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बिहार: खेतों में पंजाबी मेहनतकश!

करगहर [रोहतास, सुरेंद्र तिवारी]। अभी तक सूबे के लोग ही पंजाब जाकर खेतों में मेहनत करते थे लेकिन समय के साथ बदली फिजा का असर है कि आज पंजाबी मेहनतकश बिहार के खेतों में पसीना बहाते नजर आ रहे हैं। इन लोगों से सीख लेकर यहां के लोग भी सूबे की उपजाऊ मिट्टी में सुखद भविष्य की कल्पना कर सकते हैं।

किसानी की बदौलत कुछ हद तक मजदूरों के पलायन की रफ्तार में कमी आई है। कभी यहां के मजदूर पंजाब पलायन करते थे। आज उन्नत कृषि ने लोगों की सोच बदल दी है। नतीजा उल्टी गंगा बहने लगी। पंजाब के तकरीबन दो हजार कुशल मजदूरों ने इस इलाके को अपने रोजगार का आधार बना लिया है। दिनोंदिन उनकी तादात बढ़ती जा रही है। अकेले करगहर में दो सौ हार्वेस्टर हैं। पूरे जिले में इसकी तादात सात सौ के करीब है।

पंजाब से खरीदे जाने वाले अधिकांश हार्वेस्टरों को आपरेट करने के लिए पंजाबी मजदूर ही माकूल माने जाते हैं। एक हार्वेस्टर पर एक फोरमैन, दो चालक व एक क्लीनर हुआ करते हैं। सब के सब पंजाब के होते हैं। पंजाब के फरीद कोट निवासी हार्वेस्टर आपरेटर प्रेम सिंह का कहना है कि बिहार की बाहर में गलत तस्वीर पेश की जाती रही है। मुझे भी यहां आने से मना किया गया था। पर यहां का प्रेम व्यवहार देख धारणा बिल्कुल गलत साबित हुई। अब तो यहीं बस जाने का जी करता है।

पंजाब के फिरोजपुर जिले से आये राय सिंह कहते हैं, यहां धान-गेहूं की पैदावार देख मन प्रसन्न हो जाता है। वह दिन दूर नहीं जब अन्य प्रदेशों के लोग खेती का गुर सीखने यहां आएंगे। प्रतिवर्ष हार्वेस्टरों की तादाद बढ़ रही है। यदि किसानों को सरकार द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य पर अनाज की खरीदारी होने लगे तो लोगों का रुझान खेती के प्रति बढ़ता जाएगा।

वर्ष 1995 में बिहार सरकार ने प्रखंड के रीवां को 'बीज ग्राम' घोषित किया था। उस समय केवल रीवां से बिहार राज्य बीज निगम में 22 हजार क्विंटल गेहूं जमा करने का रिकार्ड बना था। इसी से इस इलाके की थोड़ी झलक मिल सकती है।

कनियारी गांव के दिवाकर सिंह बताते हैं, हार्वेस्टर के रखरखाव में कुशल इन पंजाबी मजदूरों से हमें काफी सुविधा होती है। उन्हें सीजन में 35 से 40 हजार माहवार दिया जाता है। इसके अलावा प्रति एकड़ 38 रुपये कमीशन दिया जाता हैं। जबकि उन्हें पंजाब में इसी कार्य के लिये महज 17 हजार माहवार मिलते हैं। हार्वेस्टर से गेहूं के सीजन में किसानों को भी फायदे होते हैं। दिनोंदिन इसकी मांग बढ़ती जा रही है। एक सीजन में दो से ढाई लाख की आमदनी होती है।

हार्वेस्टर रखने वाले नोनहर [बिक्रमगंज] के अखिलेश्वर सिंह की मानें तो पहले हर वर्ष उनके गांव के 17 मजदूर रोजगार की तलाश में पंजाब चले जाते थे। अब उनकी तादात घटकर 2-3 पर आ गई है।