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बीडीओ नहीं जानते मजदूरों का हरा व लाल कार्ड

अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक (नियोजन एवं सेवा शर्त विनियमन) अधिनियम 1979 के मुताबिक काम के लिए दूसरे राज्य जाने वाले मजदूरों का पंजीयन अनिवार्य है. इसके साथ ही पांच या पांच से अधिक मजदूरों को राज्य से बाहर काम पर ले जाने वाले ठेकेदार या एजेंट के पास भी लाइसेंस होना चाहिए. लेकिन, इस कानून का पालन नहीं होता है. कानून एवं नियम के मुताबिक जिन पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों को निबंधन की कार्रवाई करनी है, उन्हें यह पता ही नहीं है. पंचायत प्रतिनिधियों का भी यही हाल है.

देवघर जिले के मोहनपुर प्रखंड अंतर्गत जमुनियां ग्राम पंचायत का खूटाबांध गांव शत-प्रतिशत अनुसूचित जाति की आबादी वाला गांव है. यहां पर परिवारों की संख्या 250 के आसपास है. गांव की त्रसदी यह है कि हर साल यहां का 50 से ज्यादा परिवार छह महीने के लिए रानीगंज चला जाता है. इसमें बच्चे, महिलाएं एवं बुजुर्ग सभी शामिल होते हैं. कुछ परिवार अभी निकल चुके हैं और कुछ निकलने की तैयारी में हैं. अपना घर-बार छोड़ कर जाने वाले परिवारों में ज्यादातर भूमिहीन होते हैं. ऐसे परिवार के पास खेती के लिए जमीन नहीं होती है.

जीवन का गुजर-बसर पूरी तरह मजदूरी पर निर्भर है. वहां पर ये सभी लोग ईंट-भट्ठा में काम करते हैं. चूंकि वहां पर इन्हें प्रति हजार ईंट निर्माण पर पैसा मिलता है. इसलिए काम में बच्चे एवं बुजुर्ग भी बड़ों की मदद करते हैं. यह काम नवंबर से लेकर मार्च-अप्रैल तक चलता है. अभी जो परिवार गांव से जाते हैं वह फिर मई एवं जून में लौट आता है. क्योंकि तब बारिश के कारण काम बंद हो जाता है.

इसके बाद ये लोग अपने गांव एवं पंचायत में  खेतीहर मजदूर का काम करते हैं. हर साल यहां के लोग बाहर जाते हैं. लेकिन क्या ये अपना निबंधन कराते हैं? क्या इनके ठेकेदार का ब्यौरा सरकार के पास होता है? यह जानने के लिए 24 अक्तूबर को यह प्रतिनिधि गांव पहुंचा था. मुलाकात में ग्रामीण रघुनी दास, सुकुमार दास, ऐतवारी, कारू, देबू, चेतू, भिखारी, सियाराम, भागवत, जुनीलाल, बालदेव, वासुदेव, अरुण, तुलसी, श्रीकांत, शंभु आदि ने अपनी आपबीती बतायी. इन सभी ने बताया कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि पंचायत में निबंधन होता है. इसमें एक ग्रामीण विदेशी दास मिले. वे काम पर जाने वाले मजदूरों के समूह का सरदार है.  इनके नेतृत्व में हर साल 30 से 40 की संख्या में लोग ईंट-भट्ठा पर काम करने जाते हैं.

पूछने पर पहले तो इन्होंने सरदार या ठेकेदार होने की बात से सीधे इनकार कर दिया. फिर जब यह बताया गया कि अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक (नियोजन एवं सेवा शर्त विनियमन) अधिनियम 1979 के तहत आप अपना एवं मजदूर का निबंधन कराते हैं तो कई लाभ होगा. ठेकेदार के तौर पर आपको मजदूरों को बाहर ले जाने का अधिकार मिलेगा. कार्यस्थल पर मजदूरों के साथ कोई अनहोनी हो जाने पर सरकार से 1.50 लाख रुपये तक का मुआवजा मिलेगा. उन्होंने बताया कि ग्राम पंचायत से उन्हें अब तक इस प्रकार की जानकारी नहीं मिली है.

बातचीत के बाद भविष्य में लाइसेंस लेने एवं निबंधन का आश्वासन उन्होंने दिया. यह बात सिर्फ इस गांव एवं पंचायत की नहीं है बल्कि पूरे प्रखंड की है. विभिन्न ग्राम पंचायत के मुखिया ने बातचीत में इस बात की पुष्टि की है. सुअरदेही ग्राम पंचायत की मुखिया रंजू देवी के प्रतिनिधि सुनील मंडल बताते हैं कि वे लोग अब तक मनरेगा में मजदूरों का निबंधन करते थे. बाहर जाने वाले मजदूरों का भी निबंधन करना है, इसकी जानकारी नहीं थी. लेकिन, अब पंचायत सचिव से बात कर इस पर ग्रामसभा में चर्चा करूंगा. मोहनपुर प्रखंड क्षेत्र की आबादी करीब पौने दो लाख है. 28 ग्राम पंचायत और 450 से अधिक गांव हैं. हर साल इन गांवों से लगभग हजारों की संख्या में लोग मजदूरी के लिए पलायन करते हैं. काम की तलाश में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि विभिन्न महानगरों एवं नगरों में जाते हैं.

लेकिन, मोहनपुर प्रखंड सह अंचल कार्यालय के पास बाहर जाने वाले मजदूरों का कोई रिकॉर्ड नहीं है. इस बारे में बात करने पर प्रखंड विकास पदाधिकारी पारितोष कुमार ठाकुर कहते हैं कि मजदूरों के सर्वे एवं रिकॉर्ड संधारण से संबंधित आदेश या निर्देश की कॉपी उन्हें नहीं मिली है. ऐसा कोई निर्देश मिलेगा तो कार्रवाई की जायेगी. लेकिन, क्या बीडीओ साहब सच बोल रहे हैं? यह जानने के लिए प्रखंड विकास पदाधिकारी कार्यालय में इसकी पड़ताल की गयी तो पता चला कि झारखंड सरकार के श्रम नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग के प्रधान सचिव विष्णु कुमार ने पिछले साल जुलाई में ही सभी उपायुक्त को एक पत्र भेजा था.

इसकी कॉपी प्रखंड कार्यालय मोहनपुर को भी मिली है. इस आदेश के तहत प्रखंड की सभी ग्राम पंचायतों को दो-दो हजार की संख्या में हरा एवं लाल कार्ड छपवा कर उपलब्ध कराया गया है. प्रधान सचिव के आदेश में विस्तृत रूप से बताया गया है कि पांच या पांच से अधिक मजदूरों को काम पर ले जाने वाले ठेकेदार या एजेंट को लाइसेंस लेना है. मजदूरों का निबंधन कराना है. इस पत्र में पूर्व में निर्गत आदेशों का भी ब्यौरा दिया गया है.

पत्र के मुताबिक यदि ठेकेदार या एजेंट लाइसेंस नहीं लेते हैं और मजदूरों को बाहर ले जाते हैं तो उन पर कानून की धारा 24 से 29 तक में कार्रवाई का अधिकार श्रम विभाग के अधिकारियों एवं बीडीओ के पास है. श्रम कानून के प्रावधानों के तहत झारखंड में पहले जिलों के उपायुक्त लाइसेंसी पदाधिकारी होते थे. मजदूरों का निंबधन जिलास्तरीय श्रम कार्यालय से होता था. लेकिन, वर्ष 2011 में अधिकारों को विकेंद्रित कर दिया गया है. अब मजदूरों के निबंधन एवं ठेकेदारों को लाइसेंस निर्गत करने का काम ग्राम पंचायत को दे दिया गया है. पंचायत सचिव ही लाइसेंसी पदाधिकारी और निबंधन पदाधिकारी होते हैं. मजदूरों के निबंधन के बाद उन्हें हरा एवं लाल कार्ड दिया जाना है. ठेकेदार के माध्यम से काम पर जाने वाले मजदूरों को हरा एवं स्वयं जाने वाले मजदूर को लाल कार्ड निर्गत किया जाता है. इसमें उसका पूरा विवरण होता है.