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महिलाओं ने तोड़ी रूढि़यों की जंजीरें

हल्द्वानी [नैनीताल, कमलेश पांडेय]। पहाड़ की अबलाओं ने भी रूढि़यों की जंजीरों को तोड़ मान्यताओं के दुर्गम रास्तों को पार करना सीख लिया है। विभिन्न कारणों से वैधव्य झेल रही महिलाओं ने फिर से विवाह कर न सिर्फ मान्यताओं को खारिज किया, बल्कि अन्य लोगों के लिए जीवन की नई राह बनाई। सरकार ने इन साहसी महिलाओं को प्रोत्साहन योजना से 11-11 हजार रुपये देकर पुरस्कृत किया है।

अल्मोड़ा जिले की नीलिमा [काल्पनिक नाम] को ही देखें। शादी में लगी मेहंदी का रंग भी नहीं छूटा था कि खुशियों को ग्रहण लग गया। मार्ग दुर्घटना में पति की मौत ने जीने के सभी रास्ते बंद कर दिये। रूढि़यों की जंजीर में कैद नीलिमा मानसिक रोग की गिरफ्त में आ गई, लेकिन एक दिन उसने सबला बनने की ठानी। फिर से शादी रचाई और आज नजीर बन समाज के सामने आ गई।

नीलिमा की तरह ही राज्य की 25 अन्य महिलाओं ने भी ऐसा ही साहस दिखाया है। इनमें से 17 महिलाएं पर्वतीय क्षेत्रों की हैं, जहां आज भी रूढि़या और मान्यताएं ही सामाजिक व्यवस्था संचालित करती हैं। समाज कल्याण निदेशालय के आंकड़े गवाह हैं कि पिछले एक दशक में राज्य में विधवा विवाह का ग्राफ बढ़ रहा है।

वित्तीय वर्ष [2009-10] में राज्यभर में 26 [35 वर्ष से कम आयु] विधवाओं ने पुर्नविवाह किया। इन्हें प्रोत्साहन के रूप में सरकार ने दो लाख 86 हजार रुपये दिये। भले ही कुछ लोग विधवा विवाह के पक्ष में न हों लेकिन समाजशास्त्रियों ने इसे वक्त व समय की जायज मांग बताया है।

पिथौरागढ़ निवासी समाजशास्त्री गणेश पाठक कहते हैं कि अगर समाज तरक्की के रास्ते पर है तो उसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। पाठक विधवा विवाह को प्रोत्साहन के लिए जागरूकता की वकालत करते हैं। ऐसी ही राय हल्द्वानी के ललित बल्लभ सनवाल रखते हैं। समाज कल्याण विभाग के अपर निदेशक आरपी पंत कहते हैं कि सरकार भी इस दिशा में प्रोत्साहन देने में पीछे नहीं है।

निराश्रित विधवा पुत्री शादी योजना ऊंट के मुंह में जीरा

हरिद्वार। उत्तराखंड सरकार की निराश्रित विधवा की पुत्री की शादी योजना अपने उद्देश्य में सफल होते नहीं दिख रही है। धनाभाव की कमी से तमाम पात्रों को खाली हाथ लौटना पड़ता है। समाज कल्याण विभाग की इस योजना के तहत विधवा पेंशन लेने वाली महिलाओं को पुत्री की शादी के लिए दस हजार रुपये की मदद देने का प्रावधान है। योजना का लाभ लेने के लिए पुत्री की जन्म तिथि का प्रमाणपत्र एवं शादी का कार्ड समाज कल्याण विभाग में जमा कराना होता है। इसके बाद विभाग तहसील स्तर की जांच रिपोर्ट के आधार पर अभ्यर्थियों का चयन करता है। चूंकि विधवा पेंशन समाज कल्याण विभाग द्वारा दी जाती है, इसलिए विधवा पेंशन अर्हता की जांच विभाग स्वयं ही करता है।

हरिद्वार में यह योजना ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है। आलम यह है कि हर साल योजना से लाभांवित होने के लिए प्राप्त आवेदनों के सापेक्ष आधे से कम को लाभ मिल पा रहा है।