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बाल विवाह की समाजिक बुराई पर युवाओं की एक पहल- रेणुका पामेचा

ममता 17 साल की है। वह अन्य लड़कियों के साथ पिता के साथ रहती है परंतु अपने पिता से उसका रिश्ता काफी कठिन दौर में है क्योंकि ममता ने अपने बाल विवाह को रुकवाने के लिए दो बार पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई। 13 मई 2013 को होने वाली शादी भी रुकवाई। ममता ने आगे पढ़ाई जारी रखने का पक्का इरादा बना रखा है। वह पिता के दबाव में नहीं आई और कलक्टर से पिता को पाबंद भी करवा दिया। अब अगर वह शादी का प्रयास करेगा तो जेल जाएगा।

ममता की तरह कई युवा लड़के लड़कियां हैं जो अपने बाल विवाह को रोकने के लिए परिवारवालों व पंचायत के खिलाफ खुलकर निर्णय ले रहे हैं। इस वर्ष लगभग काफी लड़कियों ने बाल विवाह रुकवाया और पढ़ाई का निर्णय लिया। जोधपुर में इस वर्ष 9 लड़के लड़कियों ने अपना बाल विवाह रुकवाया और 5 ने बाल विवाह को रद्द कराया। 18 वर्षीय निरक्षर लड़की लक्ष्मी ने मजिस्ट्रेट के समक्ष अर्जी देकर बाल विवाह को रद्द करने का अनुरोध किया। शोभा और रेखा पढ़ी लिखी लड़कियां हैं। उन्होंने अपने बाल विवाह को रद्द कराने की अर्जी लगाई तो जाति पंचायत बीच में कूद पड़ी और उनके माता पिता पर दबाव बनाया परंतु न्यायालय व प्रशासन के हस्तक्षेप से उन्हें सफलता मिली। इन लड़कियों ने परिवार व जाति पंचायत का डटकर मुकाबला किया और बचपन की शादी को रद्द कराया। पंचायत ने परिवारों को जाति बाहर किया। भारी जुर्माना लगाया पर इन लड़कियों ने डटकर मुकाबला किया। ऐसा काम कई लड़कों ने भी किया। कई लड़कों ने छोटी उम्र में विवाह को दबाव में स्वीकार किया पर बड़े होने पर जब समझ आया कि यह गलत है तो उसे रद्द करवाया।

आज भी बाल विवाहों को रोक पाना आसान काम नहीं है। पढ़े लिखे लोग भी नहंीं समझ पा रहे हैं कि यह भंयकर सामाजिक बुराई है। बाल विवाह का सीधा संबंध बालक बालिका पर असमय लादने से शुरू होता है और बाद में स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों पर जा ठहरता है। बाल विवाह बच्चों को उनके बचपन से भी वंचित कर देता हैं। कम उम्र में शादी होने से बच्चे के न सिर्फ सुरक्षा के अधिकार का उल्लंघन होता है वरन् अच्छा स्वास्थ्य, पोषण व शिक्षा पाने का अधिकार का भी हनन होता है। बाल विवाह को अन्य दुष्परिणामों में गर्भपात, कम वजन के बच्चे का जन्म, बच्चों में कुपोषण, माता में कुपोषण, खून की कमी होना, मातृ मुत्यु, माता में प्रजनन मार्ग संक्रमण यौन संचरित बीमारियां एचआईवी संक्रमण की संभावना में वृद्धि होना आदि। अध्ययनों से यह सिद्ध हो चुका है कि 15 वर्ष की उम्र में मां बनने से मातृ मृत्यु की संभावना 20 वर्ष की उम्र में मां बनने से पांच गुना अधिक होती है।

चिकित्सा विभाग ने कहा कि बाल विवाह व छोटी उम्र में मां बनने के कारण युवा औरतों की मौत की दर राजस्थान में बहुत ज्यादा है। इससे शिशु मृत्यु दर व मातृ मृत्यु दर 15 से 19 वर्ष की आयु में बढ़ रही है। 15 से 19 वर्ष की उम्र में 100 में से 12 महिलाओं की मृत्यु हो रही है। यह बात मई में 2011-12 की स्वास्थ्य रिपोर्ट में निकल कर आई। सरकार ने भी यह स्वीकार किया कि 15 से 19 वर्ष की उम्र में 25 प्रतिशत लड़कियां मां बन जाती हैं। राजस्थान में महिलाओं का स्वास्थ्य सदा चिंता का विषय रहा है। जल्दी उम्र में गर्भधारण करना मां व बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। पूरे देश में राजस्थान एक ऐसा राज्य है जहां विवाह की औसत आयु सबसे कम है। यह उम्र वैधानिक उम्र से कम है।

25 प्रतिशत लड़कियों की 18 से पहले शादी हो जाती है। भीलवाड़ा में यह 54 प्रतिशत, राजस्थान में 42 प्रतिशत, बूंदी में 38.4, झालावाड़ में 36.6 व दौसा में 34.6 प्रतिशत है। राजस्थान में जाति पंचायतों का बोलबाला है और वह जबरदस्त वोट बैंक है। प्रशासन रोकना चाहे तो राजनेता उसमें हस्तक्षेप करते हैं। राजस्थान को फोकस करके केंद्र सरकार बाल विवाहों को रोकने की याजे ना बना रही हैं। (विविधा फीचर्स)