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महिला सशक्तीकरण का माध्यम बना सोलर चरखा- पुष्यमित्र

पिछले दिनों 14वें वित्त आयोग की टीम झारखंड की वित्तीय जरूरतों का आकलन करने के लिए रांची आयी हुई थी. इस दौरान राज्य सरकार की ओर से उन्हें रांची से पिस्का नगड़ीइलाके का भ्रमण कराया गया जहां वे उन महिलाओं से मिले जो सोलर चरखा की मदद से सिल्क का धागा तैयार कर रही हैं और इस प्रयास के जरिये ये महिलाएं अपने परिवार और गांव में खुशहाली ला रही हैं. जब वित्त आयोग की टीम वहां पहुंची तो उन्होंने देखा कि झारक्राफ्ट द्वारा बनाये गये कॉमन फेसिलिटी सेंटर में ये महिलाएं तरह-तरह के चरखों की मदद से कोकून से रेशम धागा तैयार करने में जुटी हैं और इन मशीनों ने महिलाओं की कार्यक्षमता और कार्यकुशलता में बड़ा फर्क ला दिया है.

बरसों से धागा बनाती हैं महिलाएं
दरअसल झारखंड में अर्जुन पेड़ पर पलने वाले रेशम कीट से तसर धागा तैयार करने का काम महिलाएं बरसों से करती रही हैं. मगर ज्यादातर महिलाएं यह काम बिना किसी उपकरण की मदद से करती थीं या बहुत हुआ तो लकड़ी की तकली या चरखे का इस्तेमाल कर लिया. इससे वे एक दिन में बहुत कम धागा तैयार कर पाती थीं और धागे की गुणवत्ता भी बहुत बेहतर नहीं होती थी.

ऐसे तैयार हुई मशीन
इस समस्या का समाधान निकालने के क्रम में पहले रीलिंग मशीन गढ़ी गयी और बाद में उसे सोलर उपकरणों से जोड़कर ऐसा बनाया गया कि गरीब महिलाएं बहुत कम खर्च में इसका इस्तेमाल कर सकें. झारक्राफ्ट से मिली जानकारी के मुताबिक पहले वे सीएसटीआरआइ बेंगलुरू द्वारा तैयार स्पिनिंग और रीलिंग मशीन का इस्तेमाल किया करते थे. मगर उस मशीन की उत्पादकता काफी कम थी और एक महिला दिन भर काम करने के बाद बमुश्किल 50 रुपये कमा पाती थीं. बाद में उन्होंने महसूस किया कि हिंद मशीनरी, भागलपुर द्वारा तैयार स्पिनिंग मशीन ज्यादा बेहतर नतीजे दे रही है. इससे प्रति व्यक्ति उत्पादकता में काफी फर्क आ जाता है. हालांकि सीएसआरचीआइ की मशीन से तैयार धागे की गुणवत्ता बेहतरीन थी मगर उसकी उत्पादकता काफी कम थी. जो एक महिला के मेहनताने के लिए अपर्याप्त हो रहा था.

सोलर कंपनी से गंठजोड़
इन तमाम मशीनों के अनुभवों का सहारा लेते हुए झारक्राफ्ट ने सेंट्रल सिल्क बोर्ड और एनर्जी रिसोर्सेज नामक दिल्ली की एक सोलर कंपनी के साथ मिलकर काम करना शुरू किया. इस साझा प्रयास के जरिये सोलर पावर्ड कॉमपैक्ट रीलिंग मशीन- समृद्धि को तैयार किया. बाद में समृद्धि के नाम से झारक्राफ्ट और सेंट्रल सिल्क बोर्ड ने इसका पेटेंट भी कराया. इस मशीन से एक ओर जहां उत्पादक बढ़ी वहीं उत्पादित रेशम धागे की गुणवत्ता में भी सुधार आया. झारक्राफ्ट के जीएम ऑपरेशन डॉ. बीसी प्रसाद बताते हैं कि अब इस मशीन की सहायता से महिलाएं एक दिन में 200 ग्राम तसर धागा तैयार कर सकती हैं. इसका मतलब यह है कि उन्हें एक रुपये प्रति ग्राम की दर से दो सौ रुपये रोजाना की आमदनी हो सकती है. हालांकि पर्याप्त अभ्यास नहीं होने के कारण कई महिलाएं 150 ग्राम धागा ही तैयार कर पा रही हैं, मगर फिर भी उनकी रोज की आमदनी 150 रुपये की हो जा रही है.

खरसावां में पहला प्रयोग
झारक्राफ्ट की ओर से सबसे पहले खरसावां में इस मशीन का इस्तेमाल किया गया. वहां की महिलाओं ने इसका सफलता पूर्वक संचालन कर साबित कर दिया कि यह मशीन उनकी किस्मत को बदल सकता है. फिर धीरे-धीरे झारखंड के कई इलाकों में महिलाओं को इस मशीन पर काम करने का मौका दिया गया. फिलहाल झारखंड में ऐसी 4000 मशीनें काम कर रही हैं, जो खरसावां, देवघर, बेंगाबाद और रांची के कई सेंटर में संचालित हो रही हैं. इस मशीन में एक मोबाइल चार्जिग पोर्ट भी जोड़ा गया है ताकि महिलाएं अपना मोबाइल चार्ज कर सकें साथ ही एक बल्व भी लगाया गया है जिससे वे रात में भी धागा तैयार कर सकती हैं.

रांची से सटे पिस्का नगड़ी इलाके में महिलाओं को जोड़कर एक अस्थायी भवन में कॉमन फेसिलिटी सेंटर खोला गया और स्पिनिंग इकाई की शुरुआत की गयी. बाद में इस इकाई के लिए स्थायी भवन का निर्माण कराया गया और समृद्धि मशीनें लगायी गयीं.

4-5 हजार प्रति माह की आय
इन मशीनों के लगने से यहां की 30 महिलाओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव आया है. 2009 से लेकर अब तक इस इकाई ने 121.56 लाख रुपये का रेशम धागा उत्पादित कर कुल 26.18 लाख का लाभ अर्जित किया है. पिछले दो सालों से ये महिलाएं सामान्यत: 8 से 9 लाख रुपये सालाना का लाभ अर्जित कर रही हैं. यहां कुछ महिलाएं आंशिक रूप से काम करती हैं और कुछ पूर्णकालिक. पूर्णकालिक काम करने वाली महिलाएं औसतन 4 से 5 हजार रुपये प्रति माह की आय अर्जित कर रही हैं.

इनमें से एक महिला मंजू उरांव को दो बार राज्य सरकार द्वारा उनके काम को देखते हुए पुरस्कृत किया गया है जबकि मंगरी उरांव को एक बार राज्य सरकार की ओर से प्रथम पुरस्कार मिला है. निस्संदेह उनके जीवन में आयी इस समृद्धि में सोलर चरखा समृद्धि का बड़ा योगदान है.

अपनी सुविधा से करती हैं काम
डॉ. प्रसाद कहते हैं कि इस मशीन की कीमत 26 हजार रुपये के आसपास पड़ती है. जबकि सेंट्रल सिल्क बोर्ड की रीलिंग मशीन 22 हजार रुपये में आती थी. इस हिसाब से यह मशीन महिलाओं के लिए काफी मददगार साबित हो रही है. वे बताते हैं कि घर के पास रीलिंग सेंटर होने के कारण महिलाओं को काफी सुविधा रहती है. वे घर का काम करते हुए इस काम को करती हैं.अधिकांश महिलाएं सुबह 6 से 8 काम करती हैं फिर घर जाकर घर का काम निबटाती हैं. फिर से 12 से 4 बजे तक काम करती हैं इसके बाद 5 से 6 बजे तक एक घंटा काम कर लेती हैं.

आत्म निर्भरता बढ़ी

वे बताते हैं कि इससे महिलाओं की आत्म निर्भरता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि एक बार सेंटर में कुछ पुरुष जो संभवत: इन महिलाओं के पति थे आये और उन्होंने कहा कि चलो धान के खेत में काम करना है. इस पर महिलाओं ने उन्हें अपने पास से 50 रुपये निकाल कर दिये और कहा कि जाओ किसी और मजदूर को कर लो. यहां हम इतनी कमायी छोड़कर नहीं जायेंगे.