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महामहिम, यही है हकीकत- अनुज कुमार सिन्हा

छह मार्च को हजारीबाग में शहीद निर्मल महतो पार्क के उदघाटन के मौके पर जब राज्यपाल पहुंचे, तो माल्यार्पण के लिए फूल तक नहीं था. जल्दबाजी में फूल का पूरा बोरा ही उठा कर लाया गया. मंच पर बैठने की ढंग से व्यवस्था तक नहीं थी. मंच छोटा था. अव्यवस्था थी.

राज्यपाल नाराज हुए और कहा कि अपने लंबे राजनीतिक जीवन में राज्यपाल के कार्यक्रम में ऐसी अव्यवस्था नहीं देखी. वन विभाग के कई सीनियर अधिकारी गायब थे. आमंत्रण भी गया था. राज्यपाल को कहना पड़ा कि वे जांच करायेंगे कि इस कार्यक्रम पर कितना खर्च हुआ है. कार्रवाई भी करेंगे.

महामहिम, यह तो आपने एक उदाहरण देखा. पूरे झारखंड में ऐसे सैकड़ों उदाहरण पड़े हैं. जब राज्यपाल के कार्यक्रम का यह हाल हो सकता है, हल्के में लिया जा सकता है, तो अन्य कार्यक्रमों का क्या हाल होगा, अंदाजा लगा लीजिए. यह झारखंड है. कोई किसी की बात नहीं सुनता. तभी तो राज्य का यह हाल है.

एक घटना से राज्य के अधिकारियों की कार्यप्रणाली को आप जान सकते हैं. आप पूरे राज्य का दौरा कर लीजिए, पता चलेगा कि हालात तो इससे भी बदतर हैं. अभी हाल में खबर आयी थी कि रांची के 22 हाइस्कूलों में लड़कियों के लिए टायलेट नहीं है. इससे शर्मनाक स्थिति और क्या हो सकती है कि हाइस्कूल में पढ़नेवाली छात्राओं को स्कूल कैंपस के पास खुले में शौच के लिए भी जाना पड़ता है.

यह कैसी व्यवस्था है? कौन है इसके लिए जिम्मेवार? सरकार बजट में प्रावधान रखती है, पैसा आता है पर काम नहीं होता, पैसा लौट जाता है पर टायलेट नहीं बनता. कोई अधिकारी दंडित भी नहीं होता. राज्य में विश्वविद्यालय कर्मचारियों की हड़ताल चल रही है, पढ़ाई प्रभावित है, किसी को चिंता नहीं.

राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब ही है. महामहिम जिस हजारीबाग में बुधवार को गये थे और लड़कियों की सुरक्षा की बात कर रहे थे, उसी हजारीबाग में पिछले दो साल में 31 महिलाओं के शव मिले. इनमें छह टीनएजर्स व आठ महिलाओं की बलात्कार के बाद हत्या हुई.

एक और उदाहरण देखिए. वित्तीय वर्ष खत्म होने में 23 दिन बाकी हैं. स्कूल छात्र-छात्राओं को पोशाक देनी थी. आज तक नहीं मिली. गरीब बच्चे फटे कपड़े पहन कर सालों भर स्कूल जाते रहे. उनका पैसा पड़ा रहा, पर बच्चों को पोशाक नहीं मिली. नाराज केंद्र ने शिक्षा के बजट में एक हजार करोड़ की कमी कर दी.

कहा कि जब पैसा खर्च ही नहीं हुआ, तो क्या करेंगे बजट बढ़ा कर. जब पैसा था, तो बच्चों को पोशाक नहीं देने के लिए दोषी कौन है? शिक्षा मंत्री या अफसर या दोनों? विधानसभा में विधायकों ने सवाल उठाया. वहां भी झूठा आश्वासन दिया गया. टेंडर और कमीशन के चक्कर में बच्चों को पोशाक नहीं मिली. यह मूलत: अपराध है. फिर भी किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई.

कोई और राज्य होता, तो ऐसे अपराध करनेवाले अफसर को निलंबित करता, बरखास्त तक कर देता. झारखंड में कार्रवाई की कोई हिम्मत नहीं जुटा पाता. यहां तो चोर-चोर मौसेरे भाई वाला फामरूला चलता है. कौन कार्रवाई करे और किसके खिलाफ करे. अगर शासन विफल हो जाये तो जनता कानून हाथ में लेती है. झारखंड भी उसी दिशा में जा रहा है.

कभी ऐसा न हो कि जिन बच्चों को पोशाक नहीं मिली, जो फटे कपड़े पहन कर स्कूल जाते रहे, वही व्यवस्था से नाराज होकर उन मंत्री-अफसरों को घेर लें, काम नहीं करने दें. राष्ट्रपति शासन में अगर कार्रवाई होती है, तो बेहतर संदेश जायेगा.

झारखंड का बुरा हाल नेताओं और अधिकारियों ने ही बनाया है. जो अच्छे अफसर हैं, वे या तो किनारे कर दिये जाते हैं या मौनी बाबा बन जाते हैं. चापलूस या भ्रष्ट अफसर जो चाहते हैं, करते हैं, कराते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि कोई रोकने-टोकने या कार्रवाई करनेवाला नहीं होता. अफसर अपनी कार्य-संस्कृति बदलने को तैयार नहीं हैं. डर है नहीं. हिम्मत देखिए वन विभाग के अधिकारियों की. कार्यक्रम राज्यपाल का और नहीं पहुंचे. महामहिम, पुरानी घटनाओं को याद कीजिए.

राजधानी रांची की यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए आपने बैठक की, आदेश दिया, शहर की सफाई को लेकर आदेश दिया, क्या पालन हुआ? नहीं हुआ. कांटाटोली में बस रुकेगी ही, रोड जाम होगा तो ह़ो, परवाह नहीं. रांची में 12 साल में कोई ऐसा पुलिस अधिकारी नहीं दिखा, जिसमें कांटाटोली को ठीक करने का जज्बा हो, हिम्मत हो.

यह बड़ा गिरोह है, काकस है, जिसे तोड़ना किसी के वश में नहीं. इसलिए राज्यपाल के आदेश पर कार्रव़ाई नहीं होती, तो कोई अचंभित नहीं होता. महामहिम, राज्य को ठीक करने का ऐतिहासिक अवसर है.

कड़े कदम लेने होंगे. दो-दो बेहतर अफसर आये हैं. अब तक वे राज्य को समझ भी चुके होंगे. इसलिए राज्य को बदनाम करनेवाले, कामचोर-बेईमान अफसरों-कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई किये बगैर राज्य का भला नहीं होनेवाला.