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भारत के दक्षिणी राज्यों में लगभग 10 लाख महिलाओं ने कैसे बंद किया बीड़ी बनाना

द प्रिंट,

ऐसे समय में, जब भारत में बहस चल रही है कि महिला मज़दूरों पर बीड़ी उद्योग के बोझ को कैसे कम किया जाए, देश के दक्षिणी सूबे इसका एक खाका पेश कर रहे हैं. 1993 से 2018 के बीच, भारत में बीड़ी मज़दूरों की संख्या में, कुल मिलाकर 21 लाख का इज़ाफा हुआ है लेकिन दूसरी तरफ एक अच्छी खासी गिरावट भी देखी गई. दक्षिणी सूबों- तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश-तेलंगाना और कर्नाटक में, बीड़ी मज़दूरों की संख्या में, जिनमें अधिकांश महिलाएं हैं, लगभग दस लाख की कमी आई है.

ये बदलाव हाल की एक स्टडी में प्रकाश में आए, जिसे दिल्ली स्थित रिसर्च कंसल्टिंग ग्रुप एएफ डेवलपमेंट केयर ने जुलाई में प्रकाशित किया. देश की कुछ खास पॉकेट्स में बीड़ी मज़दूरों की संख्या क्यों घट रही है और पिछले ढाई दशकों में ये गिरावट दक्षिणी सूबों में कैसे आई- ये कुछ ऐसे प्रमुख सवाल हैं जिन्हें रिसर्चर्स ने अपनी रिपोर्ट में समझने की कोशिश की है जिसका शीर्षक है- नॉलेज गैप इन एग्ज़िस्टिंग रिसर्च ऑन इंडियाज़ वीमन बीड़ी रोलर्स एंड ऑल्टर्नेटिव लाइवलिहुड ऑप्शंस.

दक्षिण की महिला समर्थक नीतियां
रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण में बीड़ी मज़दूरों में कमी का श्रेय, विभिन्न महिला केंद्रित कार्यक्रमों की सफलता और दीर्घकालीन नीतियों में बदलाव को दिया जा सकता है, जिन्हें क्रमिक सरकारों ने पिछले तीन दशकों में लागू किया.

भारत में बीड़ी मज़दूरों की कुल संख्या में 84 प्रतिशत महिलाएं हैं.

दूसरे क्षेत्रों की तरह साउथ में भी, बीड़ी मज़दूर महिलाएं, कम मज़दूरी, काम के खतरनाक माहौल, सिस्टम के शोषण, सामाजिक सुरक्षा के अभाव और विभिन्न कल्याण योजनाओं तक सीमित पहुंच का शिकार थीं. लेकिन आजीविका के ज़्यादा सुरक्षित और लाभदायी विकल्प अपनाने के उनके प्रयासों में, अकसर बाधाएं आ जातीं थीं जैसे- कम शिक्षा, दूसरे कामों का अपर्याप्त कौशल, कर्ज़ की उपलब्धता और उचित व्यवसायिक प्रशिक्षण का अभाव.

नीतिगत बदलावों ने उन्हें दूसरे विकल्प दिए हैं ताकि वो आर्थिक रूप से ज़्यादा फायदेमंद, और गैर-खतरनाक पेशों पर शिफ्ट कर सकें. मसलन, 2013 की आर्थिक गणना के अनुसार, देश में महिला उद्यमियों की कुल इकाइयों में, सबसे अधिक हिस्सेदारी (13.51 प्रतिशत) तमिलनाडु की है, जहां बीड़ी मजदूरों की संख्या में सबसे ज्यादा गिरावट (541,000) देखी गई है. तमिलनाडु में महिला साक्षरता दर भी, देश में तीसरी सबसे अधिक (73.4 प्रतिशत) है.

महिला सशक्तीकरण का एक और मुख्य संकेतक- लिंग अनुपात भी, भारत के दक्षिणी राज्यों और केंद्र-शासित क्षेत्रों में बेहतर है. केरल में ये दर सबसे ऊंची है, जहां 1,084 महिलाओं पर 1000 पुरुष हैं, जिसके बाद पुडुचेरी (1,037/1,000), तमिलनाडु (996/1,000), और आंध्र प्रदेश (993/1,000) हैं.

कर्नाटक में 2006-07 में जेंडर बजटिंग को अपनाया गया और महिला व बाल विकास विभाग के सहयोग से, वित्त विभाग के तहत एक जेंडर बजट सेल का गठन किया गया.

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