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महंगी गैस खपाना चाहती है सरकार

नई दिल्ली। सरकार ने कुप्रबंधन की नजीर फिर पेश की है। विदेश से आयात की गई महंगी गैस खपाने के लिए वह सस्ती घरेलू गैस की बलि देना चाहती है। इसी बाबत उसने रिलायंस इंडस्ट्रीज से केजी बेसिन के डी6 ब्लाक का गैस उत्पादन घटाने को कहा था।

लेकिन मुकेश अंबानी की इस कंपनी ने यह मांग ठुकरा दी है। इस ब्लाक क्षेत्र में उत्पादित गैस आयातित के मुकाबले कहीं सस्ती है।

लंबी अवधि के अनुबंध के आधार पर सरकारी कंपनी पेट्रोनेट एलएनजी कतर से तरल प्राकृतिक गैस [एलएनजी] का आयात करती है। पेट्रोनेट यह गैस 5.42 डालर प्रति एमएमबीटीयू [गैस की मानक यूनिट] की दर से गैस आयात करती है। जबकि इसको कहीं ऊंची दरों में मुनाफा लेकर बेचा जाता है। वहीं रिलायंस के डी6 ब्लाक की गैस 4.20 प्रति डालर प्रति एमएमबीटीयू की दर पर पड़ती है।

इन दिनों एलएनजी इस्तेमाल करने वाले तीन फर्टिलाइजर प्लांटों में मरम्मत का काम चलने की वजह से ये बंद हैं। लिहाजा पेट्रोनेट के पास गैस की भरमार हो गई है। सरकारी बिजली कंपनी एनटीपीसी का दादरी पावर प्लांट भी बुधवार से बंद हो रहा है। इससे गैस भंडारण की मुसीबत और बढे़गी।

भंडारण की समस्या से निपटने के लिए तेल मंत्रालय की 30 अप्रैल, 2010 को बैठक हुई थी। इस बैठक के मिनट्स के मुताबिक महंगी एलएनजी को खपाने के लिए मंत्रालय घरेलू गैस के उत्पादन में कटौती करने के पक्ष में है। इन मिनट्स के अनुसार गुजरात में स्थित पेट्रोनेट के दाहेज टर्मिनल में जितनी गैस आयात हुई है, उससे कहीं कम भेजी जा सकी है। यह करीब 7 करोड़ 50 लाख घनमीटर है। पेट्रोनेट के एक फैसले से भी समस्या बढ़ी है। कंपनी ने 9 कारगो के आयात के लिए दाहेज टर्मिनल को गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कारपोरेशन को लीज पर दिया था। जबकि राज्य में गैस का वितरण करने वाली प्रमुख कंपनी गेल इंडिया के पास इसके भंडारण की क्षमता है ही नहीं। मजे की बात यह है कि सरकार ने पेट्रोनेट से यह नहीं कहा कि वह एलएनजी आयात सौदों को टाल दे, बल्कि वह चाहती है कि महंगी एलएनजी के भंडारण के लिए घरेलू गैस उत्पादन को घटा दिया जाए।

रिलायंस से उत्पादन घटाने के लिए इसलिए कहा गया, क्योंकि सरकार आयातित गैस को उन ग्राहकों को खिसकाना चाहती थी, जो केजी-डी6 गैस का इस्तेमाल करते हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने सरकार की इस मांग को खारिज कर निश्चित ही उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। तेल मंत्रालय की बैठक में एक समन्वय तंत्र का गठन करने का भी निर्णय लिया गया था। इसका मकसद विदेशी एलएनजी खरीद के लिए घरेलू गैस उत्पादकों और पेट्रोनेट के बीच समन्वय स्थापित करना था। पावर और फर्टिलाइजर प्लांट न केवल सस्ता होने की वजह से डी6 ब्लाक की गैस खरीदते हैं, बल्कि इसलिए भी क्योंकि रिलायंस से उन्हें भुगतान के संबंध में कई तरह की रियायतें भी मिल जाती हैं।