Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/बैंक-बीमा-कंपनियां-ठग-रहे-हैं-किसान-को-योगेन्द्र-यादव-9233.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | 'बैंक-बीमा कंपनियां ठग रहे हैं किसान को'-- योगेन्द्र यादव | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

'बैंक-बीमा कंपनियां ठग रहे हैं किसान को'-- योगेन्द्र यादव

किसानों के लिए फ़सल का बीमा सुनने में बहुत अच्छा विचार लगता है लेकिन असल में जब किसान बैंक से क़र्ज़ लेता है तो बिना उससे पूछे, बिना उसकी अनुमति लिए ज़बर्दस्ती उसके अकाउंट से पैसा काटकर बीमा करवा दिया जाता है.
बीमा करवाना है या नहीं इसका फ़ैसला किसान नहीं ले सकता. बीमा किस कंपनी से करवाना है, किन शर्तों पर करवाना है यह भी किसान के हाथ में नहीं. बैंक ख़ुद फ़ैसला करता है.
बीमे के बाद कोई कागज़ किसान के हाथ में नहीं होता. दुर्घटना की हालत में उसे नहीं पता होता कि उसे बीमे का क्या भुगतान मिलना चाहिए. जब फ़सल खराब होती है तो भी किसान को नहीं मालूम कि वह कहां जाए, कहां दावा करे.
'अकाल यात्रा' के दूसरे रिपोर्ताज यहां पढ़ें
हम कई गांवों में गए जहां बहुत से किसानों को बीमे की कोई राशि नहीं मिली है. केवल महाराष्ट्र में एक दो जगहों पर किसानों को बीमे का कुछ अमाउंट मिला था.

 

अगर उसे पैसा देने का फ़ैसला होता है, तब बैंक पलटकर कहता है कि पहले आप सारा ऋण चुकाओ तब बीमे की राशि देंगे. बीमा और बैंक मिलकर किसान को ठग रहे हैं. जो योजना किसान के कल्याण के लिए बनी थी, उसका इस्तेमाल किसान पर डाके के लिए हो रहा है.
इसके लिए पूरी जानकारी करनी होगी. कुछ मामलों में पता चला है कि बैंक जो पैसा किसान से लेता है, उसे बीमा कंपनी तक नहीं भेजता. ऐसे में क्लेम कैसे मिलेगा. कुछ मामलों में ऊपर जाता है. मगर बैंक और इंश्योरेंस कंपनी की ऐसी साठगांठ होती है कि यह सुनिश्चित किया जाता है कि कंपनी को ज़्यादा पैसा न देना पड़े.
स्थानीय स्तर पर बैंक किसान की आंख में धूल झोंककर रखते हैं. एक औसत किसान जब बैंक मैनेजर के पास जाता है, तो वह शहरी ग्राहक की तरह नहीं जाता. वह बैंक को माई-बाप समझकर जाता है और बैंक मैनेजर तो उन्हें दरवाज़े से भगा देते हैं.
एक किसान ने हमें बताया कि बैंक में जाते हैं तो मैनेजर हमसे ऐसे व्यवहार करता है मानो हम भिखमंगे हैं या चोर हैं.

 

 

कागज़ पर भारत सरकार की नीतियां बहुत अच्छी हैं जो कहती हैं कि किसान को खेती के लिए सस्ती दर पर क़र्ज़ मिलेगा. कहीं सात है तो कहीं चार प्रतिशत. मध्य प्रदेश सरकार तो दावा करती है कि शून्य प्रतिशत पर क़र्ज़ दिया जाएगा पर हक़ीकत अलग है.
हक़ीकत यह कि पहले तो किसान को आसानी से क़र्ज़ मिलता ही नहीं. दूसरे, किसान से ऐसे दस्तावेज़ मांगे जाते हैं जिनकी क़ानूनन आवश्यकता ही नहीं है.
लेकिन मजबूर किसान से अगर कोई बैंक मैनेजर कहता है कि ये-ये कागज़ लेकर आओ तो क्या वह सुप्रीम कोर्ट जाएगा कि ये मेरा हक़ है कि ये दस्तावेज न मांगा जाए. उसकी इतनी ज़मीन और संपत्ति रेहन रखी जाती है, जिसका कोई क़ानूनी आधार नहीं.
मध्य प्रदेश सरकार घोषणा करती है कि अगर आप फ़सल चक्र के भीतर पैसा वापस कर देते हैं, तो कोई ब्याज नहीं देना पड़ेगा. दिक़्क़त यह है कि सरकार के फ़सल चक्र की परिभाषा उस दिन समाप्त हो जाती है, जब किसान ने अपनी फ़सल काटी भी नहीं होती. तो वह कैसे वापस करेगा?

 

 

तो कागज़ पर लिखी इबारत और व्यवहार में बहुत फ़र्क है. ज़्यादातर बैंक किसान को लोन नहीं देना चाहते. कहीं न कहीं बैंक अफ़सरों को लगता है कि इससे तो लोन डूब जाएगा.
बड़े-बड़े उद्योगपतियों को लोन देते वक़्त उन्हें यह बात याद नहीं आती. कोई 5,000 करोड़ का लोन लेकर बैठा है कोई 10 हज़ार करोड़ का. भारत सरकार उनके पास गिड़गिड़ाते हुए जाती है और कहती है कि चलो आपका ब्याज माफ़ किया, आप मूलधन दे दो. अभी नहीं, तो पांच साल बाद दे देना.
और इसे बड़े सुंदर शब्दों में कहती है कि यह लोन की रिस्ट्रक्चरिंग है. मैं सोचता हूं कि वह किसान के लिए लोन की रिस्ट्रक्चरिंग क्यों नहीं करती. किसान को क़र्ज़े की माफ़ी नहीं चाहिए. जो शर्तें हैं वो बेहतर चाहिए.
राष्ट्रीय बैंकों का किसान के प्रति रवैया या कहें कि निष्ठुरता एक जैसी है. सहकारी बैंक राज्य सरकारों के निर्देश पर काम करते हैं. उनकी नीतियां अलग हैं. कहीं किसानों को आसानी से लोन मिल जाता है तो कहीं नहीं.

 

 

असल में अंतर क्रॉप लोन में नहीं फ़सल बीमा में है क्योंकि फ़सल बीमा की शर्तें राज्य सरकार तय करती है. कहीं एक तरह से किसान को ठगा जा रहा है तो कहीं दूसरी तरह से.
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में जो बीमा योजना है, उससे किसान को कुछ नहीं मिलता.
इसकी पड़ताल करने की ज़रूरत है. मुझे लगता है कि किसान के साथ बहुत बड़ी ठगी हो रही है. हो सकता है कि यह देशभर का बहुत बड़ा घोटाला हो, जिसमें कुछ हजार करोड़ रुपया किसान से ले लिया गया और मैं नहीं जानता कि ये पैसा उसे वापस किया गया है या नहीं.
यह भी हुआ है कि जिसे फ़सल का बीमा बताया गया, वह असल में उसके बैंक से लिए गए ऋण का बीमा था. कई जगह बैंक बीमे के भुगतान से पहले शर्त रखता है कि पहले हमारा लोन वापस करो. ऐसा दुनियाभर में नहीं है पर ऐसा हो रहा है.
कई जगह किसान की कुल ज़मीन पर उससे प्रीमियम वसूला जाता है चाहे उसने वहां कुछ बोया हो या नहीं. तो इसे पूरे विस्तार से जानना ज़रूरी है.
जय किसान आंदोलन की ओर से हम इस पूरे घोटाले के तमाम आयामों की पड़ताल करेंगे, रिपोर्ट सामने रखेंगे और ज़रूरी हुआ तो कोर्ट जाएंगे.

 

 

रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया को इसके लिए नए निर्देश जारी करने चाहिए कि बैंक किसान से कैसे व्यवहार करें. क्या दस्तावेज़ मांगे जा सकते हैं, क्या नहीं. प्राथमिकता से पैसा देने के क्या नियम हों.
मुख्य उद्देश्य यह हो कि किसान को साहूकार के पास न जाना पड़े. अगर कोई जाता है तो इसका मतलब हमारी बैंकिंग व्यवस्था असफल हो गई है.
साहूकार को किसान 3 से 4 फ़ीसदी ब्याज देता है. हम शहरवाले सोचते हैं ठीक है. मगर असल में यह 3-4 प्रतिशत मासिक ब्याज है यानी साल का 36% या 48%.
हमने संवेदना यात्रा में पांच फ़ीसदी वाले यानी साल में 60% वाले बहुत से किसानों को देखा. जिस देश में किसान को 60% ब्याज देना पड़े, वहां बैंकिंग व्यवस्था पूरी तरह असफल हो चुकी है.
इसके पूरे नियम बदलने होंगे. किसान के अधिकार उसे बताने होंगे. बीमा किसान की इच्छा से होना चाहिए. भारत सरकार चाहे तो ये दो दिन का काम है.
(सामाजिक कार्यकर्ता और स्वराज अभियान के संचालक योगेंद्र यादव ने गांधी जयंती से 15 अक्टूबर तक संवेदना यात्रा की. कर्नाटक से हरियाणा तक सात राज्यों के क़रीब 40 गांवों में फ़सल बीमे और लोन की बड़ी गड़बड़ियां सामने आईं.)