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'बाल-मजदूरी के खात्मे तक करूंगा संघर्ष'- कैलाश सत्यार्थी

नई दिल्‍ली। शुक्रवार दोपहर करीब दो बजे 'बचपन बचाओ आंदोलन' के संस्‍थापक कैलाश सत्‍यार्थी को वर्ष 2014 का शांति के लिए नोबेल पुरस्‍कार मिलने की उनके स्‍टाफ ने जानकारी दी, तो पहले उन्‍हें विश्‍वास ही नहीं हुआ। फिर अचानक उनके मुंह से निकला, ‘नोबेल पुरस्‍कार'। ये वो पल थे, जब उनकी अांखें पहली बार नम देखी गईं। इससे पहले उनके स्‍टाफ या परिवार के लोगों ने उन्‍हें इतना भावुक नहीं देखा था।

इस प्रतिष्ठित पुरस्‍कार के लिए कैलाश सत्‍यार्थी के नाम की घोषणा होने के बाद वे एकाएक राष्‍ट्रीय-अंतरराष्‍ट्रीय मीडिया की सुर्खियों के केंद्र में आ गए। कालका जी के एल ब्‍लॉक स्थित उनके दफ्तर में कुछ देर बाद ही हालात ये हो गए कि पूरा इलाका मीडिया और लोगों की भीड़ से जाम हो गया। यही नहीं, 'बचपन बचाओ आंदोलन' की वेबसाइट पर भी इतना ट्रैफिक आया कि वह क्रैश तक हो गई।

1980 से अब तक 82, 625 बच्‍चों को बाल मजदूरी के दंश से छुटकारा दिलाने वाले कैलाश सत्‍यार्थी का मानना है कि अब उनकी जिम्‍मेदारी और बढ़ गई है। वह इसे दुनिया भर के करोड़ों बच्‍चों का सम्‍मान मान रहे हैं। तमाम व्‍यस्‍तताओं के बीच कैलाश सत्‍यार्थी ने dainikbhaskar.com से विशेष बातचीत की। पढ़िए कुछ अंश-

प्रश्‍न: आपको शांति के लिए पाकिस्तानी लड़की मलाला के साथ नोबेल पुरस्कार मिला है। कैसे देखते हैं इसे?
कैलाश सत्यार्थी: यह मेरा नहीं, बल्कि उन करोड़ों बच्‍चों का सम्‍मान है, जिन्हें समाज की मुख्‍य धारा में अब तक कोई पहचान नहीं मिली। जिन्‍हें उनके अधिकार और उनकी आजादी नहीं मिली। आज भी दुनिया भर में करोड़ों बाल श्रमिक हैं। लिहाजा, यह सम्मान उन तमाम सभी बच्चों का है। मैं इस सम्मान को पूरे देश के गर्व के साथ जोड़ कर देखता हूं।

नई दिल्‍ली। शुक्रवार दोपहर करीब दो बजे 'बचपन बचाओ आंदोलन' के संस्‍थापक कैलाश सत्‍यार्थी को वर्ष 2014 का शांति के लिए नोबेल पुरस्‍कार मिलने की उनके स्‍टाफ ने जानकारी दी, तो पहले उन्‍हें विश्‍वास ही नहीं हुआ। फिर अचानक उनके मुंह से निकला, ‘नोबेल पुरस्‍कार'। ये वो पल थे, जब उनकी अांखें पहली बार नम देखी गईं। इससे पहले उनके स्‍टाफ या परिवार के लोगों ने उन्‍हें इतना भावुक नहीं देखा था।

इस प्रतिष्ठित पुरस्‍कार के लिए कैलाश सत्‍यार्थी के नाम की घोषणा होने के बाद वे एकाएक राष्‍ट्रीय-अंतरराष्‍ट्रीय मीडिया की सुर्खियों के केंद्र में आ गए। कालका जी के एल ब्‍लॉक स्थित उनके दफ्तर में कुछ देर बाद ही हालात ये हो गए कि पूरा इलाका मीडिया और लोगों की भीड़ से जाम हो गया। यही नहीं, 'बचपन बचाओ आंदोलन' की वेबसाइट पर भी इतना ट्रैफिक आया कि वह क्रैश तक हो गई।

1980 से अब तक 82, 625 बच्‍चों को बाल मजदूरी के दंश से छुटकारा दिलाने वाले कैलाश सत्‍यार्थी का मानना है कि अब उनकी जिम्‍मेदारी और बढ़ गई है। वह इसे दुनिया भर के करोड़ों बच्‍चों का सम्‍मान मान रहे हैं। तमाम व्‍यस्‍तताओं के बीच कैलाश सत्‍यार्थी ने dainikbhaskar.com से विशेष बातचीत की। पढ़िए कुछ अंश-

प्रश्‍न: आपको शांति के लिए पाकिस्तानी लड़की मलाला के साथ नोबेल पुरस्कार मिला है। कैसे देखते हैं इसे?
कैलाश सत्यार्थी: यह मेरा नहीं, बल्कि उन करोड़ों बच्‍चों का सम्‍मान है, जिन्हें समाज की मुख्‍य धारा में अब तक कोई पहचान नहीं मिली। जिन्‍हें उनके अधिकार और उनकी आजादी नहीं मिली। आज भी दुनिया भर में करोड़ों बाल श्रमिक हैं। लिहाजा, यह सम्मान उन तमाम सभी बच्चों का है। मैं इस सम्मान को पूरे देश के गर्व के साथ जोड़ कर देखता हूं।

प्रश्‍न: क्या आप गरीबी को बाल-मजदूरी की मुख्य वजह नहीं मानते?

कैलाश सत्यार्थी- यह पूरी तरह मिथक है कि गरीबी ही बाल मजदूरी की बड़ी वजह है। लोगों में यह मिथक है कि बाल मजदूरी की बड़ी वजह गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी है। जबकि हकीकत यह है कि इसका इनसे कोई लेना-देना नहीं है। हम केवल ऐसी बेवजह बातों के चलते अपने बच्चों का भविष्य खराब नहीं कर सकते।


प्रश्‍न: इस शुभ घड़ी में आप लोगों को कोई संदेश देना चाहेंगे?

कैलाश सत्यार्थी- बाल मजदूरी की समस्या सारी दुनिया की समस्या रही है। भारत से हमने बाल मजूदरी के खिलाफ अभियान तीन दशक पहले शुरू किया। धीरे-धीरे यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना। एक भारतीय होने के नाते मैं यह भी महसूस करता हूं कि चूंकि नोबेल का सम्मान एक भारतीय को दिया जा रहा है, तो हर देशवासी का यह कर्तव्य है कि वह भारत से इस कलंक को मिटाए। बाल मजदूरी को मिटाना असंभव नहीं है, लेकिन सभी लोग मिलकर ही इस कलंक को मिटा सकते हैं।