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भूमि अधिग्रहण का विरोध यों ही नहीं!

झारखंड में आदिवासियों की जमीन का मुआवजा बिचौलिये निगल गये. धनबाद में रिंग रोड के लिए अधिगृहीत की गयी जमीन के बदले आदिवासियों को ये पैसे दिये गये थे. 11 करोड़ 10 लाख रुपये की हेराफेरी का मामला सामने आया है. अगर जांच आगे बढ़े, तो यह राशि और भी अधिक हो सकती है.

मामला संज्ञान में आने के बाद पूरे राज्य में हड़कंप है. पूरे देश में इस वक्त भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर हो-हल्ला हो रहा है. किसानों और आदिवासियों के बीच इसे लेकर तरह-तरह की आशंकाएं हैं. वे चिंतित हैं. डरे-सहमे हैं. संसद से सड़क तक विधेयक का विरोध हो रहा है. इस बीच धनबाद की यह घटना इनकी आशंकाओं को और पुष्ट करती है. यहां भी विकास के नाम पर (रिंग रोड के लिए) आदिवासियों की जमीन ली गयी. बदले में पैसे दिये गये. पैसे उनके बैंक खाते में डाले गये, लेकिन मिले नहीं. आदिवासी, जो जमीन के मालिक हैं, मुंह देखते रह गये और पैसे ले गये बिचौलिये.

वो भी करोड़ों में. राज्य में बिचौलिये इस कदर हावी हैं कि वे शासन-प्रशासन को कुछ नहीं समझते, क्योंकि इसी के एक हिस्से से इन्हें संरक्षण मिलता है. बिचौलियों ने आदिवासियों के पैसे हथियाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाये. अपना बन कर चूना लगाया. पहले बैंक खाता खोलवाया. फिर खुद पहचानकर्ता बन गये. इन लोगों ने खाता खुलवाने के बाद आदिवासियों से चेक बुक पर हस्ताक्षर करा लिये. मुआवजा मिलने के बाद इन लोगों ने खाली चेक में रकम भर कर पैसे निकाल लिये. बिचौलिये कुछ आदिवासियों को शराब पिला कर अपने साथ बैंक ले गये व जमीन मालिक के नाम पैसे की निकासी कर रकम खुद रख ली. अब हाय-तौबा मची है. बड़ा सवाल यह है कि क्या पैसे के भुगतान और उसकी निकासी की सरकार की और से निगरानी की कोई व्यवस्था है या नहीं? अगर है, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

जांच रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि इस मामले में पैक्स के कुछ अधिकारियों की भी भूमिका है. सरकार को चाहिए ऐसे अधिकारियों की पहचान कर कड़ी से कड़ी सजा दे. ताकि लोगों का भरोसा कायम हो. जब तक शासन की ओर से इस तरह की कार्रवाई नहीं होगी, तब तक भूमि अधिग्रहण को लेकर भय और विरोध का माहौल रहेगा.