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बेगाने होते बच्चे-- आशुतोष चतुर्वेदी

पहले तनाव सिर्फ वयस्क लोगों में होता था, लेकिन अब इसकी चपेट में बच्चे भी आ गये हैं. बच्चों में तनाव सबसे अधिक पढ़ाई को लेकर है, माता-पिता से संवादहीनता को लेकर है. परिवार, स्कूल और कोचिंग में वे तारतम्य स्थापित नहीं कर पाते और तनाव का शिकार हो जाते हैं.

 

हमारी व्यवस्था ने उनके जीवन में अब सिर्फ पढ़ाई को ही रख छोड़ा है. रही सही कसर टेक्नोलॉजी ने पूरी कर दी है. मोबाइल और इंटरनेट ने उनका बचपन ही छीन लिया है. वे बच्चे से सीधे वयस्क बन जाते हैं. शारीरिक रूप से भले ही वे वयस्क नहीं होते, लेकिन मानसिक रूप से वे वयस्क हो जाते हैं. उनकी बातचीत, आचार-व्यवहार में यह बात साफ झलकती है.

दूसरी ओर माता-पिता के पास वक्त नहीं है, उनकी अपनी समस्याएं हैं. नौकरी और कारोबार की व्यस्तताएं हैं, उसका तनाव है. और जहां मां नौकरीपेशा है, वहां संवादहीनता की स्थिति और गंभीर है.

बच्चे माता-पिता से खुलकर बात नहीं कर पाते. आप अपने आसपास गौर करें तो बच्चों को गुमसुम, परिवार से कटा-कटा सा पायेंगे. स्कूल उन्हें अच्छा नहीं लगता, इम्तिहान उन्हें भयभीत करता है. नतीजतन, वे बात-बात पर चिढ़ने लगते हैं और स्कूल और घर दोनों में आक्रामक हो जाते हैं. कई बार ऐसे अप्रिय समाचार भी सुनने को मिलते हैं कि किसी बच्चे ने तनाव के कारण आत्महत्या कर ली. आईआईटी जैसे संस्थानों के छात्र भी ऐसा कर गुजरते हैं. किसी भी समाज और देश के लिए यह बेहद चिंताजनक स्थिति है.

शायद आपने गौर नहीं किया कि आपके बच्चे में बहुत परिवर्तन आ चुका है. बच्चे का सोने, पढ़ने का समय, हाव-भाव और खानपान सब बदल चुका है.

आप सुबह पढ़ते थे, बच्चा देर रात तक जगने का आदी है. उसे मैगी, मोमो, बर्गर, पिज्जा से प्रेम है, आपकी सूई अब भी दाल-रोटी पर अटकी है. यह व्हाट्सएप की पीढ़ी है, यह बात नहीं करती, मैसेज भेजती है. लड़के-लड़कियां दिन-रात आपस में चैट करते हैं. आप अब भी फोन कॉल पर ही अटके पड़े हैं. पहले माना जाता था कि पीढ़ियां 20 साल में बदलती हैं, अब नयी व्याख्या है कि पांच साल में पीढ़ी बदल जाती है.
होता यह है कि अधिकतर माता-पिता नयी परिस्थितियों से तालमेल बिठाने के बजाय पुरानी बातों का रोना रोते रहते हैं. परिवर्तन तो हो गया, उस पर आपका बस नहीं है. अब जिम्मेदारी आपकी है कि आप जितनी जल्दी हो सके नयी परिस्थिति से सामंजस्य बिठाएं, ताकि बच्चे से संवादहीनता की स्थिति न आने पाये.

इन्हीं चिंताओं की पृष्ठभूमि में प्रभात खबर बिहार में बचपन बचाओ आंदोलन छेड़ने जा रहा है. इसमें प्रभात खबर की टीम विभिन्न स्कूलों में जायेगी, उनके साथ मनोविशेषज्ञ भी होंगे. हम भी जानना चाहते हैं कि बच्चे क्या सोच रहे हैं, कैसे सोच रहे हैं, उनकी महत्वाकांक्षाएं क्या हैं. हमारा मानना है कि बच्चा, शिक्षक और अभिभावक तीन महत्वपूर्ण कड़ी हैं. इनमें से एक भी कड़ी के ढीला पड़ने पर पूरी व्यवस्था गड़बड़ा जाती है. प्रभात खबर के इस कार्यक्रम में बच्चों से उनकी समस्याओं को सुना जायेगा और उनके समाधान का प्रयास भी किया जायेगा.