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बीमार स्वास्थ्य सेवा कब सुधरेगी?-- तवलीन सिंह

हर वर्ष बरसात के खत्म होते ही डेंगू का प्रकोप शुरू हो जाता है। हर वर्ष इस मौसम में दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में लोगों के डेंगू से पीड़ित होने की खबरें मिलती हैं। हर वर्ष हमारी सरकारें वही रवैया अपनाती हैं, जो दशकों से जारी है। अस्पतालों की लापरवाही को लेकर चिंता व्यक्त की जाती है। फिर मौसम बदल जाता है, डेंगू के मरीज कम हो जाते हैं, और हमारी सरकारें तब तक के लिए ये बातें भूल जाती हैं, जब डेंगू की बीमारी दोबारा नहीं लौट आती।

हमारी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार दशकों से नहीं आया है। बिस्तरों की वही गंभीर कमी, वही गंदगी, वही लापरवाही और मरीजों के रिश्तेदारों की वही हालत। दिल्ली या मुंबई में अगर बाहर से इलाज करवाने वाले आते हैं, तो गरीब मरीजों के रिश्तेदार कार पार्किंग या पार्कों में रात बिताते हैं। इनके लिए अस्पतालों के पास ही अतिथि निवास क्यों नहीं बन सकते?

इस वर्ष दिल्ली में अस्पतालों की लापरवाही से अगर कुछ बच्चों की मौतें न हुई होतीं, तो डेंगू की खबरें शायद टीवी तक पहुंचती ही नहीं। ये मौतें इसलिए हुईं कि अस्पतालों ने इलाज के लिए उन्हें दाखिल नहीं किया। इसी के बाद डेंगू के मरीजों से जूझते दिल्ली के अस्पतालों का हाल टेलीविजन चैनलों ने दिखाना शुरू किया। हम सबने देखा कि कैसे डेंगू से पीड़ित लोग ऐसे बिस्तरों पर पड़े हुए हैं, जिन पर दो-तीन मरीज और भी हैं।

हमारी खराब स्वास्थ्य सेवा की ओर अब जो पूरे देश का ध्यान आकर्षित हुआ है, क्या इससे हम उम्मीद करें कि नरेंद्र मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री कुछ नया करके दिखाएंगे? पिछले कई दशकों से इस देश की सरकारी स्वास्थ्य सेवा इतनी बेहाल रही है कि गरीब लोग भी निजी डॉक्टरों से इलाज करवाने को मजबूर हैं, पर यदि सरकार सुधार लाने के बारे में सोचती, तो अब तक नई स्वास्थ्य नीति का ऐलान हो गया होता। यह माना कि स्वास्थ्य सेवा की मुख्य जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है, पर केंद्र का उत्तरदायित्व है, नई नीतियां तैयार करना, नई दिशा दिखाना।

इस देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा इसलिए बेकार नहीं है कि सरकार के पास पैसा नहीं है। दक्षिण पूर्व एशिया के कई देश भारत से गरीब हैं, लेकिन वहां की स्वास्थ्य सेवाएं विकसित पश्चिमी देशों से मुकाबला कर सकती हैं। हमारी स्वास्थ्य सेवा में सुधार इसलिए नहीं आया है, क्योंकि सरकारों ने कभी वास्तविक सुधार लाने का प्रयास ही नहीं किया। मंत्रियों को इसकी जरूरत क्यों महसूस हो, जब अपने इलाज के लिए वे देश के बेहतरीन अस्पतालों या विदेशी अस्पतालों में जाते हैं? डेंगू जब महामारी का रूप धर लेती है, तब मंत्रियों के आवास के आसपास साफ-सफाई का इंतजाम होने लगता है। साफ-सफाई का यही इंतजाम अगर पूरे शहर-महानगर में किया जाए, तो डेंगू जैसी बीमारियां होतीं ही नहीं।

दोष हमारा भी है कि हमने अपनी सरकारों से कभी बेहतर स्वास्थ्य सेवा हासिल करने की कोशिश नहीं की। बिजली-पानी के अभाव को लेकर जिस तरह सड़कों पर हंगामा मच जाता है, उस तरह का हंगामा खराब स्वास्थ्य सेवाओं के खिलाफ जब होगा, तभी वह असली परिवर्तन आएगा, जिसका वायदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। स्वास्थ्य सेवा में बदलाव की जितनी आवश्यकता है, उतनी शायद ही किसी और सेवा में हो। महानगरों में यह हाल है, तो कल्पना की जा सकती है कि गांवों-देहातों में स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों का क्या हाल होगा।