर जनविरोधी होने का आरोप लगा सकते हैं लेकिन इसी उत्तर प्रदेश में बाढ़ के कारण मौत पर वे ऐसी राजनीति नहीं कर सकते. गोरखपुर का मुद्दा ‘राजनीतिक बम' है, लेकिन पूर्वी यूपी में बाढ़ राजनीति में ‘डिफ्यूज बम'.

योगी हो या माया-अखिलेश : बाढ़ में नहीं हो दम
दुर्भाग्य यह है कि खुद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी बाढ़ को ‘डिफ्यूज़ बम' की ही तरह ले रहे हैं जो राहुल के गोरखपुर दौरे को ‘पिकनिक' बताकर उनके ही पाले में ऑक्सीजन की कमी वाले ‘राजनीतिक बम' को फोड़ डालने की कोशिश करते दिखे. ‘बाढ़' की ‘राजनीतिक क्षमता' पर उन्हें भी संदेह है अन्यथा वे इस मामले में भी राहुल पर वार जरूर करते. मायावती की तरह जो दलित सियासत करने वाले नेता हैं, उन्हें भी बाढ़ में कोई ‘दम' नहीं दिखता. लिहाजा वह भी बाढ़ पीड़ितों से दूर हैं. समाजवादी अखिलेश भी उतने बाढ़ पीड़ितों के साथ समाजवादी नहीं दिखे तो शायद इसकी वजह यही है कि चुनाव में हार के गम से वे भी नहीं उबर सके हैं.

क्या चीन ने ‘बाढ़ बम' का इस्तेमाल किया?
असम में बाढ़ पर भी राजनीति में कोई बेचैनी नहीं है. अलबत्ता जब मौसम विभाग ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर यह जानकारी देश के सामने रखी कि चीन नदियों की स्थिति को लेकर डेटा साझा करने की संधि का पालन नहीं कर रहा है, तो यह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का मसाला जरूर बनता दिखा. अब यह बात कही जा रही है कि कहीं चीन ने जानबूझकर ‘बाढ़ बम' का इस्तेमाल तो असम में नहीं किया या फिर बिहार और पूर्वी यूपी में बाढ़ के पीछे भी कहीं चीन ही तो नहीं है?

गुजरात में संवेदनशील मुद्दा है बाढ़- पहुंचे मोदी, स्मृति, राहुल भी
ऐसा नहीं है कि बाढ़ के मुद्दे में हमेशा राजनीतिक सुखाड़ ही रहता है. अगर चुनाव नजदीक हो, तो यह मसला भी बहुत संवेदनशील हो जाता है. अब गुजरात को ही लीजिए. यहां चुनाव होने वाले हैं. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी हों या खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सभी बाढ़ का जायजा ले चुके हैं. एक नाव में बैठकर, दूसरे हवाई जहाज से. इसी तरह कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी गुजरात में बाढ़ पीड़ितों के आंसू पोंछने पहुंच गये. अगर आपको याद हो, तो जब कश्मीर में बाढ़ आयी थी, तब भी वहां विधानसभा चुनाव में बहुत कम समय रह गया था. उस बाढ़ में केंद्र सरकार ने जो आम नागरिकों की मदद की, उसे चुनाव सभाओं में बीजेपी ने खूब भुनाया.

शाह, मोदी, लालू, अखिलेश, शरद, नीतीश सब राजनीति में व्यस्त
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का फोकस भी मध्यप्रदेश है जहां तीन दिवसीय दौरा कर वे चुनाव की रणनीति बनाने में व्यस्त हैं. उन्हें भी बाढ़ प्रभावित इलाकों, जहां चुनाव नहीं होने वाले हैं, वहां जाने की फुर्सत नहीं मिली या जरूरत नहीं महसूस हुई. खुद पीएम नरेंद्र मोदी राजस्थान में 29 अगस्त से ‘मिशन राजस्थान' शुरू करने जा रहे हैं, जबकि बिहार में 27 अगस्त को लालू प्रसाद, अखिलेश यादव, मायावती, शरद यादव, राहुल गांधी, एचडी देवगौड़ा 2019 के चुनाव की तैयारी के सिलसिले में ताकत का प्रदर्शन करने में जुटे हैं.
(21 साल से प्रिंट व टीवी पत्रकारिता में सक्रिय, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन prempu.kumar@gmail.com )