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बाप के होते भी बेसहारा बच्चे

मुजफ्फरपुर [जाटी]। उत्तर बिहार में बाल श्रमिक उन्मूलन के लिए हवा में ही तलवारबाजियां हो रही हैं। रोज नए-नए दावे किए जाते हैं, लेकिन यहां के हर जिले में उन बच्चों की बड़ी तादाद है, जो बाप के होते भी बेसहारा हैं और बाल मजदूरी करने को विवश हैं। उन्मूलन के लिए सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर हो रहे प्रयासों का कोई सार्थक नतीजा नहीं निकल पा रहा है।

शहरों के होटलों, ढाबों, गैराजों की एक जैसी तस्वीर है। बच्चे पकड़े जाते हैं, फिर छोड़ दिए जाते हैं और आर्थिक तंगी के शिकार उनके माता-पिता फिर उन्हें बना देते हैं कमाऊ पूत। इसे आप अभिशाप कह लीजिए या फिर सामाजिक कलंक। सच तो यह है कि बाल मजदूर अपनी जिंदगी से ही मजबूर हैं।

कहने को तो बेतिया जिले में कार्यरत धावा दल ने वर्ष 2009-10 में 21 बाल श्रमिकों को मुक्त कराकर उनके अभिभावकों को सिपुर्द कर चुका है। श्रम अधीक्षक जयंत कुमार की मानें तो धावा दल की ओर से बाल श्रम उन्मूलन की दिशा में उठाए गए कदम कारगर हो रहे हैं, लेकिन, होटलों-ढाबों में आज भी बाल मजदूर काम करते देखे जा सकते हैं।

बगहा में बाल मजदूरी से मुक्त कराए जाने वाले बच्चे फिर उसी दलदल में जा फंसते हैं। यहां भी सरकारी स्तर पर कभी-कभार पकड़ने, छुड़ाने और अभिभावक को सौंपे जाने का खेल चलता रहता है। कुछ ऐसा ही हाल मोतिहारी जिले का है। बाल मजदूरी रोकने के लिए किए जा रहे सभी प्रयास यहां निरर्थक साबित हो रहे हैं। श्रम विभाग द्वारा यहां गठित धावा दल की गतिविधियां सिर्फ फाइलों तक ही सीमित है। मधुबनी जिले में भी बाल मजदूरी रोक पाने में श्रम विभाग पूरी तरह विफल है। जिले में श्रम अधीक्षक का पद प्रभार में चल रहा है। वर्षो से यह स्थिति है। वे दरभंगा में सहायक श्रमायुक्त के पद पर भी कार्यरत हैं। समयाभाव के कारण मधुबनी में पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं। जिले में बाल श्रमिकों को पकड़ने के लिए बाकायदा धावा दल गठित है, लेकिन जिला श्रम कार्यालय के आसपास के होटलों में बाल मजदूर काम करते नजर आ जाएंगे।

गत वित्तीय वर्ष 2009-10 में मुक्त कराए गए दो बाल मजदूरों को पुनर्वास के लिए 20-20 हजार रुपये दिए गए। पुनर्वास से संबंधित अन्य योजनाओं का लाभ मुक्त मजदूरों को समय पर नहीं मिल पाता है।

समस्तीपुर में वर्ष 09-10 में बंधुआ मजदूरी उन्मूलन के लिए श्रम विभाग ने अब तक 295 मर्तबा विभिन्न होटलों, ढाबों आदि का निरीक्षण किया है। श्रम अधीक्षक ने इस दौरान विभिन्न स्थानों से 19 बाल श्रमिकों को मुक्त भी करवाया। वहीं बंधुआ मजदूर पुनर्वास योजना के तहत जिले में 10 हजार रुपये की दर से सात मजदूरों को 70 हजार अनुदान की राशि दी गई। जबकि, दरभंगा जिले में प्रशासन व श्रम विभाग के कड़े कानून के बावजूद होटलों, ढाबों व घरों में काम करते हुए छोटे-छोटे बच्चे को देखा जा सकता है। हालांकि, इसे रोकने के लिए कभी-कभी विभाग द्वारा अभियान चलाया जाता है। कुछ बच्चे पकड़े भी जाते हैं, लेकिन चेतावनी देकर अधिकतर को छोड़ दिया जाता है।

सहायक श्रमायुक्त गोविंदजी का कहना है कि अप्रैल माह में 31 बाल श्रमिक के रूप में कार्य कर रहे बच्चों को मुक्त कराया गया। सभी को हायाघाट उन्नयन केंद्र में रखने के बाद उनके अभिभावकों को सौंपा गया। प्रशासन की उदासीनता के कारण पुनर्वास में परेशानी हो रही है।

साल भर में छह जिलों से 273 बच्चे ही मुक्त

मो. शमशाद [मुजफ्फरपुर]। आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल 2009 से मार्च 2010 तक तिरहुत प्रमंडल के मुजफ्फरपुर, वैशाली, सीतामढ़ी, मोतिहारी, बेतिया व शिवहर जिले से मात्र 273 बाल मजदूर ही बालश्रम की दलदल से निकल सके। इसमें से 119 मालिकों के विरुद्ध अभियोजन व 56 के विरुद्ध नीलामवाद दायर किया गया। इन जिलों में 1439 दुकानों की जांच हुई। मुजफ्फरपुर में 2081 दुकानों की जांच में 57 बाल मजदूरी के मामले मिले। श्रम विभाग ने 42 मालिकों के विरुद्ध अभियोजन दायर किया।

गौरतलब है कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम कराने वाले मालिकों से प्रति बच्चा बीस हजार रुपये जुर्माना व बाल श्रम अधिनियम के तहत केस का प्रावधान है। राशि जमा नहीं करने पर नीलामवाद द्वारा राशि वसूली होती है।