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मातृत्व लाभ तुरंत लागू किया जाय- रोज़ी-रोटी अधिकार अभियान

रोज़ी रोटी अधिकार अभियान गर्भवती महिलाओं व उनके शिशुओं के लिए न्याय माँगता है. चार साल से अधिक समय से भारत की सब महिलाएं (केवल औपचारिक क्षेत्र में काम कर रही महिलाओं को छोड़कर) राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013 के अनुसार कम से कम 6,000 रुपये के मातृत्व भत्ते की हकदार हैं. सरकार महिलाओं का यह अधिकार देने में पूर्ण रूप से असफल रहा है.

कुपोषण व शिशु और मातृत्व मृत्यु भारत में गंभीर समस्याएं हैं. 2015-16 के राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार भारत में शिशु मृत्यु दर था 41 मृत्यु प्रति 1,000 जीवित जन्म. भारत के हर 20 में से एक बच्चा अपने पांचवे जन्मदिन के पहले ही दम तोड़ देता है. भारत के पांच वर्ष से कम उम्र के 38 प्रतिशत बच्चों का कद उनकी उम्र के अनुसार कम है. विश्व स्वास्थ्य संस्थान के आंकड़ों के अनुसार 100,000 में से 174 महिलाएं प्रसव के दौरान मर जाती हैं. ब्रज़ील में यह संख्या 44 और चीन में यह संख्या 23 है.

मातृत्व लाभ की कुपोषण व शिशु और मातृत्व मृत्यु को कम करने में बहुत एहम भूमिका है. यह लाभ महिलाओं के काम व उनके गर्भावस्था के दौरान व प्रसव के बाद आराम की आवश्यकता को मानता है. यह महिलाओं को इस दौरान काम न कर पाने के लिए मुआवज़ा देता है, जिससे माताएं अपने शिशुओं को स्तनपान करवा सकें.

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून ने सरकार को एक मातृत्व लाभ योजना शुरू करने का मौका दिया. पर यह कानून पारित होने के तीन साल तक सरकार ने मातृत्व लाभ योजना के लिए कोई कदम नहीं उठाया. 31 दिसंबर 2016 को प्रधान मंत्री ने घोषणा की कि सब गर्भवती महिलाओं को 6,000 रुपये का मातृत्व लाभ मिलेगा. इस घोषणा के बाद कई बार सरकार ने इस वादे को दोहराया है, सर्वोच्च न्यायालय को दिए शपथ पत्र में भी.

परन्तु मई 2017 में सरकार ने प्रधान मंत्री मात्रु वंदना योजना शुरू की जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के कानूनी प्रावधानों व प्रधान मंत्री के वादे से बहुत कम है. यह योजना महिला के पहले बच्चे तक ही सीमित है. इस नियम से हाश्ये पर रहने वाले समुदायों, जैसे दलित, आदीवासी, अल्पसंख्यक, की महिलाओं को सबसे अधिक हानि होगी. भारत में जो कुल बच्चे पैदा होते हैं, उनमें से 43 प्रतिशत महिलाओं के पहले बच्चे होते हैं. इस नियम से बाकी 57 प्रतिशत बच्चों से स्तनपान और देखभाल के अधिकार का हनन होता है. यह नियम केवल इस योजना पर सरकार का खर्च कम करने के लिए है.

दूसरा, प्रधान मंत्री मात्रु वंदना योजना गर्भवती महिलाओं को केवल 5,000 रुपये का ही मातृत्व लाभ देती है. 6,000 रुपये के कानूनी प्रावधान को पूरा करने के लिए इस योजना को पहले से चली आ रही जननी स्वास्थ्य योजना के साथ जोड़ दिया गया है. परन्तु ऐसा करना सरासर गलत है क्योकि जननी स्वास्थ्य योजना संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहन देने के लिए शुरू हुई थी. प्रधान मंत्री मात्रु वंदना योजना का उद्देश्य है मज़दूरी न कर पाने के लिए मुआवज़ा देना.

प्रधान मंत्री मात्रु वंदना योजना की राशि औपचारिक क्षेत्र में काम कर रही महिलाओं को मिलने वाले लाभ से बहुत कम है. मातृत्व लाभ कानून का हाल में संशोधन हुआ था, जिससे महिलाओं के मातृत्व अवकाश की अवधि 12 सप्ताहों से बढ़ कर 26 सप्ताह हो गई है. यह एक प्रगतिशीत कदम है, पर इस कानून के दायरे में केवल औपचारिक क्षेत्र में काम कर रही 18 लाख महिलाएं आती हैं, जबकि भारत में सालाना 2.3 करोड़ प्रसव होते हैं. भारत की 95 प्रतिशत महिलाएं, जो अनौपचारिक क्षेत्र में काम करती हैं, मातृत्व लाभ कानून के दायरे से बाहर हैं. जहां एक ओर औपचारिक क्षेत्र में काम कर रही महिलाओं को 26 सप्ताहों का मातृत्व अवकाश मिलता है, यह अस्वीकार्य है कि अनौपचारिक क्षेत्र की महिलाओं को मातृत्व लाभ के रूप में न्यूनतम मज़दूरी की आधे से भी कम राशि मिले, वह भी केवल एक बच्चे के लिए. इससे औपचारिक व अनऔपचारिक क्षेत्र में काम कर रही महिलाओं के बीच भेद भाव होगा, जो संविधान की धारा 14 के विपरीत है.

रोज़ी-रोटी अधिकार अभियान मांग करता है कि सरकार मातृत्व लाभ के लिए ऐसी योजना चलाए जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के प्रावधानों के अनुरूप हो. इसके लिए 13,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी. इसका 60 प्रतिशत (8,000 करोड़ रुपये) केंद्र सरकार द्वारा आगामी बजट में आवंटित हो. अभियान यह भी मांग करता है कि मातृत्व लाभ सर्वव्यापी व बिना किसी शर्त के हो. उसकी राशि कम से कम छः महीने की न्यूनतम मज़दूरी के सामान हो.

अधिक जानकारी के लिए दीपा सिन्हा (9650434777), सुदेशना सेनगुप्ता (9811065400) या कोनिनिका रे (9958284900) से संपर्क करें.

रोज़ी रोटी अधिकार अभियान, नैशनल फेडरेशन औफ़ इन्डियन विमिन, द नैशनल अलायंस फॉर मटर्नल हेल्थ एंड ह्यूमन राइट्स, नज़दीक, सहयोग