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भू-अधिग्रहण बिल पर एनएसी में मतभेद - सुरेंद्र प्रसाद सिंह

नई दिल्ली ग्रामीण विकास मंत्रालय में भूमि अधिग्रहण विधेयक को अंतिम रूप देने का सिलसिला तेज हो गया है। ग्रामीण विकास मंत्री विलास राव देशमुख ने किसान, उद्योग संगठनों और गैर सरकारी संगठनों संग विचार-विमर्श चालू कर दिया है, लेकिन सोनिया की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) की सिफारिशों ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। दरअसल एनएसी की उपसमिति के सदस्य भूमि अधिग्रहण विधेयक में संशोधन (निजी व सरकारी अनुपात को लेकर) को लेकर बंटे हुए हैं। भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पर विभिन्न पक्षों से राय-मशविरे के बीच एनएसी ने भी अपनी सिफारिशें ग्रामीण विकास मंत्रालय को भेजी हैं। इन सिफारिशों को एनएसी सदस्य हर्ष मंदर की अध्यक्षता वाली उपसमिति ने तैयार किया है। उपसमिति के अन्य दो सदस्यों में अरुणा रॉय और डॉक्टर एनसी. सक्सेना का नाम प्रमुख है। उपसमिति ने 22 पेज की विस्तृत रिपोर्ट भेजी है। इनमें डॉक्टर एनसी सक्सेना की राय से हर्ष मंदर और अरुणा राय ने इत्तेफाक नहीं रखा है। जमीन अधिग्रहण में निजी और सरकारी अनुपात को लेकर उपसमिति में मतभेद है। डॉक्टर सक्सेना जहां 70 (निजी) और 30 (सरकारी) फीसदी के अनुपात को उचित करार देते हैं, वहीं हर्ष मंदर और अरुणा रॉय ने इसे शत प्रतिशत निजी क्षेत्र पर छोड़ देने की सिफारिश की है। डॉ. सक्सेना का तर्क है कि छोटे, मझोले किसान और आदिवासी क्षेत्रों को निजी कंपनियों पर पूरी तरह नहीं छोड़ देना चाहिए, क्योंकि कंपनियां औने-पौने दामों और अन्य तरीकों से किसानों को लुभा सकती हैं। डॉ. सक्सेना ने सरकार की जरूरतों को भी पुन: परिभाषित करने की सिफारिश की है। राहत और पुनर्वास नीति पर भी उपसमिति में मतभेद हैं। डॉक्टर सक्सेना जहां छोटी परियोजनाओं से प्रभावित किसानों के पुनर्वास का जिम्मा राज्य सरकारों पर छोड़ने की बात करते हैं, वहीं उप समिति के अन्य दोनों सदस्य इससे अलग राय रखते हैं। इस बारे में बात करने पर ग्रामीण विकास मंत्री विलास राव देशमुख ने कहा, मई के आखिर तक भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पर कोई भी अपनी राय मंत्रालय को दे सकता है।