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बेहतर है सब्जी का उत्पादन- एस एस सिंह

देश में सब्जियों की खेती 90.2 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है, जिसमें कुल उत्पादन 16.21 करोड़ टन (162.18 मिलियन टन) होता है। देश में सब्जी की औसत उत्पादकता 17.36 टन प्रति हेक्टेयर है। सब्जियों के क्षेत्रफल में भारत की हिस्सेदारी विश्व में 12.16 प्रतिशत है, जबकि उत्पादन में 11 फीसदी। वैश्विक सब्जी उत्पादन में भारत का स्थान चीन के बाद दूसरा है।

पिछले 15 वर्षों में राष्ट्रीय स्तर पर सब्जियों के क्षेत्रफल, उत्पादन, उत्पादकता तथा उपलब्धता में सराहनीय प्रगति हुई है। घरेलू एवं राष्ट्रीय बाजारों में सब्जियों की बढ़ती मांग तथा इसकी खेती से अधिक आय के कारण सब्जी उत्पादन में किसानों की जागरूकता भी बढ़ी है। व्यावसायिक सब्जी उत्पादन से किसानों को जो आमदनी होती है, वह अन्य फसलों की तुलना में 40-50 प्रतिशत अधिक है। रोजगार सृजन में भी सब्जियां आगे हैं, क्योंकि इसकी खेती में अधिक श्रमिकों की जरूरत पड़ती है। सब्जियों की व्यावसायिक खेती बढ़ने का प्रमुख कारण अधिक उत्पादन देने वाली प्रजातियों एवं हाईब्रिड का विकास है। पिछले करीब डेढ़ दशक में सब्जियों के अनुसंधान व विकास में निजी क्षेत्रों की भागीदारी बढ़ी है। सब्जी उत्पादन में निजी क्षेत्र द्वारा अधिक पूंजी निवेश भी किया जा रहा है, जिससे रोजगार में वृद्धि हुई है।

लेकिन सब्जियों की व्यावसायिक खेती से कीटों तथा बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ा है। नतीजतन किसानों द्वारा कीटनाशक रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग किया जा रहा है। इससे जहां दमा, चर्मरोग, टीबी, कैंसर जैसे रोग बढ़े हैं, वहीं पर्यावरण प्रदूषण से सब्जियों के निर्यात में अवरोध पैदा हुआ है। ऐसे में सब्जियों की जैविक खेती पर चर्चा होने लगी है। रसायन रहित सब्जियों की खेती ही जैविक खेती है। पर व्यावहारिक तकनीक की कमी के कारण यह सफल सिद्ध नहीं हो रही। किसानों की आशंका यह है कि जैविक खेती में वे कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे, जिससे उत्पादन प्रभावित होगा। वे इस कारण भी सशंकित हैं कि जैविक खेती से उत्पादित सब्जियों का भी स्थानीय बाजारों में वही मूल्य मिलेगा, जो अजैविक सब्जी का है।

दरअसल ऐसी तकनीक अपनाने की आवश्यकता है, जिससे कीटों तथा बीमारियों के नियंत्रण के साथ कीटनाशक रसायनों का प्रयोग भी कम किया जा सके। अल्प जैविक सब्जी उत्पादन (सेमी ऑर्गेनिक वेजिटेबल प्रोडक्शन) इस लिहाज से सबसे अच्छी खेती है। इसके तहत किसान यदि अपनी फसल की नियमित निगरानी करे तथा कीटों व बीमारियों से आर्थिक नुकसान होने की आशंका में ही मान्यता प्राप्त, अपेक्षाकृत सुरक्षित रसायनों का सही मात्रा व सही समय पर विवेकपूर्ण प्रयोग करे, तो कीटनाशक रसायनों के इस्तेमाल को 50 फीसदी तक कम किया जा सकता है। इसके लिए किसानों को व्यापक स्तर पर प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। साथ ही, ऐसे कीटनाशक रसायनों के विकास पर भी ध्यान देने की जरूरत है, जो इस प्रकार की खेती के अनुकूल हो सके। ऐसे कुछ कीटनाशक विकसित किए गए हैं, पर वे आम किसानों की पहुंच से दूर हैं। इसी तरह, सब्जियों की ऐसी प्रजातियां एवं हाईब्रिड विकसित करने की भी आवश्यकता है, जो अधिक उत्पादन देने के साथ कीटों व बीमारियों के प्रतिरोधी भी हों। इसमें सार्वजनिक एवं निजी अनुसंधान संस्थानों का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।

-लेखक वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक हैं