Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/मलेथा-ने-एक-बार-फिर-सबको-राह-दिखाई-अनिल-प्रकाश-जोशी-7485.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | मलेथा ने एक बार फिर सबको राह दिखाई- अनिल प्रकाश जोशी | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

मलेथा ने एक बार फिर सबको राह दिखाई- अनिल प्रकाश जोशी

माधोसिंह भंडारी ने कभी नहीं सोचा था कि वह जिस गांव में पानी लाने के लिए अपना जीवन लगा देगा और अपने पुत्र की बलि भी दे देगा, सरकार उसी गांव को प्रदूषण की बलि चढ़ा देगी। सोलहवीं शताब्दी में उत्तराखंड के गांव मलेथा में माधोसिंह भंडारी ने एक ऐसा इतिहास रचा, जो हर सदी में याद किया जाएगा। यह गांव कुछ भी पैदा करने में असमर्थ था, क्योंकि यहां सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं थी। गंगा नदी बेशक नीचे थी, पर गांवों को तरसा कर निकल जाती थी। श्रीनगर गढ़वाल के राजा के प्रमुख सैनिक माधोसिंह को बार-बार अपने गांव में न मिलने वाले लगान से बड़ी शर्मिंदगी झेलनी पड़ती थी। माधोसिंह ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया और राजकीय सुख छोड़कर अपने गांव में पानी लाने की कसम खा ली। पानी लाने के दो ही रास्ते थे। पहला, गंगा, जो पहुंच से बाहर थी। पम्पिंग का विज्ञान तब तक नहीं जमा था और दूसरा, पहाड़ी के उस पार की एक छोटी नदी, जिसे पहाड़ में सुरंग बनाकर लाया जा सकता था। वह भी अपने बलबूते पर। कोई विकल्प न होने की स्थिति में माधोसिंह ने सुरंग बनाकर पानी लाने का संकल्प लिया। कल्पना की जा सकती है कि जब नई तकनीकी व हथियार नहीं थे, तब उस व्यक्ति ने 200 मीटर से ज्यादा लंबी सुरंगी नहर कैसे बनाई होगी!

यह वह गांव था, जहां एक भी फसल संभव नहीं थी, लेकिन आज यह तीन-तीन फसल लेता है। पूरे गांव का जनजीवन ही बदल गया। समृद्धि-खुशहाली की मिसाल मलेथा गांव बना। यह गढ़वाल की अनोखी दास्तां बनी और इतिहास का एक गौरवपूर्ण अध्याय लिखा गया। इसी ऐतिहासिक मलेथा गांव पर माफिया की नजर पड़ी और इसे स्टोन क्रशर का केंद्र बना दिया गया। परिणाम तय था। जहां इस गांव को नर्क बनना था, वहीं स्थानीय लोगों को कई तरह के प्रदूषण का शिकार होना था।
गांव की बैठक में इसके विरोध की बात शुरू हुई। देखते ही देखते यह विरोध एक आंदोलन में बदल गया। आसपास के गांव भी इससे जुड़ते चले गए। इस आंदोलन की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि यह एक सामूहिक प्रयासों का प्रतीक था। महीने भर चले इस आंदोलन में बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं-सभी सड़कों पर उतर आए। सारा क्षेत्र ही आंदोलनमय हो गया था। तब जाकर सरकार का माथा ठनका और उसने पहले चरण में राज्य प्रदूषण बोर्ड की टीम भेजकर सुनिश्चित करने की कोशिश की कि यह पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित श्रेणी में है। मगर सरकारी चालाकी नहीं चली। आंदोलन की ऊर्जा चूंकि आंतरिक थी, यह कतई नहीं घटी। सरकार को आखिरकार आंदोलन के आगे घुटने टेकने पड़े और इन क्रशरों के लाइसेंस निरस्त कर इन्हें बंद करना पड़ा।
मलेथा के इस आंदोलन के जरिये एक बार फिर इस गांव ने नए सिरे से इतिहास रचा है। देश-दुनिया को इस आंदोलन ने कई संदेश दिए। पहला संदेश कि पर्यावरणीय मूल्यों पर कोई समझौता स्वीकार नहीं होना चाहिए। और ऐसे आंदोलन जितने मौलिक और नैतिक होंगे, उनके प्रभाव उतने ही व्यापक होंगे। मलेथा ने यह बात तो सबको समझा ही दी है कि गांव को अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी चाहिए।
मलेथा के आंदोलन ने संदेश दिया है कि पर्यावरणीय मूल्यों से समझौता नहीं होना चाहिए।