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बिहार को मालूम नहीं उसके यहां कितने हैं बेघर

नई दिल्ली [माला दीक्षित]। बिहार सरकार ने मौसम की मार और भुखमरी से बचाने के लिए शहरी बेघरों को आश्रय और भोजन देने से हाथ खड़े कर दिए हैं। यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट का था, लेकिन राज्य सरकार को यही नहीं मालूम कि उसके शहरों में कितने लोग बेघर हैं? कोर्ट के नोटिस के जवाब में राज्य सरकार ने आर्थिक और प्रबंधकीय दिक्कतें बताते हुए ऐसा करने में असमर्थता जताई है और सारी जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर डाल दी है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट 7 अप्रैल को सुनवाई करेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राज्यों को यह आदेश दिया था कि बेघरों को आश्रय व भोजन उपलब्ध कराया जाए, ताकि उन्हें मौसम की मार से बचाया जा सके। इस पर कोर्ट में दाखिल बिहार सरकार के हलफनामें और रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी बेघरों को आश्रय गृह मुहैया कराना अकेले राज्य सरकार के बूते की बात नहीं है। बिहार सरकार ने कहा है कि फिलहाल उसके पास शहरी बेघरों का कोई आंकड़ा भी मौजूद नहीं है।

राज्य सरकार ने कहा है कि वह एक लाख की शहरी आबादी पर सौ बेघरों के लिए बुनियादी सुविधाओं के साथ आश्रय उपलब्ध कराने में असमर्थ है। इतनी बड़ी तादाद में आश्रय घरों को चलाने में ढेरों आर्थिक और प्रबंधकीय समस्याएं हैं। राज्य सरकार ने सुझाव दिया है कि केंद्र सरकार अपने खर्च पर समाजसेवी संस्थाओं की मदद से ऐसी योजना चला सकती है।

राज्य सरकार ने कहा है कि बेघरों की पहचान के लिए केंद्र सरकार के खर्च पर किसी बाहर की एजेंसी से सर्वे कराया जाना चाहिए। सर्वे फूल प्रूफ होना चाहिए, ताकि फर्जी लोग सूची में शामिल होकर लाभ ना लेने पाएं। बेघरों की वह सूची शहरी विकास एवं गृह विभाग, खाद्य आपूर्ति विभाग को भी देगा, जिससे कि ऐसे लोगों को अंत्योदय अन्न योजना के तहत राशन कार्ड जारी किए जाएं।

राज्य सरकार ने सुप्रीमकोर्ट की तरफ से नियुक्त कमिश्नर की इस रिपोर्ट पर आपत्ति जताई है कि कोई भी लावारिस शव भूख से मरे व्यक्ति का हो सकता है। राज्य की दलील है कि ऐसा मानना उचित नहीं है। शव का पोस्टमार्टम तो सिर्फ तभी होता है, जबकि भुखमरी से मौत होने का गंभीर संदेह हो।

राज्य सरकार ने सामुदायिक रसोई [कम्युनिटी किचेन] के सुझाव को भी नकार दिया है और कहा है कि सिर्फ उन्हीं लोगों को मुफ्त में भोजन मिलना चाहिए, जो वाकई काम करने में असमर्थ हैं। मुफ्त में भोजन बांटने के बजाए ऐसे लोगों के लिए मनरेगा जैसी योजनाएं लागू की जाएं।