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भूखे पेट सोते लोगों की सुध नहीं - बाबूलाल नागा

हाल में देश में बर्बाद हो रहे अनाज को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए आदेश दिया कि उन अधिकारियों की तनख्वाह काट ली जानी चाहिए जिनकी वजह से अनाज सड़ता है। अदालत ने कहा कि एफसीआई या राज्य के गोदामों में अनाज ठीक ढंग से नहीं रखा जाता है। ऐसे में निगरानी विभाग और पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को उन अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष रखरखाव की कमी के कारण बारिश में भीगकर पूरे उत्तरप्रदेश राज्य में करीब 10 लाख टन गेहूं खराब हो गया था। अनाज को सड़ते देख सर्वोच्च न्यायालय को ये टिप्पणी करनी पड़ी।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 12 अगस्त 2010 को भी केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि गोदामों में अनाज सड़ने की बजाय गरीब और भूखे लोगों को बांट देना चाहिए। अनाज को सड़ते देख सर्वोच्च न्यायालय तक को तीखी टिप्पणी करनी पड़ती है, पर हमारे कर्णधारों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। वे तो अनाज को सड़ते देखकर चुप हैं। सरकार को न अदालती फैसलों की परवाह है और न ही भूखे सोते लोगों की। देश में हर साल लाखों टन अनाज लापरवाही व भंडारण की बदइदजामी की भेंट चढ़ जाता है और सरकार इस बात को सामान्य तरीके से ले रही है।

सरकार तो 12 रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीदे गए गेहूं को सड़ाकर 6.20 रुपए प्रति किलो की दर से शराब कंपनियों को बेच देती है। स्वयं कृषि मंत्री शरद पंवार ने सदन में स्वीकारा था कि 1997 से 2007 के बीच 1.83 लाख टन गेहूं, 6.33 लाख टन धान, 2.20 टन कपास और 111 लाख टन मक्का एफसीआई गोदामों या खुले भंडारण में सड़ चुका है। सरकार को इस सड़े अनाज को ठिकाने लगाने के लिए 2 करोड़ 50 लाख रुपए खर्च करने पड़े। एफसीआई के कुल 1820 गोदामों का भंडारण क्षमता 30 जून, 2010 को 578.50 लाख टन थी, जिनमें 242.5 लाख टन धान और 335.84 लाख टन गेहूं पहले से मौजूद था। यानी कि 578.34 लाख टन अनाज से गोदाम भरे पड़े हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में हर साल करीब 50 हजार करोड़ रुपए का अनाज सरकारी कुप्रबंधन के चलते पशुओं के खाने लायक भी नहीं बचता। इस सड़े अनाज को फेंकना पड़ता है। वर्ष 2010 तक सरकार के पास 605 लाख टन अनाज था लेकिन उसके गोदामों में रखने की क्षमता सिर्फ 425 लाख टन की थी। यानी 180 लाख टन अनाज ऐसे ही पड़ा रहा। 180 लाख टन अनाज का मतलब है देश के 20 करोड़ लोगों के लिए साल भर का अनाज। जनवरी 2010 में एफसीआई के गोदामों में 10,688 लाख टन अनाज सड़ा हुआ पाया गया। अनाज की इतनी मात्रा दस सालों तक 6 लाख लोगों के भोजन के लिए पर्याप्त थी।

13 अगस्त 2010 को राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कृषि राज्य मंत्री प्रोफेसर केवी थाॅमस ने भी स्वीकारा कि देश के सरकारी गोदामों में हजारों टन गेहूं और चावल नष्ट हो रहा है। वर्षा, बाढ़, चूहे, फफूंद आदि की वजह से देश में एफसीआई के गोदामों में कुल 11708 टन खाद्यान्न क्षतिग्रस्त हुआ। राजस्थान को इस बार 85 लाख टन गेहूं के उत्पादन की उमीद है लेकिन इसकी भंडारण क्षमता महज 10 लाख टन है। इस बार 1,285 रुपए के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 100 रुपए बोनस दिया है इससे मंडी में गेहूं की आवक बढ़ी है। सरकार भी 20 लाख टन गेहंू की खरीद करेगी। यहां भंडारण क्षमता 10 लाख टन है तो बाकि का 10 लाख टन का भंडारण कैसे होगा? यहां 2.4 करोड़ जूट के बोरों की कमी है।

अनाज की बर्बादी का यह मामला नया नहीं है बल्कि हर वर्ष सरकारी खरीद का लाखों टन अनाज बर्बादी की भेंट चढ़ रहा है और हजारों करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। जितने धन की बर्बादी हो रही है, यदि उतना धन अनाज के समुचित भंडारण की व्यवस्था पर खर्च किया जाए तो अनाज की बर्बादी पर लगाम लग सकती है। भारत में भुखमरी की तस्वीर अच्छी नहीं है। दुनिया के भूखे लोगों में हर पांचवां व्यक्ति भारतीय है। इन भारतीय व्यक्ति की परवाह आज देश की सरकार को नहीं है। क्या कारण है कि हमारी सरकार ये गोदाम नहीं बनाती? क्यों यह गेहूं सड़ने से पहले गरीबों में बांटा नहीं जाता?

इन बातों का जवाब तो केवल सरकार ही दे सकती है।

(विविधा फीचर्स के सौजन्य से)