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बिहार-- गांव—गांव तक पहुंचेगी गाड़ियां, घर बैठे किसान बेचेंगे दूध

पटना: पशुपालन किसानों के आय का जरिया हैं। खेती किसानी करने वालों की नकद आमदनी का जरिया है दुग्ध उत्पादन। इसे आमदनी कहें या क्रांति इससे बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। मूल बात है कि किसान जो दूध तैयार करते हैं, उन्हें उनका सही मूल्य मिले। बाजार उपलब्ध हो। और इसी बाजार को किसानों के द्वार तक लाने के लिए अब बिहार सरकार ने प्रयास शुरू कर दिया है बिहार में अब समय पर उठाव नहीं होने के कारण दूध के खराब होने और वसा की मात्रा कम होने की समस्या उत्पन्न नहीं होगी। सूबे में 1000 स्वचालित दूध संग्रह केंद्र शुरू किए जाएंगे। प्रत्येक केंद्र पर 1.12 लाख के हिसाब से कुल 1125 लाख रुपये की लागत आएगी। इसके तहत 2017 तक करीब 25 हजार दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है।

 

डेयरी उद्योग के लिए तैयार रोडमैप


राज्य सरकार प्रदेश में डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने में लगी हुई है। मुख्य सचिव अशोक कुमार सिन्हा के अनुसार कृषि रोडमैप (2015-17) में डेयरी क्षेत्र का विकास एक प्रमुख लक्ष्य है। डेयरी क्षेत्र के विकास के लिए नेशनल को-ऑपरेटिव डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एनसीडीसी) से बिहार को ऋण की मंजूरी मिली है। इसके तहत 2017 तक दूध उत्पादन को रोजाना 44 लाख लीटर करके गुजरात के बराबर कर लेने का लक्ष्य तय किया गया डेयरी उद्योग से जुड़े लोगों को प्रोत्साहित करने को कई तरह की योजनाएं शुरू की गईं। इससे दूध का उत्पादन बढऩे के बाद भी गुजरात, हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु की तुलना में बिहार पीछे है। दूध उत्पादन में देश में बिहार सातवें स्थान पर है, जबकि वर्ष 2012 में बिहार नौवें स्थान पर था । उन्होंने कहा कि हम अमूल ब्रांड को प्रमोट करने वाले परिसंघ गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडेरशन (जीसीएमएमएफ) को लक्षित कर बिहार में कॉम्फेड की दूध खरीद क्षमता और उसकी मार्केटिंग का विस्तार करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि बिहार में कृषि के क्षेत्र में इंद्रधनुषी क्रांति करते हुए हम राज्य को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं ताकि हर भारतीय की थाली में एक भारतीय व्यंजन हो इसलिए हम दुग्ध प्रसंस्करण पर अधिक जोर दे रहे हैं और वर्तमान क्षमता का विस्तार कर रहे हैं।


पशुपालन विभाग ने उठाया कदम


पशुपालन विभाग द्वारा डेयरी उद्योग की समीक्षामें पाया कि गांवों संग्रह करने के बाद दूध को प्लांट तक पहुंचने में काफी वक्त लग जाता है, जिससे दूध की गुणवक्ता पर असर पड़ता है, जिससे दूध उत्पादकों को सही दाम नहीं मिलता है। इसके मद्देनजर विभाग ने स्वचालित दूध संग्रहण केंद्र शुरू करने का फैसला किया गया। विभाग ने पहले चरण में 1000 स्वचालित दूध संग्रहण केंद्र शुरू करने की मंजूरी प्रदान कर दी। पूरी तरह वातानुकूलित टैंकर है। इसमें दूध कई घंटे तक पूरी तरहसुरक्षित रहेंगे। इसके जरिए गांवों में एक जगह पर रखे दूध का उठाव कर शीतलीकरण संकलन केंद्र तक लाया जाएगा। यहां से दूध को टैंकरों प्लांट तक पहुंचाया जाएगा।

 


क्या है अधिकारिओं की राय


कॉम्फेड की प्रबंध निदेशक हरजोत कौर बम्हारा के अनुसार- 2017 तक कॉम्फेड अपनी दूध क्रय की क्षमता का विस्तार करते हुए इसे 44 लाख किलोग्राम प्रतिदिन करना चाहता है। बम्हारा ने कहा कि हम राज्य के 8.4 लाख परिवारों को दुग्ध उत्पादन से जोड़ना चाहते हैं। 16 डेयरी परियोजनाओं के लिए एनसीडीसी से कुल 704 करोड़ रुपए का ऋण लिया गया है और 9 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।


कॉम्फेड के महाप्रबंधक एके कुलकर्णी ने बताया कि कॉम्फेड के नेतृत्व में अभी 13 हजार दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियां काम कर रही हैं। 2017 तक राज्य में प्रतिदिन 44 लाख किलोग्राम दूध खरीदने का और सहकारी समितियों की संख्या 25 हजार तक पहुंचाने का लक्ष्य है। राज्य में ‘सुधा मित्र' के रूप में लोगों को सहकारी समितियों से जोड़ा जाएगा। वर्तमान में 14.96 लाख किलो दूध की खरीद होती है। आने वाले 4 वर्षों में इसमें 3 गुना बढ़ोतरी की जाएगी। नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) के अनुसार 2010-11 में बिहार में 65.17 लाख टन दूध का उत्पादन हुआ था। 2010-11 में राष्ट्रीय स्तर पर बिहार दूध उत्पादन के मामले में 9वें स्थान पर था। पाउडर दूध, टेट्रापैक मिल्क और दूध के अन्य उत्पाद को बढ़ावा दिया जाएगा। कुलकर्णी ने बताया कि 2012-13 में कॉम्फेड का कुल कारोबार 1,500 करोड़ रुपए था, जो लगातार बढ़ रहा है। कॉम्फेड महाप्रबंधक ने बताया कि वर्तमान में त्रिस्तरीय व्यवस्था कॉम्फेड के तहत 5 दुग्ध उत्पादक संघ कार्यरत हैं। मगध डेयरी प्रोजेक्ट और कोसी डेयरी प्रोजेक्ट की क्षमता का विस्तार करने का लक्ष्य है। 2012 की तुलना में वर्तमान में सहकारी समितियों द्वारा दूध खरीद में 13-14 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।


कुलकर्णी ने बताया कि कॉम्फेड पाश्चुराइज्ड दूध के अलावा अन्य उत्पादों की मार्केटिंग पर तेजी से काम कर रहा है। हम 120 करोड़ रुपए की लागत से 300 लाख टन उत्पादन क्षमता का एक दूध पाउडर प्लांट लगा रहे हैं। उन्होंने बताया कि मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर में दूध पाउडर संयंत्र स्थापित किया जा रहा है। रोहतास जिले के डेहरी आन सोन में चीज प्लांट और जमुई में दुग्ध प्लांट स्थापित हो रहा है। इसके अलावा बिहार शरीफ में फिलीपींस की मदद से 3,000 लीटर प्रतिदिन उत्पादन का एक टेट्रामिल्क प्लांट जल्द चालू हो जाएगा। कॉम्फेड के एक अन्य अधिकारी विजय पांडेय ने बताया कि पटना डेयरी प्रोजेक्ट ने दुग्ध उत्पादों जैसे आइसक्रीम, घी, पेड़ा, सोनपपड़ी, गुलाब जामुन की सफल मार्केटिंग की है। अन्य डेयरी प्रोजेक्ट को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। सुधा ब्रांड के तहत कुल 26 दुग्ध उत्पादों की मार्केटिंग की जा रही है। उन्होंने बताया कि कॉम्फेड के सुधा ब्रांड ने दिल्ली एनसीआर के बाजार में प्रवेश कर लिया है। कॉम्फेड आगे अपनी क्षमता का विस्तार करते हुए आने वाले समय में बिहार को डेयरी के मामले में देश में 5 सर्वश्रेष्ठ राज्यों में शामिल कराना चाहता है। पांडेय ने बताया कि कॉम्फेड वर्तमान में प्रतिदिन 35 हजार लीटर सुधा ब्रांड दूध की आपूर्ति दिल्ली एनसीआर के बाजार में कर रहा है। दिल्ली एनसीआर के बाजार की जरूरत अभी प्रतिदिन 1 करोड़ लीटर दूध की है। कुलकर्णी कहते हैं कि कॉम्फेड उत्तरप्रदेश के बनारस और गोरखपुर तक अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। कॉम्फेड ने 2017 तक दूध की मार्केटिंग को बढ़ाकर 21 लाख लीटर प्रतिदिन करने का लक्ष्य रखा है। वर्तमान में यह 8.25 लाख लीटर प्रतिदिन है।