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बिनायक नक्सली गतिविधियों में लिप्त , नहीं होगी जमानत : हाईकोर्ट

बिलासपुर.हाईकोर्ट ने डॉ. बिनायक सेन और पीजूष गुहा की जमानत याचिका खारिज कर दी। जस्टिस टीपी शर्मा और आरएल झंवर की डिवीजन बेंच ने गुरुवार को दिए अपने 20 पन्नों के फैसले में दोनों को नक्सली गतिविधियों में संलिप्त मानते हुए जमानत देना से मना कर दिया।


याचिकाकर्ता डॉ. सेन और पीजूष की ओर से 24 और 25 जनवरी को बहस पूरी होने के बाद बुधवार को शासन की ओर से तर्क पेश किए गए। सुनवाई के दौरान सरकारी वकील की प्रमुख दलील थी कि डॉ. सेन और पीजूष ने नक्सलियों के लिए कोरियर (पत्रवाहक) का काम किया।


विभिन्न नक्सली नेताओं से मिले दस्तावेज और उनके बयानों में भी दोनों का नाम आया है। अदालत ने सुनवाई पूरी होने के बाद बुधवार को फैसला सुरक्षित रख लिया था।


गुरुवार को भोजन अवकाश के बाद दोपहर सवा दो बजे कोर्ट बैठा और फौरन ही फैसला सुना दिया।


सुप्रीम कोर्ट जाना तय


डॉ. सेन और पीजूष गुहा के वकील महेंद्र दुबे ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाएगी। उन्होंने कहा कि कई बार ऐसा लगा कि शायद कोर्ट याचिकाकर्ताओं की ओर से दिए गए तर्को से संतुष्ट है। लेकिन फैसला खिलफ में आया है।


शासन के पास कोई पुख्ता सबूत और आधार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट से याचिकाकर्ताओं को राहत मिलना तय है। डॉ. सेन के भाई दीपांकर ने भी सुप्रीम कोर्ट जाने और वहां से राहत मिलने की उम्मीद जताई है।


एक घंटे में बहस पूरी


शासन की ओर से श्री भादुड़ी ने लंच के बाद अदालत शुरू होने पर 2.15 बजे से बहस शुरू की, जो लगभग एक घंटे में पूरी हो गई। इस दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील महेंद्र दुबे मौजूद थे। उन्होंने भी बीच-बीच में अपनी बात रखी। सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर दिया।


सरकार के पास पुख्ता सबूत


अतिरिक्त महाधिवक्ता किशोर भादुड़ी ने कहा कि कोर्ट ने शासन की ओर से प्रस्तुत तर्को को स्वीकार कर दोनों अभियुक्तों को नक्सली मानते हुए जमानत याचिका खारिज कर दी है। भादुड़ी ने कहा कि शासन का पक्ष मजबूत है और अगर मामला सुप्रीम कोर्ट जाता है तो वहां भी यही आधार रहेंगे।


राम जेठमलानी के तर्क


डॉ. सेन व पीजूष पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 121 ए (सरकार के खिलाफ युद्ध या राजद्रोह) कहीं से भी सिद्ध नहीं होता।


उन्हें सिर्फ पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल) से संबंध रखने या फिर कुछ पत्र बरामद होने के आधार पर सजा दी गई, लेकिन पीयूसीएल ऐसा संगठन नहीं हैं, जिसे आतंकी या देशद्रोही कहा जा सके।


पुलिस द्वारा जब्त पत्रों से यह कहीं भी स्पष्ट नहीं होता कि तीनों अभियुक्त किसी अवैध या आतंकी गतिविधि में लिप्त थे।


डॉ. सेन जेल में कुल 33 बार सान्याल से मिले। वे पीयूसीएल से जुड़े रहने के दौरान परिचय और सान्याल के परिजन के कहने पर डॉक्टर होने के नाते इलाज के सिलसिले में मिलते थे।


उनकी मुलाकात जेलर के आफिस में हुई और हमेशा ही कोई न कोई सुरक्षाकर्मी इस दौरान मौजूद रहा।


उन्हें सुनवाई तक का अवसर नहीं दिया गया, जो प्राकृतिक न्याय और संविधान में उल्लेखित अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ है।


शासन की दलील


बिनायक सेन ने कभी डॉक्टरी नहीं की, पीजूष के पास तेंदूपत्ता व्यवसाय संबंधी दस्तावेज नहीं।


पत्र व घर से बरामद दस्तावेजों में माओवादियों से संबंध उजागर, माओवादियों के दस्तावेजों में उनका उल्लेख।


नक्सली नेताओं के बयानों में भी सेन उनकी पत्नी इलीना और सान्याल का उल्लेख।


सेन और सान्याल की जेल में मुलाकात डाक्टर व मरीज के नाते नहीं, संगठनात्मक कार्यो से हुई।  


 


बिनायक सेन को उम्रकैद की सजा पर सुनवाई जारी रहेगी


बिनायक सेन और पीजूष ने सजा के खिलाफ अपील के साथ ही जमानत याचिका दायर की थी। सजा के खिलाफ अपील मुख्य मामला है। जमानत याचिका खारिज होने के बाद अपील पर सुनवाई हाईकोर्ट में लंबित है, जिस पर सुनवाई जारी रहेगी।


यूरोपियन यूनियन के सदस्य नहीं पहुंचे:


बिनायक सेन व पीजूष गुहा के मामले में फैसले के दौरान गुरुवार को यूरोपियन यूनियन का एक भी सदस्य उपस्थित नहीं था। हालांकि डा. सेन के भाई दीपांकर पूरे समय उपस्थित रहे और फैसले के बाद वे निराश नजर आए। पहली दो सुनवाई के दौरान यूरोपियन यूनियन के पूरे 9 सदस्यों ने उपस्थित रहकर कोर्ट की कार्रवाई देखी।


कल शासन की ओर से बहस के दौरान सिर्फ दो महिला सदस्य ही उपस्थित रहीं। आज एक भी सदस्य नहीं पहुंचा। माना जा रहा है कि सदस्यों की रुचि कोर्ट में प्रस्तुत किए जा रहे तर्क सुनने में ही थी।


डा. सेन की पत्नी आज भी उपस्थित नहीं थीं। बाकी दिनों की तरह आज भी सुरक्षा व्यवस्था कड़ी थी। आज चैनल वालों को कैमरा व माइक लेकर अंदर जाने नहीं दिया गया। उन्होंने गेट के पास ही रहकर मामले का कवरेज किया। किसी तरह का उपद्रव रोकने के लिए यह व्यवस्था की गई थी।