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मजदूरों की कमी ने खींची चिंता की लकीरें

जागरण संवाददाता, कपूरथला; धान की बिजाई के शुरू होने से पहले मजदूरों की कमी ने किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी है। गौर हो कि राज्य में 10 जून से धान की बिजाई शुरू हो जानी है, लेकिन अभी तक मजदूरों की बेरुखी दस्तक ने किसानों के लिए मुसीबत पैदा कर दी है। देश भर में चल रही मनरेगा मजदूरों की कमी को पूरा करने में विशेष तौर पर आड़े आ रही है। उल्लेखनीय है कि बिहार व उत्तर प्रदेश से ज्यादातर मजदूर पंजाब में मजदूरी के रेट ज्यादा होने के कारण इस राज्य की ओर रूख करते थे, परंतु जब से प्रत्येक प्रदेश में मनरेगा लागू हो गई है, तब से उन्होंने पंजाब की तरफ रूख करना कम कर दिया है। यही कारण है कि पिछले वर्ष धान के सीजन में धान की बुआई का रेट 800 रुपये प्रति एकड़ से बढ़कर 2000 रुपये प्रति एकड़ हो गया था। हालांकि, सरकार ने पिछले वर्ष सीजन में मजदूरों की कमी को देखते हुए सब्सिडी पर पेडी ट्रांसप्लाटरों से किसानों को धान की बुआई का आग्रह किया था, परंतु इस नई तकनीक को किसानों का समर्थन नहीं मिला। विशेषकर दोआबा क्षेत्र में। पिछले वर्ष दोआबा क्षेत्र में 54 पेडी ट्रांसप्लांटर किसानों ने सोसायटियों से खरीदे थे, परंतु इस वर्ष यह संख्या बहुत ही कम हो गई है, जो दो या तीन है। दोआबा क्षेत्र के प्रगतिशील किसान अमरजीत सिंह, ज्ञान सिंह, यादविंदर सिंह व बचन सिंह कहते हैं कि किसान शुरू से ही हाथ से धान की बुआई को तरजीह देता है। पिछलेवर्ष सरकार ने जो पेडी ट्रांसप्लांटर किसानो को खरीद कर दिय थे, जो बहुत ही घटिया किस्म के थे। इसलिए इस तकनीक से धान की बुआई करने से किसानो का विश्वास उठ गया है। उनका कहना है कि सरकार किसानों को नई तकनीक से परिचित कराने में विफल साबित हुई है। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि बढि़या किस्म के पेडी ट्रांसप्लांटर के माडल मंगवा कर इनको पंजाब में ही तैयार करती व सीजन में इसके तकनीकी पहलुओं से किसानों को परिचय करवाया जाता, ताकि किसानों को सीजन में किसी मुश्किल का सामना न करना पड़ता। उक्त किसानों का भी मानना है कि मनरेगा ही मजदूरों की कमी का कारण है। इसलिए यदि इस बार भी मजदूरों की कमी रही तो धान की बुआई का रेट पिछले वर्ष से भी बढ़ सकता है, जिससे किसानों पर दोहरी मार पड़ सकती है।