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बुंदेलखंड: खाली होते गाँव, बचे तो बस घरों में ताले और बुजुर्ग

"यहां रोज़गार नहीं, एक दिन खेत की रखवाली न करो अन्ना जानवर पूरी फसल बर्बाद कर देते हैं, किसान क्या करे, बाहर कुछ तो काम मिल जाता है। यहां रहकर क्या करेंगे, "अपने घर के सामने खड़े शेखर सिंह अपने खाली होते गाँव के बारे में बताते हैं। उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के कबरई विकास खंड के एज हजार से ज्यादा आबादी वाले दमौरा गाँव में 40 प्रतिशत से ज्यादा किसानों ने गाँव छोड़ दिया है।
 
 इस गाँव के रहने वाले 432 परिवारों में से 100 से अधिक परिवार चले गए हैं। शेखर सिंह आगे कहते हैं, "अब तो लोग सिर्फ अपने बच्चों की शादियां करने गाँव में आते हैं, शादी करने के बाद पेट पालने के लिए चले जाते हैं। यहां क्या करेंगे, कुछ है ही नहीं करने को। अपने बच्चों को क्या खिलाएंगे। बहुत से लोग पूरे परिवार के साथ दिल्ली में रहते हैं।" बुंदेलखंड के सात जिलों, बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी और ललितपुर से 20 फ़ीसदी आबादी पलायन कर गई है, साल 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश के 26.9 लाख लोग पलायन कर गए हैं। इसमें बुंदेलखंड के ज्यादातर लोग हैं।

पलायन करने वालों में से ज्यादातर किसान ही हैं, पिछले कई वर्षों से सूखे की मार झेल रहे, कई किसानों पर तो बैंक का कर्ज भी है। ज्यादातर ग्रामीणों ने अपनी बंजर भूमि पर कर्ज ले रखा है। जिसका ब्याज समय से चुकता करने के चलते भी किसानों को जनपद से बाहर जाना पड़ता है। कुल मिलाकर पलायन को मजबूर इन किसानों के हालात ठीन नही कहे जा सकतें हैं। वहीं इसी गाँव के मुन्नीलाल कहते हैं, "सब दिल्ली गए हैं कमाने के लिए, यहां मजदूरी नहीं, अन्ना जानवर फसल बर्बाद करते हैं। अब तो गाँव में बस बुर्जु्ग ही बचे हैं।" गांव के 40 प्रतिशत परिवारों के पलायन करने के चलते इस गांव में बनी अधिकांश सड़कों पर सन्नाटा पांव पसारे दिखाई देता है।

 आबादी के नाम पर उम्र के आखिरी पड़ाव गुजार रहे बुजुर्ग ही बचे हैं। फसल बर्बादी के बाद अब कई गाँवों में किसान पलायन को मजबूर हैं। प्रवास सोसाइटी ने आंतरिक समिति की रिपोर्ट के आधार पर बुंदेलखंड के जिलों में बांदा से सात लाख 37 हजार 920, चित्रकूट से तीन लाख 44 हजार 801, महोबा से दो लाख 97 हजार 547, हमीरपुर से चार लाख 17 हजार 489, उरई (जालौन) से पांच लाख 38 हजार 147, झांसी से पांच लाख 58 हजार 377 व ललितपुर से तीन लाख 81 हजार 316 किसान और कामगार आर्थिक तंगी की वजह से महानगरों की ओर पलायन कर चुके हैं।
 
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