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बाल हृदय योजना के लिए करोड़ों का बजट, लेकिन नहीं होते ऑपरेशन

रायपुर। मुख्यमंत्री बाल हृदय प्रदेश सरकार की योजना है। साल 2008 में इसकी शुरुआत हुई थी, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि बीते 7 साल में कार्डियक सर्जरी की सुविधा किसी भी सरकारी अस्पताल में शुरू नहीं हो सकी है। यह सुविधा प्रदेश के 6 निजी अस्पतालों में है, जो शासन से अनुबंधित हैं। बीते सात साल में इन अस्पतालों में 5441 बच्चों के दिल के ऑपरेशन हो चुके हैं। सरकार का करोड़ों का बजट निजी अस्पतालों को जा रहा है।

बाल हृदय योजना में 266 मौतों पर पड़ताल कर रहे 'नईदुनिया' को पता चला कि करीब 4 से 5 साल पहले डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल में कार्डियक थोरोसिक सर्जरी यूनिट बनाने का प्रस्ताव बना था। प्रस्ताव शासन को भी भेजा गया था, स्वीकृति भी मिली थी, लेकिन आज तक यूनिट आधार नहीं ले सकी है। इससे ज्यादा गंभीर बात और क्या हो सकती है कि पं. जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल मेडिकल कॉलेज में कार्डियक थोरोसिक सर्जरी यूनिट का सेटअप स्वीकृत है, लेकिन यूनिट खुल नहीं सकी है।

सूत्र बताते हैं कि शासन से लेकर मेडिकल कॉलेज और अंबेडकर अस्पताल प्रबंधन तक ने इस महत्वपूर्ण यूनिट की स्थापना को गंभीरता से नहीं लिया। यही वजह है कि निजी अस्पतालों में सरकार की यह योजना संचालित हो रही है। अंबेडकर अस्पताल में दिल की बीमारी का पता लगने के बावजूद मरीजों को निजी अस्पताल रेफर किया जाता है, आखिर ऐसा क्यों? क्या अब भी कार्डियक थोरोसिक सर्जरी यूनिट की स्थापना नहीं की जा सकती, तब जब सेटअप मौजूद है। 'नईदुनिया' को मिली जानकारी के मुताबिक अंबेडकर अस्पताल की कैथलैब यूनिट के ऊपर कार्डियक थोरोसिक सर्जरी यूनिट बनाने के लिए जगह का चयन भी हो चुका था।

इसलिए अंबेडकर अस्पताल में महसूस हो रही जरूरत

डॉ. अंबेडकर अस्पताल में जरूरत इसलिए महसूस की जा रही है, क्योंकि प्रदेश के कोने-कोने से जरूरतमंद मरीज सीधे यहीं पहुंचते हैं। अगर कार्डियक थोरोसिक सर्जरी यूनिट स्थापित हो जाती है, सर्जन की नियुक्ति हो जाती है तो इसका सीधा फायदा मरीजों को मिलेगा। मरीज रेफर नहीं होंगे। दूसरा कि ज्यादा से ज्यादा ऑपरेशन अंबेडकर में होने लगेंगे। निजी अस्पतालों पर निर्भरता कुछ हद तक कम हो जाएगी। अभी सरकार को निजी अस्पताल को प्रति केस 1.30 लाख से 1.80लाख रुपए तक भुगतान करना होता है। अंबेडकर में ऑपरेशन शुरू होने से बजट कम खर्च होगा। राज्य सरकार और यूरोपियन कमीशन बजट वहन करती है।

कार्डियक सर्जन को लेता है 4-5 लाख रुपए तक

प्रदेश में कार्डियक सर्जन बहुत कम है। ये एक सुपरस्पेशलिट डिग्री है, इसलिए डिमांड अधिक है। कार्डियक सर्जन 4-5 लाख रुपए मासिक वेतन तक लेते हैं, जो अंबेडकर अस्पताल और मेडिकल कॉलेज प्रबंधन के लिए देना संभव नहीं हैं। सुपरस्पेशलिटी डिग्रीधारियों जैसे न्यूरोसर्जन, प्लास्टिक सर्जन, पीडियाट्रिक सर्जन की नियुक्ति संविदा आधार पर होती है और उन्हें 50-60 हजार रुपए मासिक से ज्यादा नहीं मिलते हैं। यही वजह है कि सर्जन नौकरी कुछ समय संविदा पर नौकरी करते हैं और फिर छोड़कर चले जाते हैं, क्योंकि इन्हें भी कार्डियक सर्जन से थोड़ा कम लेकिन 2-3 लाख रुपए तक मासिक वेतन निजी अस्पताल में मिलता है।

मुझे जानकारी नहीं है

(पूछे जाने पर कि क्या कार्डियक थोरोसिक सर्जरी यूनिट बनाने का प्रस्ताव है, बोले...) मुझे इस संबंध में जानकारी नहीं है, आप अस्पताल अधीक्षक डॉ. चौधरी से जानकारी लीजिए। -डॉ. शशांक गुप्ता, विभागाध्यक्ष, मेडिसीन, डॉ. अंबेडकर अस्पताल

ध्यान है, बजट मिला था

डॉ. अशोक शर्मा जब विभागाध्यक्ष थे तब तो कार्डियक थोरोसिक का प्रस्ताव बना था। मुझे जहां तक ध्यान है कि बजट भी मिला था, ज्यादा तो डीन सर ही बता पाएंगे। -डॉ. विवेक चौधरी, अधीक्षक, डॉ. अंबेडकर अस्पताल

सेटअप में है कार्डियक सर्जरी यूनिट

कार्डियक थोरोसिक सर्जरी यूनिट का सेटअप मेडिकल कॉलेज में है, लेकिन अभी साधन-संसाधन ही नहीं है। उसके लिए मॉड्यूलर ओटी और कार्डियक सर्जन चाहिए। हालांकि कुछ साल पहले उसे बनाने की योजना थी, लेकिन वर्तमान में कोई प्रस्ताव और योजना नहीं है। -डॉ. अशोक चंद्राकर, डीन, पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज