Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/भूख-में-तनी-हुई-मुट्ठी-का-नाम-रविभूषण-11535.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | भूख में तनी हुई मुट्ठी का नाम...-- रविभूषण | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

भूख में तनी हुई मुट्ठी का नाम...-- रविभूषण

धूमिल (9 नवंबर 1936-10 फरवरी 1975) ने लिखा था, 'भूख से रियाती हुई फैली हथेली का नाम दया है, और भूख में तनी मुट्ठी का नाम नक्सलबाड़ी है' (नक्सलबाड़ी कविता, संसद से सड़क तक, 1972 में संकलित). बाद में नागार्जुन ने अपनी एक कविता में यह सवाल किया, 'भुक्खड़ के हाथों में यह बंदूक कहां से आई?' भारतीय राजनीति पर फरवरी 1967 के लोकसभा चुनाव का रैडिकल प्रभाव पड़ा. पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में भाग लेकर माकपा ने बंगला कांग्रेस के साथ मिल कर संयुक्त माेर्चा की गठबंधन सरकार बनायी, जिसने पार्टी में फूट पैदा की. चारू मजूमदार ने क्रांति के साथ धोखाधड़ी करने का माकपा पर आरोप लगाया.


पिछले पचास वर्ष में नक्सलबाड़ी आंदोलन पर कम नहीं लिखा गया है. बंगाल में तेभागा आंदोलन बटाईदारों का आंदोलन था, जो जमींदारों को उपज का आधा हिस्सा देने के खिलाफ एक तिहाई देने के लिए था. तेभागा अर्थात् फसल का तीन हिस्सा. तेभागा और तेलंगाना आंदोलन 1946 में आरंभ हुआ था.
आंध्र प्रदेश के नालगोंडा, बारंगल, बिदार के चार हजार गांव तेलंगाना आंदोलन से प्रभावित थे. सामंती शासकों के दमन के विरुद्ध फैले इस आंदोलन के कारण दस हजार एकड़ कृषि भूमि भूमिहीन किसानों को दी गयी. सामंतों की निजी सेना ने चार हजार किसानों की हत्या की. जुलाई 1948 तक दो हजार गांवों में कम्यून स्थापित हो चुका था. जून 1948 के आंध्र प्रदेश में माओत्से तुंग के नये लोकतंत्र पर आधारित क्रांतिकारी युद्ध नीति की बात कही गयी थी. इसी वर्ष तेलंगाना में किसान विद्रोहियों को कुचलने के लिए भारतीय सेना उतरी थी.


स्वतंत्र भारत में पहली बार नक्सलबाड़ी आंदोलन ने एक नयी राजनीतिक विचारधारा प्रस्तुत की. आरंभ से ही इस आंदोलन को लेकर जो दो दृष्टियां बनीं, वे आज भी कायम हैं. इस विद्रोह के पीछे सामाजिक-आर्थिक समस्याएं देखी गयीं और दूसरी ओर इसे विधि-व्यवस्था से जोड़ा गया. नक्सलवाद के जनक चारू मजूमदार (12 मार्च 1916-28 जुलाई 1972) तेभागा आंदोलन में शामिल रहे थे. मार्च 1967 में कृषक समिति के नेतृत्व में किसानों ने नक्सलबाड़ी में अतिरिक्त भूमि पर कब्जा किया. 23 मई 67 को जमीन पर कब्जा करने गये एक बटाईदार को जमींदार के गुंडों ने पीटा. दूसरे दिन इंस्पेक्टर सोनाम वांगड़ी की हत्या हुई.
25 मई 1967 को पुलिस फायरिंग में 11 व्यक्ति मारे गये. पूरे क्षेत्र में आग भड़क उठी. पहली बार अप्रैल 1969 में संसद विरोधी पार्टी मार्क्सवादी लेनिनवादी पार्टी का गठन हुआ. सशस्त्र संघर्ष आरंभ हुआ अर्द्ध सामंती, अर्द्ध पूंजीवादी राज्य के विरुद्ध. एक गांव का नाम पूरे देश का नाम बन गया. कुमार विकल ने 'एक गांव का नाम' कविता में लिखा- 'छह अक्षरोंवाला/ छोटा सा शब्द/ सिर्फ एक गांव का नाम नहीं/ पूरे देश का नाम है.'


नक्सलबाड़ी आंदोलन के तीन चरण हैं- 1967-1972, 1977-2003 और 2004 से अब तक. नक्सलबाड़ी आंदोलन की कई खामियां-खूबियां हैं. इसने अनेक गलतियां की. यह आंदोलन सामंत विरोधी रहा, न कि पूंजीवाद विरोधी. मैदानी इलाके से शुरू हुआ यह संघर्ष अब जंगलों में सिमट गया है.
इसका प्रभाव राजनीति, कला, साहित्य-संस्कृति सब पर पड़ा. 2009 में नक्सलवाद से 180 जिले प्रभावित थे, जो घट कर 2011 में दस राज्यों के 83 जिलों में सिमट गये हैं. आरंभ में यह किसानों का संघर्ष था. इसका एक हिस्सा विचारधारा से भटक गया. इसने पहली बार राज्य सत्ता का वास्तविक चरित्र उद्घाटित किया. 37 धड़ों में विभक्त होकर इसने अपनी ऊर्जा कम की. आज भाकपा माले (लिबरेशन) चुनाव लड़ रहा है और माओवादी बंदूक पकड़े हुए हैं. भारतीय राज्य के लिए यह सबसे बड़ा आंतरिक शत्रु है और माओवादियों के लिए भारतीय राज्य गरीब, शोषित, वंचित का शत्रु है.


माओ के समय से चीन आगे जा चुका है. भारत में माओ प्रथ-प्रदर्शक नहीं हो सकते. उत्तर माओवादी क्रांतिकारी नीति-योजना किसी के पास नहीं है. नव उदारवादी अर्थव्यवस्था से कोई भी लड़ाई पुरने तौर-तरीकों से नहीं लड़ी जा सकती. यह माओवादियों के लिए गहरे आत्ममंथन और आत्मचिंतन का समय है. उन्हें जन-संघर्ष के नये रूपों की खोज करनी होगी. भारत राज्य को भी यह सोचना होगा कि बंदूकों से समस्याएं हल नहीं होतीं. भारतीय राज्य सत्ता के प्रति विरोध और संघर्ष तब तक समाप्त नहीं होगा, जब तक वह अपना जन-विरोधी चरित्र नहीं बदले.


नक्सलबाड़ी एक गांव नहीं, एक क्रांतिकारी राजनीतिक विचारधारा है. पहली बार किसी स्थान विशेष के आधार पर कोई राजनीतिक विचारधारा जनमी. यह स्मृति ही नहीं, स्वप्न भी है, क्योंकि भारत की बहुसंख्यक जनता आज भी बदहाल है.
यह सच है कि दूर-दूर तक क्रांति के आसार नहीं हैं और सबको सोचना होगा कि गरीबी, भूखमरी, अत्याचार, शोषण, हिंसा, बलात्कार, आगजनी, आतंक से कैसे मुक्त हुआ जाये. नक्सलबाड़ी के पचास वर्ष पर आज कहीं अधिक आत्मंथन की आवश्यकता है. भारतीय राज्य और माओवाद दोनों के लिए यह नये सिरे से चिंतन का समय है.