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महीने भर की तलाश में मिला 1 बाल श्रमिक,सरकारी सर्वे रिपोर्ट में खुलासा

संजीत कुमार, रायपुर। श्रम विभाग को महीनेभर की तलाश के बाद जिले में केवल एक बाल श्रमिक मिला है! इस आंकड़े की वजह से सर्वे ही सवालों के घेरे में आ गया है। इस पर विवाद की आशंका को देखते हुए श्रम विभाग ने अपना पल्ला झाड़ते हुए तत्काल रिपोर्ट सर्वे एजेंसी को लौटा दी है और फिर से जानकारी देने के लिए कहा है। वहीं, सर्वे करने वाली एजेंसी का दावा है कि सर्वे बाल श्रम कानून और मापदंडों को ध्यान में रखकर किया गया है और रिपोर्ट पूरी तरह सही है।

केन्द्र सरकार के निर्देश पर पूरे देश में बाल श्रमिकों की तलाश की जा रही है। लंबे अंतराल में बाद किए गए इस सर्वे की रायपुर में जिम्मेदारी नेहरू युवा केन्द्र संगठन को सौंपी गई थी। केन्द्र के पदाधिकारियों के अनुसार सर्वे में कुल तीन बाल श्रमिक मिले। सत्यापन के दौरान दो और बच्चे कम हो गए, क्योंकि वे अपने पिता के साथ काम कर रहे थे। इससे बाल श्रमिक की संख्या महज एक ही बच गई है। संगठन ने यह सर्वे रिपोर्ट करीब पखवाड़ेभर पहले जिला श्रम विभाग को सौंपी दी है। इधर श्रम विभाग के अधिकारी आंकड़े को देखते हुए रिपोर्ट मिलने से ही इंकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि फाइनल रिपोर्ट आने के बाद ही बाल श्रमिकों की सही संख्या मिल पाएगी।

श्रमिक स्कूलों में थे 51 सौ से अधिक बच्चे

पिछले साल तक यहां संचालित हुए करीब सौ बाल श्रमिक स्कूलों में 51 सौ से अधिक बच्चे पढ़ते थे। आईटीई काननू लागू होने की वजह से सरकार ने इन स्कूलों को बंद कर, बच्चों का दूसरे स्कूलों में दाखिला करा दिया।

इन्हें नहीं माना जाता बाल श्रमिक

बाल श्रम की परिषाभा में माता- पिता के साथ या पारिवारिक काम करने वाले बच्चे बाल श्रमिक की श्रेणी में नहीं आते। परंपरागत व्यवसाय करने वाले बच्चे भी बाल श्रमिक के दायरे में नहीं आते। इतना ही नहीं, अब तो 14 साल या उससे अधिक उम्र के बीड़ी मजदूरों को भी बाल श्रमिक के दायरे से बाहर कर दिया गया है।

कानूनी पेंच

किसी को बाल श्रमिक साबित करने के लिए उसके नियोक्ता (काम कराने वाले मालिक/ठेकेदार) का होना जरूरी है। नियोक्ता नहीं होने की स्थिति में बच्चे श्रमिक की श्रेणी में नहीं आते।

ये बच्चे नहीं आते बाल श्रमिक में

कचरा बीनने वाले, ट्रेन, बस, रेलवे स्टेशन सहित अन्य स्थानों पर खेल- करतब दिखाने वाले या फेरी लागकर सामग्री बेचने वाले सहित कई अन्य तरह के काम करने वाले बच्चे बाल श्रमिक की श्रेणी में नहीं आते।

जिले में केवल एक ही बाल श्रमिक मिला है। सर्वे में तीन बाल श्रमिक मिले थे। सत्यापन के दौरान दो मामलों में पिता- पुत्र का संबंध निकल गया। रिपोर्ट हमने श्रम विभाग को सौंप दी है।

कैशल पाण्डेय, पर्यवेक्षक नेहरू युवा केन्द्र संगठन रायपुर

फाइनल रिपोर्ट अब तक नहीं आई है, रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा कि यहां कितने बाल श्रमिक हैं।

सूर्यभान सिंह पैकरा, अपर आयुक्त श्रम विभाग

 

बाल श्रम कानून का एक निश्चित दायरा है, उसके अंतर्गत आने वालों को ही बाल श्रमिक माना जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि बाल श्रम के दायरे में नहीं आने वाले बच्चों की चिंता या कल्याण के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है। जहां तक हो सकता है, हम ऐसे बच्चों की मदद करते हैं और उनके कल्याण की कोशिश करते हैं।

शताब्दी पाण्डेय, अध्यक्ष, बाल संरक्षण आयोग

ये आंकड़े सरासर गलत है। ऐसी रिपोर्ट देने वाली एजेंसी के खिलाफ केस कर देना चाहिए। दरअसल सरकार भी यह नहीं दिखाना चाहती कि यहां बाल श्रमिक हैं। गलत आंकड़े प्रस्तुत करने से बाल श्रमिकों के कल्याण के लिए बनने वाली योजनाएं प्रभावित होंगी। सरकार को इस पर गंभीरता पूर्व विचार करना चाहिए।

गौतम बंदोपाध्याय, सामाजिक कार्यकर्ता