Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/बुनियादी-ढांचे-की-बदलती-परिभाषा-नंदन-नीलेकणि-12345.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | बुनियादी ढांचे की बदलती परिभाषा-- नंदन नीलेकणि | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

बुनियादी ढांचे की बदलती परिभाषा-- नंदन नीलेकणि

अगर बाल्टी में छेद हो, तो इस धरती का पूरा पानी भी उसे कभी नहीं भर सकता। वित्त मंत्री को न सिर्फ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बौद्धिकता को प्रोत्साहित करने के लिए फंड मुहैया करना होगा, बल्कि हाशिये के लोगों को भी देखना होगा। साफ है, हमें अपनी बुनियादी समस्याओं पर भी उतना ही ध्यान देने की जरूरत है, जितना महत्वाकांक्षी बड़ी परियोजनाओं पर। दोनों सिरों को साधना अब कोई आश्चर्य की बात भी नहीं रही, क्योंकि यह भारत की एक हकीकत बन चुकी है। फिर भी, जो सच है, उसे कुबूल करना चाहिए। महत्वाकांक्षा के साथ उसका घालमेल नहीं होना चाहिए।


वित्तीय समावेशन के मामले में भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है। पिछले तीन वर्षों में ही हमने 31 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले हैं। इसकी वजह ‘इलेक्ट्रॉनिक नो योर कस्टमर' (ई-केवाईसी) है। ई-केवाईसी के कारण आधार की मदद से बैंक खाते महज पांच मिनट में खोले जाते हैं। इसी तरह, आज एक सामान्य नागरिक भी यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) की मदद से किसी भी बैंक एप से विभिन्न बैंक खातों में पैसे भेज सकता है। यूपीआई भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम द्वारा विकसित भुगतान का एक नया माध्यम है। यूपीआई से एक महीने में 15 करोड़ से अधिक बार लेन-देन हो रहा है, जो क्रेडिट कार्ड द्वारा इसी दरम्यान होने वाले लेन-देन से कहीं अधिक है। हम इस मुकाम तक इसलिए पहुंच सके हैं, क्योंकि देश ने सही समय पर डिजिटल ढांचे की तरफ कदम बढ़ाए और उसमें निवेश किए।


वित्त मंत्री ने बजट की शुरुआत में इस पर जोर दिया कि सरकार का मुख्य ध्यान ढांचागत सुधार है। वाकई, बुनियादी ढांचे को दुरुस्त किए बिना हम अपनी विविध तरह की जटिल समस्याओं से पार नहीं पा सकते। मगर ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर' की परिभाषा को व्यापक बनाना होगा। मौजूदा डिजिटल युग में इन्फ्रास्ट्रक्चर का अर्थ सिर्फ सड़क, पुल और हाई-वे बनाना ही नहीं है, बल्कि सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट किट (एसडीके) व एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) को मजबूत करना भी है। सरकार की भूमिका नई दिल्ली से सभी समस्याओं का परंपरागत फॉर्मूले से हल निकालने तक सीमित नहीं होनी चाहिए। उसे जमीनी स्तर पर ऐसे इनोवेटर को भी बढ़ावा देना होगा, जो स्थानीय संदर्भों के अनुसार समस्याओं का हल निकालने में सरकार की मदद कर सकें।

इसे समाधान का ‘सोसाइटिकल प्लेटफॉर्म अप्रोच' यानी समाज-आधारित नजरिया कहा जा सकता है। इसका मतलब है कि सरकार अकेले हमारी सभी समस्याओं का हल नहीं निकाल सकती, वह समाज, स्थानीय सरकार व बाजार को संदर्भ-आधारित समाधान निकालने के लिए सही माहौल देती है। मुझे खुशी है कि इस साल बजट में इस नजरिये को पर्याप्त तवज्जो दी गई है। पांच लाख वाईफाई हॉटस्पॉट बनाने जैसी घोषणाएं किस कदर सफल हो सकती हैं, इसकी कल्पना हम आज कतई नहीं कर सकते। इससे पांच करोड़ ग्रामीण नागरिकों तक ब्रॉडबैंड की पहुंच सुनिश्चित हो सकेगी। इसी तरह, इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन सिस्टम ‘फास्टैग' का हमने जबर्दस्त फायदा देखा है। फास्टैग आधुनिक वायरलेस तकनीक पर आधारित एक इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था है, जिसका इस्तेमाल टोल बूथ के अलावा पार्किंग और ‘कंजेशन प्राइसिंग' में भी किया जा सकता है। यानी अत्यधिक भीड़भाड़ वाले वक्त में गाड़ियों की संख्या निर्धारित करने में भी हम फास्टैग उपयोग कर सकते हैं।

इन इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों की खूबसूरती यह है कि इनका दायरा बढ़ाया जा सकता है। जब बुनियाद तैयार हो जाती है, तो इमारत तैयार होने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। उसका लाभ भी हमें अपेक्षाकृत कहीं तेजी से मिलने लगता है। अब हमारे पास वित्तीय समावेशन की बुनियादी व्यवस्था मौजूद है, लिहाजा हम ‘फाइनेंशियल रिजियलेंस' यानी वित्तीय उदारता की तरफ बढ़ सकते हैं। प्रधानमंत्री जन-धन योजना के कारण ही जिस तेजी से आर्थिक पहुंच का विस्तार हुआ है, उसे देखते हुए बजट में यह घोषणा की गई है कि सभी 60 करोड़ मूल खातों को इसमें शामिल किया जाएगा और इन खातों के माध्यम से माइक्रो-इंश्योरेंस और असंगठित क्षेत्र की पेंशन योजनाओं के लाभ दिए जाने के उपाय किए जा रहे हैं।


वित्त मंत्री ने जीएसटी नेटवर्क के डाटा का इस्तेमाल करके सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योगों को कर्ज देने की अपनी मंशा भी बजट में जाहिर की है। जीएसटी नेटवर्क की रीढ़ चूंकि तकनीक है, इसलिए वह हमें एक ऐसी प्रणाली बनाने को प्रेरित करती है, जहां छोटे से छोटा कारोबारी भी ऑनलाइन (बिना कागजी प्रक्रिया के) अपने टैक्स डाटा के आधार पर तुरंत कर्ज पा सकता है। ट्रीड्स यानी ट्रेड रिसीवबल्ज ई-डिस्काउंटिंग सिस्टम को भी काफी प्रोत्साहन मिलेगा। सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योगों के लिए बड़ी राहत यह है कि ई-मूल्यांकन प्रणाली की तरफ कदम बढ़ाए गए हैं। आधार की तरह ही यूनीक पहचान संख्या बनाने से इनके फायदे निचले दर्जे के उद्यमियों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी। हम जल्द ऐसा होते देख सकेंगे, क्योंकि इसका ढांचा हमने पहले से ही तैयार कर रखा है।

शिक्षा के मामले में भी सरकार ने ठीक यही रुख अपनाया है। बजट में साइबर और भौतिक, दोनों तंत्रों को आपस में जोड़ने की बात कहना सही दिशा में कदम बढ़ाना है। इस पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग काम करेगा। सरकार डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने पर भी निवेश कर रही है, जिसका उदाहरण दीक्षा है, जो शिक्षकों का एक डिजिटल मंच है। इसी तरह, यदि हम चाहते हैं कि ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना' को सफलतापूर्वक लागू किया जाए, तो हमें स्वास्थ्य क्षेत्र में भी संस्थागत सुधार और डिजिटल ढांचे की जरूरत होगी।

बेशक अभी हमारा तंत्र कुछ कमजोर है, पर हमें यह मानना होगा कि अब तक हमने अच्छी प्रगति की है। हम ऐसा तंत्र बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जो हमारी जटिल समस्याओं का भी हल निकाल सके। सच यह भी है कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में बजट सभी सवालों के जवाब नहीं दे सकता। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में हवाई चप्पल से लेकर हवाई जहाज तक की बात कही है। मगर उसका मूल कथ्य यही है कि सरकार भौतिक व डिजिटल, दोनों इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करने जा रही है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)