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बीज पर सब्सिडी- किसानों के जख्मों पर नमक-- अखिलेश श्रीवास्तव

अकाल बुंदेलखंड की चौखट पर मुंह बाए खड़ा है। ललितपुर जिला सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में से एक है। जिला कृषि विभाग के ताजा आंकड़े बताते हैं कि सत्तर फीसदी खेत बिना बुआई के वीरान पड़े हैं। कई किसान बदहाली के शिकार होकर अपनी स्वभाविक मौत मर चुके हैं तो कुछ एक खुदकुशी की भी खबरें हैं। इतने संवेदनशील मुद्दे पर भी सरकारी अमला कितने संवेदनहीन तरीके से काम करता है, उसकी बानगी है पीड़ित किसानों को राहत पहुंचाने के इरादे से उठाए गए कुछ कदम। इलाके में बदहाली की तमाम आहटों के बावजूद अव्वल तो प्रशासन देर से जागा, फिर जागा तो राहत के नाम पर ऐसे नियम-कायदे बना दिए जो किसानों के हरे जख्मों पर नमक छिड़कने जैसे हैं।

सरकार ने हाल ही में किसानों को अनुदान (सब्सिडी) पर बीज देने की घोषणा की है। इसके तहत रबी की फसल के अलग-अलग बीजों पर केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से सब्सिडी दी जा रही है। गेहूं के बीज पर केंद्र सरकार की तरफ से एक हजार रुपए, राज्य सरकार द्वारा देय चार सौ रुपए और राज्य सरकार द्वारा अतिरिक्त देय छह सौ रुपए कुल मिलाकर दो हजार रुपए अनुदान दिया जा रहा है। इसी तरह चना के बीज पर केंद्र सरकार की तरफ से ढाई हजार रुपए, राज्य सरकार द्वारा आठ सौ रुपए, राज्य सरकार द्वारा अतिरिक्त देय सत्रह सौ रुपए और कुल मिलाकर पांच हजार रुपए अनुदान दिया जा रहा है। मटर के बीच के लिए केंद्र सरकार की तरफ से ढाई हजार रुपए, राज्य सरकार की तरफ से आठ सौ रुपए और राज्य सरकार की ही तरफ से अतिरिक्त देय सत्रह सौ रुपए व कुल मिलाकर पांच हजार रुपए अनुदान दिया जा रहा है। इसी प्रकार मसूर के बीज पर केंद्र सरकार द्वारा ढाई हजार रुपए, राज्य सरकार द्वारा आठ सौ रुपए और राज्य सरकार द्वारा सत्रह सौ रुपए का अतिरिक्त अनुदान समेत कुल पांच हजार रुपए का अनुदान दिया जा रहा है।

 

सरकार ने सब्सिडी पर बीज देने का फैसला तो किया है लेकिन इस मामले मे पेंच ये है कि किसानों को पहले बीज की पूरी कीमत का एक चेक कृषि विभाग के नाम से जमा कराना होगा। पूरी धनराशि का चेक जमा करने के बाद किसानों को बीज मुहैया करा दिया जाएगा और बाद में जिस बीज पर जितनी सब्सिडी है, उतनी राशि चेक के माध्यम से ही वापस की जाएगी। किसानों का तर्क है कि यदि उनके पास चेक बनवाने के लिए पर्याप्त पैसा होता तो उन्हें अनुदान की कोई जरूरत ही नहीं थी।

 


पहली बात तो ये कि दिसंबर के महीने में बीज खरीदी पर अनुदान की घोषणा करना किसानों के साथ मजाक करने जैसा है। जो साधन संपन्न किसान बुआई करने में सक्षम थे वो अक्टूबर के महीने तक कर चुके थे। जो नहीं कर पाए करीब सत्तर फीसदी उनके लिए अब बहुत देर हो चुकी है। अगर कोई किसान बीज खरीदना भी चाहे तो पहले पूरी कीमत का चेक बनाकर जमा कराना होगा जो उनके लिए किसी मुसीबत से कम नहीं। इस पैसे के इंतजाम के लिए उन्हें फिर सूदखोरों के चंगुल में फंसना होगा। तो फिर सरकार की तरफ से की जा रही मदद का क्या औचित्य रह जाएगा। सरकार केवल रस्मी कदम उठाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान बैठी है। जरूरतमंद किसानों को इसका कितना फायदा मिल रहा, उससे उनका कोई लेना-देना नहीं। सरकार में बैठे 'धरतीपुत्रों' को धरातल पर उतरकर कुछ ऐसे उपाय करने की जरूरत है जिससे बुंदेलखंड में स्थिति को भयावह होने से रोका जा सके।