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भूख के स्थायी समाधान की तलाश-- जयंतीलाल भंडारी

इस समय पूरी दुनिया यह देख रही है कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के तहत खाद्य सुरक्षा और भूख के मुद्दे पर भारत अमेरिका सहित विकसित देशों से एक नई न्यायोचित लड़ाई की अगुआई कर रहा है।
भारत की ओर से कहा कहा गया है कि डब्ल्यूटीओ के 11वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में खाद्य सुरक्षा के मुद्दे पर वार्ता भले ही विफल हो गई, इसलिए वह खाद्य सुरक्षा और कृषि संबंधी अन्य मुद्दों पर डब्ल्यूटीओ के कृषि हित वाले देशों का समर्थन जुटाने के लिए फरवरी 2018 में लघु-मंत्रिस्तरीय बैठक आयोजित करेगा।


इस सम्मेलन में भारत ने स्पष्ट कहा कि देश की गरीब आबादी को पर्याप्त अनाज मुहैया कराने से जुड़े खाद्य सुरक्षा कानून से वह कोई समझौता नहीं करेगा। उसने यह भी कहा कि खाद्य पदार्थों के सार्वजनिक भंडारण का स्थायी हल निकाला जाना चाहिए। इस सम्मेलन में विकासशील देशों के समूह जी-33 के 47 देशों ने कृषि मुद्दे पर भारत को पूरा समर्थन दिया। खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम पर भारत और चीन में भी एकता देखी गई। पर इस सम्मेलन में अमेरिका और यूरोपीय संघ की नकारात्मक भूमिका रही।


निस्संदेह इस सम्मेलन का यह दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष रहा कि डब्ल्यूटीओ के मौजूदा लक्ष्यों एवं नियमों पर आधारित भारत की खाद्य सुरक्षा अस्वीकृत कर दी गई। इस मुद्दे पर अगले दो साल के लिए कोई कार्ययोजना भी तैयार नहीं हो सकी। दुनिया के कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि खाद्य सुरक्षा पर भारत का पक्ष पूर्णतया न्यायपूर्ण है।


यद्यपि डब्ल्यूटीओ के नियमों के तहत 164 सदस्य देशों में से कोई भी सदस्य देश हर साल अपनी कृषि पैदावार की कीमत का दस फीसदी से ज्यादा खाद्य सब्सिडी नहीं दे सकता। लेकिन भारत ने इस प्रावधान के बदलाव के लिए लंबे समय से तर्कपूर्ण आवाज बुलंद की हुई है। भारत ने 2013 में बाली में हुए डब्ल्यूटीओ सम्मेलन में जोरदार आवाज उठाते हुए कहा था कि देश के करीब 80 करोड़ लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उसने खाद्य सुरक्षा कानून बनाया है।


इस कानून के तहत देश की बड़ी आबादी का पेट भरने के लिए खाद्यान्नों का बड़ा भंडार जरूरी है। इसके साथ-साथ देश की वर्षा पर निर्भर कृषि के लिए किसानों को सब्सिडी की भी जरूरत है। ऐसे में भारत में खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने पर सब्सिडी 10 फीसदी से ज्यादा हो जाएगी, इसलिए भारत को इस नियम में विशेष छूट दी जानी चाहिए। इसके समाधान के लिए 2013 में बाली में हुए सम्मेलन में 'पीस क्लॉज' नाम से एक अस्थायी समाधान निकाला गया।


इसके अंतर्गत व्यवस्था दी गई कि कोई भी विकासशील देश यदि 10 फीसदी से ज्यादा सब्सिडी देता है, तो कोई अन्य देश इस बात पर आपत्ति नहीं करेगा। चूंकि यह एक अस्थायी व्यवस्था के तौर पर ढूंढा गया विकल्प था, अत: भारत ब्यूनस आयर्स सम्मेलन में खाद्य सुरक्षा का स्थाई समाधान चाहता था। प्रख्यात अर्थशास्त्री एवं नोबल पुरस्कार विजेता जोसेफ ई स्टिग्लिट्ज का कहना है कि डब्ल्यूटीओ का एजेंडा एवं उसके परिणाम दोनों ही विकासशील देशों के खिलाफ हैं।


यह पाया गया है कि अमेरिका और विकसित देश आर्थिक संरक्षणवाद की अधिक ऊंची दीवारें खड़ी करते जा रहे हैं। आउटसोर्सिंग जैसे संरक्षणवादी कदम के अलावा अंतरराष्ट्रीय व्यापार को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। विकसित देशों में घरेलू स्तर पर नौकरियों को बढ़ावा देने की अंतर्मुखी नीति का परिदृश्य भारत सहित विकासशील देशों के लिए एक बड़ी आर्थिक चुनौती बन गया है।