Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/बापू-के-नाम-एक-चिट्ठी-योगेन्द्र-यादव-11923.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | बापू के नाम एक चिट्ठी-- योगेन्द्र यादव | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

बापू के नाम एक चिट्ठी-- योगेन्द्र यादव

बापू, आपको यह चिठ्ठी मैं आपके जन्मदिन पर आपके ही आश्रम से लिख रहा हूं. 100 साल पहले चंपारण सत्याग्रह के केंद्र के रूप में आपने भीतरवाह में यह केंद्र बनाया था. आश्रम की इमारत अब भी कायम है. अब भी उसे कंक्रीट और संगमरमर से ढका नहीं गया है. आश्रम की काया में आपकी सादगी आज भी झलकती है.

चंपारण सत्याग्रह की याद में बना संग्रहालय दरिद्र, बेतरतीब और अनमना सा है. आपकी मूर्ति में तो जान है, पर और किसी चीज में नहीं. लेकिन, शायद आपको बुरा नहीं लगता. तो भला मैं उस पर आपत्ति करनेवाला कौन हुआ ?


आश्रम की काया तो बची है, लेकिन आश्रम की आत्मा के बारे में कहना मुश्किल है. सुना है पिछले साल आपके जन्मदिन पर यहां खूब सरकारी तामझाम था. सरकार ने एक गांधी बहुरूपिया छोड़ा था, तो विपक्ष ने दूसरा. इस बार सरकार नदारद थी, पर कलेक्टर साहब आनेवाले थे. आश्रम में रश्मी प्रार्थना चल रही थी. माहौल कुछ थका और बुझा हुआ सा था.


सत्याग्रह की आत्मा आश्रम की चारदीवारी के बाहर जिंदा थी. वहां एक स्थानीय मुद्दे को लेकर अनशन चल रहा था. वहीं लोक संघर्ष समिति के पंकज जी से मुलाकात हुई, जो हजारों पट्टाधारी भूमिहीनों को उनकी जमीन का कब्जा दिलाने के लिए अहिंसक संघर्ष कर रहे हैं. मुझे लगा कि अगर आप होते, तो किसी औपचारिक समारोह में शामिल होने के बजाय जरूर भूमिहीनों के इस संघर्ष में शरीक होते.


वहीं बाहर ही देश भर के किसान आंदोलनों का शामियाना भी लगा था. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले हम लोग किसान मुक्ति यात्रा का आगाज कर रहे थे. चंपारण सत्याग्रह के दौरान भारत के किसान की दशा पर कही आपकी बात को याद कर रहे थे. आपने कहा था नील की खेती करनेवाला किसान बंधुआ है. वहां बैठे मैं सोचने लगा कि क्या चंपारण का किसान आज भी बंधुआ नहीं है? क्या भारत का किसान आज गुलाम नहीं है?


चंपारण का किसान कहता कि 'निलहे गये मिलहे आये' यानि कि नील के जमींदार तो चले गये, लेकिन उनकी जगह चीनी के मिल की जमींदारी ने ले ली. आज भी चंपारण में बड़ी जोत एकड़ में नहीं किमी में नापी जाती है. राजे-रजवाड़े और कंपनियों के पास कई किमी जमीन है. आज भी जमीन जोतनेवाले लाखों परिवार जमीन की मिल्कियत से वंचित हैं. गन्ना उगानेवाला किसान चीनी मिल से बंधा हुआ है. किसान अब भी बंधुआ ही है- नील की जगह चीनी, जमींदार की जगह मिल और अंग्रेजों की जगह चुनी हुई सरकार ने ले ली है.


बापू, यह पूरे देश के किसान की कहानी है. भारत का किसान गुलाम है ऐसी अर्थव्यवस्था का, जिसे न वह समझता है और न जिस पर उसका कोई नियंत्रण है. वह गुलाम है ऐसी व्यवस्था का, जिसमें उसके फसल के दाम तो बढ़ते नहीं, लेकिन लागत और घर खर्च बेतहाशा बढ़ रहे हैं. किसानी घाटे का धंधा है, फिर भी किसान इसी लकीर को पीटने के लिए अभिशप्त है. किसान गुलाम है बैंक और साहूकार का, जिसके कर्ज में वह डूबा है. आपके जमाने में कहते थे किसान कर्ज में पैदा होता है, कर्ज में जीता है और कर्ज में ही मर जाता है. आज भी वही स्थिति है- बस कर्ज की राशि बढ़ गयी है और साहूकार की जगह बैंक ने ले ली है. आपके जमाने में लगान और कर्ज से सताये गुलाम विद्रोह कर देते थे, आज का गुलाम किसान आत्महत्या कर रहा है.


आज का किसान गुलाम है आधुनिक खेती का. पिछले 70 साल में उसे पाठ पढ़ा दिया गया है कि उसे अपने पुरखों की खेती छोड़ कर नयी फसल, संकरित बीज, रासायनिक खाद, जहरीले कीटनाशक, और पंप से निकला बेतहासा पानी लगाना होगा. शुरू के सालों में कुछ कमाई का लालच किसान को इस नयी खेती में खींच लेता है. फिर न उसका बीज, न उसका ज्ञान, न उसकी खाद, न उसकी फसल. कुछ साल में आमदनी घट जाती है, कुएं सूख जाते हैं, नयी लाइलाज बीमारियां लग जाती हैं, लेकिन गुलामी नहीं छूटती है. इस मायने में तो आजादी के बाद किसान और ज्यादा गुलाम हो गया है.


किसान गुलाम है अपनी ही चुनी हुई सरकारों का. कहने को देश में लोकतंत्र है, लोकतंत्र में बहुमत की सरकार है और किसान बहुमत में है. लेकिन, इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसान की हैसियत एक नौकर से ज्यादा नहीं है. पटवारी के सामने हाथ जोड़ता, तहसील में जूतियां घिसता, बैंक मैनेजर के दरवाजे से दुत्कारा जाता ये किसान आज भी नागरिक नहीं प्रजा है. तीन सौ से अधिक सांसद अपने को किसान की संतान बताते हैं, लेकिन किसान इस व्यस्था में हर कानून और नीति में सबसे अंत में आता है. हर सरकार के पास कंपनियों के लिए मलाई है और किसान के लिए खुरचन, उद्योग के लिए पैसा है किसान के लिए जुमले. अपने आप को किसान की संतान घोषित करनेवाले मंत्री अंतरराष्ट्रीय व्यापार के सौदों में किसान का हित बेचकर चले आते हैं, लेकिन कोई पूछनेवाला भी नहीं है.


बापू, किसान को इसी गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए आपने चंपारण सत्याग्रह किया था. आज किसान को इस नयी गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए कैसा सत्याग्रह करें? इतना तो स्पष्ट है कि यह सत्याग्रह किसी बनी बनायी लीक पर नहीं चल सकता. इस सत्याग्रह का रास्ता सतत संघर्ष और नूतन प्रयोग से तय होगा. पिछले तीन महीनों में देश के तेरह राज्यों में किसान मुक्ति यात्रा में किसानों के साथ घूम कर इतना तो समझ आया है कि किसान एक बार फिर स्वराज के संघर्ष के लिए तैयार है. आगामी 20 नवंबर को देशभर के किसान दिल्ली पहुंचकर एक नये सत्याग्रह का उद्घोष करेंगे. आप वहां रहेंगे न बापू?


आश्रम से जाते वक्त मेरी निगाह आपके तीन बंदरों की मूर्ति पर पड़ी. मुझे लगा कि आप उनके साथ एक चौथा बंदर भी बैठाने को कह रहे हैं. 'बुरा मत देखो' 'बुरा मत सुनो' 'बुरा मत कहो' के साथ-साथ 'बुरा मत सहो' का एक चौथा बंदर भी बैठा हुआ है. उसका हाथ उठा हुआ है और मुठ्ठी बंद है.


प्रो योगेंद्र यादव
राष्ट्रीय अध्यक्ष, स्वराज इंडिया
yogendra.yadav@gmail.com