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भारत के जाने-माने बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी


भारत और पाकिस्तान के दो नागरिकों को संयुक्त रूप से इस बार का शांति का नोबेल पुरस्कार दिया है. भारत से बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी व पाकिस्तान से बच्चों के अधिकारों व तालिबान के खिलाफ संघर्ष करने वाली मलाला युसूजई को एक साथ शांति का नोबेल पुरस्कार इस बार दिया गया है. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर कैलाश सत्यार्थी ने कहा था कि एक चाय बेचने वाला बच्च अगर अपनी इच्छशक्ति से देश का प्रधानमंत्री बन जाता है, तो उन्हें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी बच्चे को बाल श्रमिक बनने के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा.

कैलाश सत्यार्थी की उपलब्धि

11 जनवरी 1954 को जन्मे कैलाश सत्यार्थी भारत के जाने-माने बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं. बाल श्रम के खिलाफ 1990 से वे लगातार आंदोलन चला रहे हैं. पिछले तीन दशकों से वे बाल अधिकारों के लिए मजबूती से संघर्ष कर रहे हैं. बचपन बचाओ आंदोलन के अगुवा सत्यार्थी ने सैकड़ों बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराया है. आंकड़ों के अनुसार उन्होंने अबतक 80 हजार बच्चों का पुनर्वास कराया है. वे बाल श्रम के खिलाफ ग्लोबल मार्च से भी जुड़े रहे हैं. इसके अलावा ग्लोबल कैंपेन फॉर एडुकेशन से भी जुड़े रहे हैं. वे लोगों में बाल श्रम के खिलाफ भी जागरूकता लाने के अभियान से जुड़े रहे हैं. वे उन उत्पादों को लेकर भी जागरूकता अभियान चलाते रहे हैं, जिसमें बाल श्रम लगता रहा है.

उन्होंने हमेशा बाल अधिकारों की वकालत मानव अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में की. कालीन उद्योग, चिमनी उद्योग जैसे खतरनाक उद्योगों में बाल श्रम लगने के खिलाफ वे लंबे समय तक अभियान चलाते रहे हैं. उनके संगठन बचपन बचाओ आंदोलन ने राजधानी दिल्ली में भी हजारों बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराया है. यूनेस्को से जुड़े रहे सत्यार्थी ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी बाल अधिकारों की मजबूती से बात की और उनके लिए शिक्षा पर जोर दिया. उन्होंने बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का भी अभियान चलाया. सत्यार्थी को अबतक कई सम्मान मिला चुका है और वे बाल अधिकारों के लिए लड़ने वाला मुखर चेहरा बन चुके हैं. उन्हें 2009 में अमेरिका का डिफेंडर ऑफ डेमोक्रेसी अवार्ड, 2009 में स्पेन का अल्फंसो कॉमिन इंटरनेशनल अवार्ड, 2007 में इटालियन सिनेट का मेडल, 2006 में अमेरिका का फ्रीडम अवार्ड, 1984 में जर्मनी का इंटरनेशनल पीस अवार्ड सहित दर्जनों सम्मान मिले हैं.

मलाला की की उपलब्धि

वहीं, पाकिस्तान की किशोरी मलाला युसूफजई बीतों सालों में तालिबान के खिलाफ अपनी कविताएं लिखने के कारण चर्चा में आयी थीं. उन कविताओं में उन्हें तालिबान की हिंसा व उसके कारण बच्चों को होने वाली क्षति व उनकी शिक्षा के बाधित होने को मुद्दा बनाया. उनकी कविता के कारण तालिबान ने उनकी हत्या के खिलाफ गोली भी चलायी, जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गयी थीं. 17 जुलाई 1997 को जन्मी मलाला की उम्र इस समय मात्र 17 वर्ष है.

मलाला का जन्म पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के स्वात जिले स्थित मिंगोरा गांव में हुआ. 13 साल की उम्र से ही वह तहरीक ए तालिबान शासन के अत्याचारों से तंग आकर छद्म नाम से बीबीसी के लिए ब्लागिंग के द्वारा स्वात के लोगों की नायिका बन गयीं. ब्लॉग में वे तालिबान के कुकृत्यों के खिलाफ कविताएं व अपने अनुभव लिखती थीं. अक्तूबर 2012 में वे तालिबान आतंकियों की गोली की शिकार हो गयीं. उल्लेखनीय है स्वात में 2009 से ही तालिबान का कब्जा है. उसने वहां बच्चों के खेलने-कूदने तक पर रोक लगा दी थी.

कार में म्यूजिक बजाने व सड़क पर खेलने तक पर भी रोक लगा दी गयी थी. मलाला के संघर्षो पर पर 2009 में न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक फिल्म भी बनायी. उन्हें पाकिस्तान का युवा शांति पुरस्कार - 2011 भी मिला है. 2011 में अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार के लिए भी उनका नामांकन हुआ था. 2013 में उन्हें अंतररराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार प्राप्त हुआ. मैक्सिको का समानता पुरस्कार उन्हें 2013 में मिला व संयुक्त राष्ट्र का 2013 में मानवाधिकार सम्मान मिला. 2013 में उन्हें साखारफ पुरस्कार भी मिला.