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बीमार हुआ भरोसा, करना होगा 'उपचार" - डॉ सचिन चित्‍तावर

हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि हम ऐसे देश में रह रहे हैं, जहां हमें बहुत ही सस्ता, मगर गुणवत्तापूर्ण इलाज उपलब्ध है। दुनिया के विकसित देशों में भी इतनी बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। भारतीय चिकित्सकों की गुणवत्ता और भरोसे के कारण ही दुनियाभर से मरीज भारत आकर इलाज कराना पसंद करते हैं। मगर कैसी हैरत की बात है कि भारत में ही डॉक्टरों पर सबसे ज्यादा अविश्वास किया जाता है। किसी एक डॉक्टर द्वारा की जाने वाली लापरवाही के कारण भारत के सभी डॉक्टरों की छवि दांव पर लग जाती है। जोर-शोर से कहा जाने लगता है कि भारत के डॉक्टर यकीन के काबिल नहीं रहे। लेकिन अगर आप आंकड़ों से तुलना करें तो पाएंगे भारत में मरीज के जीवन के साथ लापरवाही के मामले बिलकुल नगण्य हैं। इस लिहाज से भारतीय डॉक्टर पूरी ईमानदारी से काम कर रहे हैं। हमें उन डॉक्टरों की मेहनत को प्रकाशित करना चाहिए। उन पर गर्व करना चाहिए। अभी यह हो रहा है कि हम नकारात्मकता को देखने और उसे ही बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करने के आदी हो गए हैं। अब समय आ गया है कि हमें सकारात्मकता की ओर देखना चाहिए। उन मिसालों की ओर देखिए जहां इकलौते डॉक्टर कई-कई मरीजों को भला-चंगा बना रहे हैं। भारत और इंग्लैंड के बीच ही अगर आप तुलना करके देखें तो पाएंगे कि वहां सर्दी और कैंसर दोनों के लिए तमाम तरह की जांचों से गुजरना पड़ता है। वहां इलाज कराने का जो खर्च है, वह तो कल्पना से भी परे भी है। भारत में तमाम आलोचनाओं के बावजूद हर आदमी को डॉक्टर उपलब्ध है, इलाज उपलब्ध है, दवाइयां उपलब्ध हैं। गंभीर बीमारियों की दशा में भी हमारे यहां सरकारी अस्पतालों में अच्छा इलाज मिलता है। श्रेष्ठ डॉक्टर मिल जाते हैं। फिर भी भारत की कमियों पर ही बात ज्यादा होती है। यहां जो कमियां हैं उन्हें जनसंख्या के पैमाने पर भी तौलकर देखना होगा और तभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचना ठीक होगा। सीधे-सीधे भारत की विकसित देशों से तुलना ठीक नहीं है। ऐसी तुलना हमें पूरी तस्वीर देखने से रोक देती है।


मेरा मानना है कि डॉक्टरों को उनकी जिम्मेदारी पूरी आजादी के साथ निभाने का मौका दिया जाना चाहिए। अभी पिछले महीनों की बात है कि भोपाल के एक अस्पताल में पलंग टूटे होने पर दो डॉक्टरों को निलंबित कर दिया। क्या यह डॉक्टर की जिम्मेदारी होना चाहिए कि पलंग की व्यवस्था करे या उसका काम अच्छा इलाज देना होना चाहिए?


डॉक्टरों को अगर उनका काम करने दिया जाए तो वे बेहतर नतीजे दे सकते हैं और दे रहे हैं। अक्सर सरकारी और निजी अस्पतालों के बीच की सुविधाओं और दोनों की स्थितियों के बीच भी तुलना होती रही है, लेकिन यह डॉक्टरों की इच्छाशक्ति नहीं बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की वजह से है। दिल्ली में ही अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की व्यवस्थाएं देखिए। आप पाएंगे कि वह निजी अस्पतालों को भी गुणवत्ता के मामले में मात करता है। तो सरकारी अस्पतालों की व्यवस्थाएं भी बदली जा सकती हैं, बशर्ते उन्हें बदलने की नीयत हो और यह सिर्फ डॉक्टर्स का काम नहीं है, सभी का काम है।


हमारे यहां फिर भी सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था क्यों नहीं बदलती, यह सवाल राजनेताओं से पूछा जाना चाहिए, लेकिन लोग सिर्फ डॉक्टरों को कोसते नजर आते हैं। इसकी वजह यह है कि हर किसी को सॉफ्ट टारगेट की तलाश होती है और चिकित्सा व्यवस्था में डॉक्टर ही सॉफ्ट टारगेट हैं। सबसे पहले उनकी ही आलोचना होती है। डॉक्टर तो अस्पताल की पूरी व्यवस्था में बहुत मामूली कड़ी भर होते हैं। आप अस्पतालों के प्रबंधन को देखेंगे तो पाएंगे कि उसमें डॉक्टर तो इक्का-दुक्का हैं। ऐसे में अस्पताल में किसी भी तरह की लापरवाही का सारा दोष सिर्फ डॉक्टर पर डालना कितना उचित है।

आप ही देखिए कि मध्यप्रदेश में ड्रग ट्रायल का इतना ज्यादा हल्ला मचा कि अब प्रदेश में ड्रग टायल ही बंद हो गए हैं। इसका नुकसान डॉक्टर को नहीं, बल्कि मरीजों को हो रहा है। अगर देश में कोई रिसर्च होती है तो उससे दवाएं सस्ती होंगी और इलाज सस्ता होगा तो अंतत: तो फायदा मरीजों को ही होगा। चिकित्सा में ड्रग ट्रायल अगर बंद हो जाए तो दवाएं कभी सस्ती नहीं होंगी और इलाज भी कभी सस्ता नहीं होगा। अब डायबिटीज के लिए वैक्सीन का ट्रायल चर्चा में है, मगर हम ट्रायल ही बंद कर देंगे तो गंभीर बीमारियों के इलाज की राह कैसे खुलेगी? किंतु हमने माहौल को ऐसा बना दिया है कि हम डॉक्टरों को अविश्वास के चश्मे से ही देखने लगे हैं। हमें निगरानी और व्यवस्था कायम करना चाहिए, न कि नवाचार से ही परहेज कर लेना चाहिए।


मुझे लगता है कि इस समय का सबसे ज्वलंत प्रश्न है कि डॉक्टर और मरीज के बीच का भरोसा लगातार कम होता जा रहा है। यह मौजूदा समय का सबसे बड़ा संकट है और इस भरोसे को बहाल करना हमारी प्राथमिकता होना चाहिए। किसी एक डॉक्टर के कारण पूरे समुदाय पर प्रश्नचिह्न खड़ा करने से मरीज डॉक्टर के नाम से ही डरने लगेगा और यह हो भी रहा है। हमें इस टूटे भरोसे को फिर से जोड़ना होगा। हमारे देश में डायबिटीज और दिल के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि हमारी जीवनशैली बदल गई है। जीवनशैली से जुड़ी इन दोनों मुश्किलों के निदान के लिए हमें कुशल डॉक्टर्स की जरूरत होगी। हमें अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छे चिकित्सक चाहिए। हमें अभी मातृ मृत्युदर पर लगाम लगाना है, हमें नवजात बच्चों की जान बचाने की तरफ अधिक ध्यान देना है, गैर-संक्रामक बीमारियों यानी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के प्रति जागरूकता पैदा करना है। इन सभी लक्ष्यों के लिए हमें कुशल डॉक्टरों की जरूरत होगी और उनके बिना हम उत्तम स्वास्थ्य के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाएंगे। किसी भी देश को अगर तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ना है तो वहां के नागरिकों का स्वस्थ होना अनिवार्य शर्त है। हमें लोगों को स्वास्थ्य हासिल करने के लिए प्रेरित करने वाली नीतियां बनाने की जरूरत है। हम विकसित देशों की तकनीक जरूर अपनाएं, लेकिन हमें उनकी जीवनशैली से परहेज करना होगा। वरना बीमारियां हमारी उपलब्धियां खा जाएंगी। अगर हम स्वास्थ्य को प्राथमिकता देंगे तो खुशी भी हासिल कर पाएंगे। तनाव के कारण युवा जल्दी ही हृदयरोग और डायबिटीज के शिकार हो रहे हैं तो यह हमारी ज्यादा बड़ी चिंता है। हमें संस्थाओं और नीतियों को सुधारने के साथ ही व्यक्तिगत स्वास्थ्य की ओर भी देखना होगा। स्वास्थ्य की उपेक्षा करके कोई व्यक्ति और कोई देश सच्ची तरक्की हासिल नहीं कर सकता।

 

-लेखक एम्‍स में एंडोक्राइनोलॉजिस्‍ट हैं।