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भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया सवालों के घेरे में

नई दिल्ली [राजकेश्वर सिंह]। भूमि अधिग्रहण और उचित मुआवजे को लेकर उत्तर प्रदेश के किसान आंदोलनों के बाद कानून में बदलाव के लिए केंद्र सरकार हरकत में तो आ गई है, लेकिन इससे वैसी तमाम भूमि के भविष्य का सवाल अहम हो गया है जो फिलहाल अधिग्रहण की प्रक्रिया के अधीन हैं। ऐसी भूमि पर कानून के बदलाव के दौरान ही पुराने कानून के तहत अधिग्रहण का खतरा है। प्रदेश में ऐसी भूमि की कमी नहीं, जिनका अधिग्रहण अभी हुआ तो नहीं है, लेकिन अध्यादेश आने की संभावना में इन्हें पुराने कानून के तहत अधिगृहीत करने की कार्रवाई तेज हो गई है।

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री विलासराव देशमुख से गुरुवार को हुई मुलाकात के दौरान राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख चौधरी अजित सिंह ने यह सवाल प्रमुखता से उठाया। उन्होंने हवाला दिया कि अकेले उत्तार प्रदेश में प्रदेश सरकार ने 'यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास क्षेत्र' के नाम पर 1191 राजस्व गांवों की दो लाख हेक्टेयर जमीन को अधिग्रहण के लिए अधिसूचित कर दिया है। अलबत्ता वहां जिलाधिकारी के स्तर से होने वाला भूमि अधिग्रहण का अवार्ड अभी नहीं हुआ है, लेकिन उन गांवों के किसानों पर जमीन गंवाने की तलवार लटक गई है। लिहाजा कानून बनाते समय ही यह तय कर दिया जाना चाहिए कि अधिग्रहण की प्रक्रियाधीन भूमि का भी अधिग्रहण नए कानून के तहत ही होगा। नहीं तो संसद में विधेयक आने से कानून बनने तक की प्रक्रिया के दौरान ही लाखों एकड़ जमीन का वारा-न्यारा कर दिया जाएगा।

सूत्रों के मुताबिक, भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन के जरिए सरकार भूमि अधिग्रहण में जमीन देने वाले सभी भू-स्वामियों को अलग-अलग नोटिस देने पर विचार कर रही है, जबकि अभी विज्ञापन के जरिए अधिग्रहण की जाने वाली जमीन के बाबत सार्वजनिक अधिसूचना जारी की जाती है।

निजी क्षेत्र के मामले में राज्यों को यह अधिकार मिल सकता है कि वे तय करें कि कंपनियों के लिए कितनी जमीन का अधिग्रहण वे करेंगे और कितनी के अधिग्रहण की इजाजत कंपनियों को देंगे। लेकिन यह निश्चित है कि कम से कम 70 प्रतिशत जमीन का इंतजाम निजी क्षेत्र को खुद करना होगा।

बताते हैं कि सरकार कानून में बदलाव का जो मसौदा तैयार कर रही है उसमें भी कमियां हैं। मसलन भूमि अधिग्रहण की परिभाषा को स्पष्ट करना जरूरी है। 'जनहित' शब्द के प्रयोग का दायरा कितना बढ़ा होगा। सार्वजनिक व निजी भागीदारी [पीपीपी] का विषय भी अभी बहुत स्पष्ट नहीं है।