Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/महंगाई-के-खिलाफ-खोखली-पहल-1690.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | महंगाई के खिलाफ खोखली पहल | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

महंगाई के खिलाफ खोखली पहल

नई दिल्ली [घनेंद्र सिंह सरोहा]। आईपीएल, सानिया की शादी और मोदी-थरूर विवाद के बीच बीते दिनों एक खबर महंगाई पर भी आई थी। अक्सर विपक्ष कहता है कि मीडिया हमेशा बुनियादी मुद्दों को छोड़ ग्लैमरस चीजों के पीछे भागता है। तो मंहगाई पर कटौती प्रस्ताव लाने वाला विपक्ष संसद में शशि थरूर और उनकी महिला मित्र सुनंदा के बीच कौन-सा बुनियादी मुद्दा ढूंढ़ रहा है।

यहा विपक्ष या मीडिया की गलतिया ढूंढ़ने का इरादा नहीं है, क्योंकि यह इस देश की बदकिस्मती है कि यहा कोई जननेता बचा ही नहीं है, जो आमआदमी के मुद्दों को सत्ता तक ले जा सके। और इसी वजह से बाजार के इशारे पर मीडिया तो चलता ही है, अब नेता भी चलने लगे हैं।

तीसरे मोर्चे समेत वामपंथियों ने महंगाई के विरोध में 27 अप्रैल को भारत बंद का ऐलान किया है। बीजेपी की भी 21 अप्रैल को दिल्ली में बड़ा प्रदर्शन करने की तैयारी है। इससे पहले महंगाई के विरोध में विपक्षी दलों ने अपने-अपने स्तर पर राज्यों की राजधानियों में साकेतिक विरोध-प्रदर्शन किए हैं, लेकिन इन सबके बावजूद आमआदमी को कहीं नहीं लग रहा है कि महंगाई से उसे कुछ राहत मिलने वाली है। शायद उसने मान लिया है कि अब कुछ होने वाला नहीं है। और यह उसकी नियति है।

यह बहुत भयानक स्थिति है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक देश का आम-आदमी इस महंगाई के दंश को झेल रहा है, लेकिन बहुमत के नशे में चूर सत्तारूढ़ यूपीए सरकार ने तो महंगाई को महंगाई मानने से ही इनकार कर दिया है। और विपक्ष की औकात यह हो गई है कि उसके पास संसद का बहिष्कार और राजधानियों में एक दिन के साकेतिक धरना-प्रदर्शन के अलावा कुछ बचा नहीं है। महंगाई से जन-जन त्राहि-त्राहि कर रहा है, लेकिन इसके बावजूद विपक्षी पार्टिया इसे जन-आंदोलन का रूप देने में नाकाम रही हैं।

महंगाई की आड़ में सरकार ने किस तरह आम आदमी के जख्मों पर नमक छिड़का है। इसकी बानगी बीते छह महीने में कृषि मंत्री, वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री के बयानों को पढ़कर लगाया जा सकता है। कहते हैं इस देश की जनता की याददाश्त बहुत कम होती है। इसीलिए इन बयानों को दोहराया जा रहा है। याद कीजिए जब चीनी 16 रुपये से 30 रुपये होते हुए 50 रुपये पर जा टिकी। दाल 30 से 100 रुपये प्रति किलो पर जा पहुंची और सब्जियों के दाम आसमान छूने लगे। तब कृषि मंत्री शरद पवार के बयान कुछ इस तरह थे, 'मैं ज्योतिषी नहीं हूं, जो बता दूं कि महंगाई कब कम होगी।' 'गरीब लोगों ने खाना शुरू कर दिया है, इसलिए मंहगाई बढ़ी है।' 'लोग चीनी नहीं खाएंगे तो मर नहीं जाएंगे।'

जब कृषि मंत्री ने महंगाई के लिए प्रधानमंत्री को भी जिम्मेदार ठहराया तो उन्होंने तुरंत मुख्यमंत्रियों की बैठक बुला ली। प्यास लगने पर कुआं खोदने की सलाह देते हुए बोले की खाद्य उत्पादन बढ़ाओ। कालाबाजारियों के खिलाफ कार्रवाई करो। सार्वजनिक वितरण प्रणाली मजबूत करो। जब इन बयानों से भी बात नहीं बनी तो कहा कि इस साल देश में भयानक अकाल पड़ा है, जिससे खाद्य उत्पादन कम हुआ है। वैश्विक खाद्य बाजार में भी तेजी आई है। इसलिए महंगाई बढ़ रही है।

प्रधानमंत्री ने अपने साथ योजना आयोग को भी लिया। आयोग के उपाध्यक्ष अहलूवालिया ने कहा कि रबी की फसल आने दीजिए, सब ठीक हो जाएगा। अब बारी वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की थी। उन्होंने तो कृषि मंत्री और प्रधानमंत्री से एक कदम आगे जाते हुए संसद में बयान दे दिया कि एक अरब 20 करोड़ लोगों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए अमेरिका जितनी बड़ी अर्थव्यवस्था चाहिए। यहा यह बता दिया जाए कि अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद 14.5 ट्रिलियन डालर है, जबकि भारत का 1.3 ट्रिलियन डालर।

ये सभी बयान सितंबर 2009 से फरवरी 2010 तक चले, लेकिन महंगाई में कोई कमी नहीं आई। महंगाई दर 20 फीसदी के आकड़े को छूने लगी। यहा तक आते-आते सरकार पक्के घड़े के समान हो गई। वित्तमंत्री ने बजट में पेट्रोल और डीजल की कीमतों के साथ यूरिया के दामों में बढ़ोत्तरी का ऐलान कर दिया। सऊदी अरब की विदेश यात्रा से लौटते हुए प्रधानमंत्री ने बयान दिया कि लोगों को इसे संकीर्ण नजरिए से नहीं देखना चाहिए। दीर्घकालीन नजरिए से देखना चाहिए। अगर सरकार हमेशा ही लोकलुभावन फैसले लेती रहेगी तो देश की अर्थव्यवस्था कभी भी मजबूती के साथ खड़ी नहीं हो पाएगी।

ये लोक लुभावने फैसले सरकार ने मई 2009 के आम-चुनावों से पहले क्यों नहीं लिए, जब कच्चा तेल 148 डालर प्रति बैरल को छू रहा था। बहरहाल, जब यूपीए में शामिल तृणमूल और डीएमके ने दिखाने भर के लिए त्यौरिया चढ़ाई तो अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री ने काग्रेस आलाकमान सोनिया गाधी को समझाया कि इससे महंगाई दर में मात्र 0.64 फीसदी का इजाफा होगा। सितंबर 2009 से मार्च 2010 तक इस तरह के बयान देकर दम तोड़ती आम जनता को गुमराह करने वाले प्रधानमंत्री ने मार्च के मध्य में आखिरकार संसद में इसका खुलासा कर ही दिया कि वे नहीं चाहते की महंगाई दर कम हो।

उन्होंने कहा कि महंगाई दर को उन्होंने जानबूझकर बढ़ने दिया। महंगाई बढ़ेगी तभी देश का विकास होगा। सरकार के पास पैसा आएगा। सरकार के पास पैसा आएगा तो देश में गरीबों के उत्थान के लिए योजनाएं चलाई जा सकेंगी। सरकार के इस खुलासे के बाद आम आदमी के पास अब कुछ कहने को बचा नहीं है। इसलिए वह अब चुप हो गया है।

दरअसल, अब उसने सरकार और विपक्ष दोनों से उम्मीद छोड़ दी है। उसने सरकार का कहा मान लिया है कि महंगाई को महंगाई मत मानो। इसे तो देवताओं का वरदान मानो, जिससे हमारा देश 10 फीसदी की विकास दर से दौड़ेगा।

आक्सफोर्ड में पढ़े प्रधानमंत्री और उनके आर्थिक सलाहकारों का मानना है कि इंडिया को 10 फीसदी की विकास दर से दौड़ना है तो भारत के लोगों को 100 रुपये किलो के हिसाब से दाल खानी ही होगी। जो इस दाल को खाने की हैसियत नहीं रखता है, उसके लिए सरकार ने मनरेगा जैसी सामाजिक उत्थान की योजनाएं चला रखी हैं। इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है। जो 50 रुपये की चीनी खा सकता है, वह इंडिया के लोगों साथ आ जाए और जो नहीं खा सकता, वह भारत में शामिल हो जाए, लेकिन एक मौजू सवाल यहा यह उठता है कि जो पहले से ही भारत में रह रहा है, वह कहा जाए तो उसके लिए इन आक्सफोर्ड धारियों के पास कोई जवाब नहीं है। साफ है कि वह मर जाए। जी हा, मर जाए। ऐसे व्यक्ति को इस देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है, जो इस 'इंडिया' की विकास दर को धीमा करता हो।

प्रधानमंत्री के मंत्रिमंडल के कई सदस्य इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि स्थिति को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। लोगों के पास पैसा आया है, लेकिन वे उसे खर्च करना नहीं चाहते हैं। सरकार का तर्क है कि छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के कारण देश में करीब 27 हजार करोड़ रुपये आए हैं। किसानों के 70 हजार करोड़ रुपये के ऋण माफ किए गए हैं। मंदी से बचने के लिए सरकार ने बाजार में करीब पौने चार लाख करोड़ रुपये झोंके हैं। नरेगा के माध्यम से गावों में 40 हजार करोड़ रुपये पहुंचे हैं। पाच साल पहले जो किसान एक क्विंटल गेहूं के 550 रुपये पा रहा था, आज वह 1100 रुपये पा रहा है। ऐसे में जब सरकार ने लोगों की आमदनी बढ़ाई है तो सरकार का भी हक बनता है कि वह चीजों के दाम बढ़ाए।

देश से गरीबी दूर करने का नारा इंदिरा गाधी ने सत्तर के दशक में दिया था। नारे से गरीबी तो दूर नहीं हुई, लेकिन वह आम-चुनाव जरूर जीत गई थीं। अब विश्व बैंक में काम कर चुके मनमोहन सिंह आए हैं। उनके और उनके सिपहसलारों के पास दोधारी तलवार है। जो दोनों ओर से देश से गरीब कम करती है। महंगाई बढ़ाकर वह गरीबों का इस जहान से खात्मा करती है तो कल्याणकारी योजनाएं चलाकर इस देश से गरीबी कम करने का दावा करती है। हालाकि बीते एक साल में देश में गरीबों की संख्या में एक करोड़ 36 लोगों का और इजाफा हुआ है।

[यूएनडीईएसए रिपोर्ट] देश में हर साल 17 लाख बच्चे अपना पहला बसंत नहीं देख पाते यानी मर जाते हैं। और जो बचते हैं, उनमें से 44 फीसदी कुपोषण का शिकार रहते हैं। और इन बचे हुए बच्चों के लिए सरकार के पास मनरेगा जैसी कल्याणकारी योजनाएं होती हैं।

ऐसे में प्रधानमंत्री कहते हैं कि महंगाई बढ़ने से देश की विकास दर 10 फीसदी तक पहुंच जाएगी और इस विकास दर से आए पैसे से उनकी सरकार गरीबों के उत्थाने के लिए काम करेगी तो वे झूठ नहीं बोल रहे होते हैं। वे सच कह रहें। ऐसा होगा, लेकिन तब यह मत पूछिएगा कि देश में गरीब कहा हैं। और हा, विपक्ष को थरूर और सुनंदा के बीच में कुछ ढूंढ़ लेने दीजिए, क्योंकि उसकी इतनी ही सोच रह गई है।