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महिला जनप्रतिनिधि भी आरटीआइ लगाने में आगे

पंचायती राज में 50 फीसदी महिलाओं के आने से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि अगर परिवार का हस्तक्षेप न हो और व्यवस्था सहयोग करे, तो अधिसंख्य महिला जनप्रतिनिधि हमेशा भ्रष्टाचारमुक्त समाज के साथ पंचायत में समेकित विकास की बात सोचती हैं.

प्रथम अपील एवं द्वितीय अपील तक महिला जनप्रतिनिधियों की पहुंच कम
शाहिना परवीन बताती हैं, इसके पीछे दो महत्वपूर्ण कारण हैं. अव्वल तो यह की आज भी सूचना का अधिकार समस्या समाधान करने का तरीका बन गया है. दूसरी तरफ अपील की प्रक्रिया तक जानकारी का अभाव, जिला से लेकर राजधानी पटना तक की दौड़ एवं पूरी कागजी प्रक्रिया में कमजोर होना. वैसे जहानाबाद के मखदुमपुर प्रखंड की सोलहंडी पंचायत की प्रतिमा देवी ने न सिर्फ राज्य सूचना आयोग तक अपील की, बल्कि उनके लगातार प्रयास से पंचायत सचिव को आर्थिक रूप से दंडित भी किया गया.


केस स्टडी :  एक

जमुई जिले के झाझा प्रखंड की तेलवा की पंचायत समिति सदस्या रामवती देवी अपने गांव स्थित माध्यमिक विद्यालय में बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंतित रहती थीं. रामवती बताती हैं,‘ जब पास के विद्यालय के बच्चे भ्रमण पर गये, तो मेरी जिज्ञासा अपने विद्यालय के बच्चों के भ्रमण पर जाने संबंधी जानकारी लेने की हुई. जब मैं स्कूल के प्रधानाध्यापक से इस संबंध में जानकारी लेनी चाही, तो उन्होंने गोल-मोल जवाब दिया कि पहले जो पैसा आया था, उससे एक बार छात्रों को भ्रमण कराया जा चुका है. दुबारा विद्यालय के पास भ्रमण के लिए कोई पैसा नहीं है. हेडमास्टर के जवाब से मुङो संतुष्टि नहीं हुई, क्योंकि मेरी जानकारी में एक बार भी विद्यालय द्वारा बच्चों को भ्रमण पर नहीं ले जाया गया था. मैंने कार्यशाला में सूचना का अधिकार के विषय में सुना था.  विस्तारपूर्वक पुन: जानकारी एकत्रित की और फिर सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन स्कूल के हेडमास्टर को दिया. अपने सवालों में मैंने यह जानना चाहा कि अब तक स्कूल में शैक्षणिक भ्रमण के लिए कितनी राशि आयी है तथा पिछले वर्ष कब, कहां और कितने बच्चों का भ्रमण कराया गया. भ्रमण में कितने पैसे खर्च हुए, इसकी पूरी जानकारी दी जाये.’ रमावती के आवेदन के बाद आनन-फानन में विद्यालय द्वारा एक भ्रमण कार्यक्रम आयोजित कर 10 बच्चों को देवघर ले जाया गया. आरटीआइ का आवेदन देने के साथ ही रमावती एवं उनके पति को आवेदन वापस लेने के लिए समझाने से से लेकर धमकी भरी कोशिश की गयी.


महिला जनप्रतिनिधियों के साथ ही गांव के लोगों की जिज्ञासा हमेशा ही ऐसे सटीक तरीके की तालाश में रही, जिससे कि व्यवस्था पारदर्शी बने और हर एक व्यक्ति अपनी जिम्मेवारी को समङो.


केस स्टडी : दो

मुजफ्फरपुर के मड़वन ब्लॉक स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर डॉक्टर एवं स्वास्थ्यकर्मी रात में मरीजों को सेवा देना तो दूर, अपनी ड्यूटी पर उपलब्ध ही नहीं रहते थे. न रोशनी की व्यवस्था थी और न ही किसी प्रकार के रेफरल की व्यवस्था. मड़वन की जीअनखुर्द पंचायत की वार्ड सदस्या शहनाज बानो और लालपरी जब गांव की एक महिला को रात के वक्त प्रसव के लिए ले गयी, तब अस्पताल की कुव्यवस्था से बड़ी परेशानी हुई. उन्होंने इसको दूर करने की ठानी. इन लोगों ने अस्पताल की व्यवस्था सुधारने के लिए अगले ही दिन अस्पताल अधीक्षक से कुछ सूचनाएं मांगीं. सूचना देने के बजाय अधीक्षक द्वारा व्यवस्था सुधारने का आश्वासन दिया गया. उस घटनाक्रम के बाद उक्त स्वास्थ्य केंद्र की स्थिति में सुधार हुआ. यह दीगर बात है कि सूचनाएं तो आज भी नहीं मिलीं, लेकिन इस घटना के बाद गांव के लोगों ने भी सूचना के अधिकार की ताकत को जाना एवं समझा.


केस स्टड : तीन

पंचायतों में जन सेवाओं को बेहतर करने के लिए सूचना का अधिकार का उपयोग के बिना दूसरा कोई रास्ता नहीं है. महिला जनप्रतिनिधियों का मानना है कि यदि भ्रष्टाचार दूर होगा और लोग जागरूक होंगे, तभी पंचायती राज का सफल क्रियान्वयन संभव है. ऐसे में महिला जनप्रतिनिधियों ने सूचना का अधिकार को अपने काम करने के तरीके में शामिल किया है. जहानाबाद के काको प्रखंड की बारा पंचायत में बीपीएल सूची में गड़बड़ी होने का आरोप लगा कर वहां के ग्रामीण काफी आक्रोशित थे. ऐसी स्थिति में स्थानीय वार्ड सदस्या रोशनी देवी ने बीपीएल सूची संबंधित जानकारी के संदर्भ में एक आवेदन प्रखंड कार्यालय को दिया, लेकिन कई महीने बाद भी जब रोशनी को ब्लॉक अधिकारी द्वारा कोई जवाब नहीं दिया गया, तो उसने सूचना का अधिकार का इस्तेमाल किया. रोशनी ने अपने द्वारा दिये आवेदन की स्थिति एवं उस आवेदन के आधार पर की गयी कार्रवाई की जानकारी मांगी.


केस स्टडी : चार

महिला जनप्रतिनिधि अपने राजनीतिक अधिकार के लिए भी सूचना का अधिकार का जम कर उपयोग कर रही हैं. रोहतास जिले के सासाराम प्रखंड की धौडाड़ पंचायत की पंचायत सदस्या को बैठक में नियमित शामिल होने के बावजूद बैठक भत्ता नहीं दिया गया, तो उन्होंने सूचना का अधिकार का इस्तेमाल करना ही मुनासिब समझ. इसी प्रकार जहानाबाद जिले के काको प्रखंड की नोन्हीं पंचायत की पंचायत सदस्या रीता देवी ने जब पंचायत सचिव से सूचनाएं मांगीं, तो पंचायत सचिव सहित मुखिया ने तरह-तरह का प्रलोभन दे कर सूचना के बदले काम होने के फायदे गिनाये. स्थानीय लोगों और परिजनों के दबाव के आगे रीता देवी ने भी सूचना मांगने के रास्ते चल कर अपनी समस्या सुलझायी. रीता ने पंचायत सचिव से यह जानकारी मांगी थी कि नोन्हीं पंचायत में वर्ष 2010 में हुई ग्राम पंचायत की बैठकों का कार्यवाही रजिस्ट्रर की फोटी कॉपी दी जाये. साथ ही उन्होंने यह भी जानना चाहा था कि उक्त वर्ष पंचायत के पास पंचायत प्रतिनिधियों के भत्ता के लिए कितनी राशि आयी और कितनी दी गयी.

(लेखिका द हंगर प्रोजेक्ट की कार्यक्रम पदाधिकारी हैं.)