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मप्र की महिलाओं पर भी रोज मंडराता है 'यूपी' जैसा खतरा!

घरों में शौचालय न होने से बलात्कार के मामले बढ़ रहे हैं, यूपी कांड इसका एक ज्वलंत उदाहरण है। मप्र में करोड़ों महिलाएं रोज सुबह बुरी नजरों से गुजरती हैं।पढ़िए एक विश्लेषण...

भोपाल। यूपी में घर से शौच करने निकलीं दो लड़कियों की बलात्कार के बाद हत्या ने समूचे देश को हिलाकर रख दिया है। समाजसेवी मानते हैं कि शौचालय न होने के कारण भी यौन शोषण के मामले बढ़े हैं। अगर मप्र की बात करें, तो यहां करीब पांच करोड़ लोग अब भी खुले में शौच करते हैं। इनमें बड़ी संख्या महिलाओं की भी है।
 
लड़कियों के पढऩे न जाने का एक बड़ा कारण भी स्कूलों में शौचालय का न होना भी है। हालांकि लगातार इस दिशा में सरकारी और गैर सरकारी संगठनों की ओर से प्रयास हो रहे हैं, लेकिन स्थिति अब भी बेकाबू है।
 
उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में दो नाबालिग लड़कियों से पहले सामूहिक बलात्कार के बाद उनकी हत्या कर शवों को पेड़ से लटका दिया गया था। दोनों लड़कियां रिश्ते में बहनें थीं और अपने घर से शौच के लिए निकलीं थीं। इस दौरान ही दोनों लापता हो गई थी।

यह वाक्या बताता है कि भारत में शौचालय की कमी की सबसे बड़ी शिकार महिलाएं किस तरह होती हैं। भारत के करीब आधे अरब लोगों यानी आबादी की 48 फीसदी जनता को शौचालय के अभाव में गुजर बसर करना पड़ता है। इन्हें खुले में शौच के लिए जाना होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार गांवों में स्थिति और भी खराब है।
 
ग्रामीण इलाकों में 65 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं। इनमें शामिल महिलाओं को हिंसा और उत्पीडऩ का सामना करना पड़ता है, क्योंकि वो शौच के लिए बेहद सुबह या फिर देर रात को निकलती हैं, जब क्षेत्र में सन्नाटा होता है। कई अध्ययन बताते हैं कि शौचालय के अभाव में खुले में शौच के लिए निकलने वाली महिलाएं यौन हिंसा की ज्यादा शिकार बनती हैं।
 
खुले में शौच करने को मजबूर महिलाएं
एक आकलन के अनुसार, भारत की लगभग 30 करोड़ महिलाएं और लड़कियां खुले में शौच करने को मजबूर हैं। इनमें से ज्यादातर गरीब परिवारों की महिलाएं होती हैं। कथित तौर पर बताया जा रहा है कि बदायूं में हिंसा की शिकार दोनों नाबालिग लड़कियां अति पिछड़े समुदाय की थीं। वाटर एड की मुख्य कार्यकारी अधिकारी बारबारा फ्रॉस्ट ने इस मसले पर पिछले दिनों एक कार्यक्रम में कहा यह खौफनाक हादसा बताता है कि शौचालय के अभाव में महिलाओं और लड़कियों को कितने खतरों का सामना करना पड़ता है।
 
ज्यादातर विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाओं को ध्यान में रखते हुए भारत में शौचालय की उपलब्धता को बढ़ाने की जरूरत है। जरूरत इस बात की है कि जमीन की उपलब्धता पर निजी शौचालय बनाए जाएं और अगर जमीन उपलब्ध नहीं तो शेयर्ड शौचालय बनाए जाएं। कई जगहों पर सामुदायिक शौचालय कामयाब रहे तो कई जगहों पर नाकाम। उदाहरण के लिए भोपाल को ही लीजिए, भोपाल में सामुदायिक शौचालयों की घर से ज्यादा दूरी होने की वजह से लोग उनका इस्तेमाल नहीं करते।

हालांकि यह केवल भारत की समस्या नहीं है। केन्या और युगांडा जैसे देशों में खुले में शौच के लिए जाने वाली महिलाओं या फिर सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं के साथ यौन हिंसा होती है। भारत के नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था, पहले शौचालय, फिर मंदिर, उन्हें महिलाओं की सुरक्षा के लिए इस दिशा में जल्द से जल्द कदम उठाना होगा।
 
करोड़ों लोग कर रहे हैं खुले में शौच

राजधानी की 37 फीसदी आबादी की उम्र 18 साल से कम है, जबकि प्रदेश में इस आयु वर्ग की जनसंख्या 42 फीसदी है। जनगणना निदेशालय, यूनिसेफ और राज्य योजना आयोग द्वारा पिछले दिनों आयोजित कार्यक्रम में एक रिपोर्ट सामने आई है। इसके तहत प्रदेश में अब भी 5 करोड़ लोग खुले में शौच करते हैं। 75 प्रतिशत परिवारों के घर में पक्के शौचालय है।