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मानसून की आस देख रहे हैं, तो अब छोड़ दीजिए

इंदौर। प्रदेश में मानसून के लिए अब भी एक सप्ताह से ज्यादा इंतजार करना होगा। बंगाल की खाड़ी के ऊपर हवा में सिस्टम बना है, जिससे उम्मीद जागी है। यह सिस्टम एक-दो दिन में जमीन पर आने की संभावना है।

पहले भी एक सिस्टम बना था लेकिन उसने मध्यप्रदेश तक आते-आते दम तोड़ दिया था। यदि इस सिस्टम ने निराश नहीं किया तो जुलाई के पहले सप्ताह तक प्रदेश में मानसून आ जाएगा। पिछले साल 22 जून को जबकि 2010 में 2 जुलाई को मानसून इंदौर आया था। 17 जून को अरब सागर से सिस्टम बना था जो गुजरात के नौसारी, महाराष्ट्र के मालेगांव होता हुआ प्रदेश में बैतूल-जबलपुर तक आया था। जबलपुर में आकर यह सिस्टम ध्वस्त हो गया था। इसी दौरान बंगाल की खाड़ी में भी सिस्टम बना था लेकिन उसने भी निराश किया।

विशेषज्ञों की मानें तो जून पूरा ही सूखा जाएगा। बताया जा रहा है कि बंगाल की खाड़ी में वर्तमान में जो सिस्टम बना है उससे लग रहा है बहुत जल्दी ही उड़ीसा में मानसूनी बारिश शुरू हो जाएगी। यह सिस्टम उड़ीसा से छत्तीसगढ़ होता हुआ जबलपुर के रास्ते प्रदेश में प्रवेश करेगा। सामान्यत: मानसून प्रदेश के बाद राजस्थान की ओर कूच करता है।

फिलहाल छिटपुट बारिश की संभावना

मौसम विशेषज्ञ डी.पी. दुबे का कहना है म.प्र. में अब तक कोई सिस्टम नहीं बना है जिससे मानसूनी बारिश की संभावना नहीं है। कुछ स्थानों पर बारिश हो सकती है लेकिन वह स्थानीय गतिविधियों के कारण होगी। बंगाल की खाड़ी में अभी सिस्टम बनना शुरू हुआ है। संभवत: जुलाई के पहले हफ्ते में अच्छी बारिश हो सकती है।

इंदौर में पिछले साल भी खराब रहा था यह माह

पिछले साल भी जून महीना इंदौर के लिए खराब ही रहा था। यह जरूर है कि पिछले साल इस वर्ष की अपेक्षा 8.5 मिलीमीटर बारिश ज्यादा हुई थी। तब मानसून 22 जून को इंदौर आ गया था। इंदौर में 13 जून तक मानसून का आगमन होता है। यहां 38 इंच बारिश सामान्य मानी जाती है। हर माह कितनी बारिश होना चाहिए, उसका भी आंकड़ा मौसम विभाग ने बना रखा है।

अंचल में हुई बोवनी

अंचल के कई इलाकों में किसानों ने प्री-मानसून की बारिश में बोवनी कर दी थी। अब यदि मानसून ने आने में और देर की तो किसानों को खासा नुकसान उठाना पड़ सकता है। भास्कर ने मालवा-निमाड़ अंचल का जाजया लिया और बोवनी की स्थिति का पता लगाया। कई क्षेत्रों में पानी की किल्लत भी है।
देवास: खातेगांव क्षेत्र में गिने-चुने किसानों ने सोयाबीन बोया है। किसान जुताई कर बारिश का इंतजार कर रहे हैं।

धार: धरमपुरी, कुक्षी, मनावर, गंधवानी, निसरपुर, उमरबन, डही क्षेत्र में गर्मी का कपास बोया गया है। अब मानसून की इंतजार है। धार शहर का मुख्य पेयजल स्रोत सीतापाट तालाब सूखने के कगार पर पहुंच चुका है। अफसर मान रहे हैं कि जल्द बारिश नहीं हुई तो हाहाकार मच सकता है।

झाबुआ: यहां के किसानों ने खेतों में मक्का की बोवनी की है। तीन-चार दिन में पानी नहीं आया तो बोवनी पिछड़ जाएगी।

आलीराजपुर: अंबारी तालाब से टैंकर के जरिये पानी लाकर शहर की प्यास बुझा रहे हैं, तालाब में 10 दिन का ही पानी शेष है।

विकल्प के तौर पर दिलावरा बांध से सीतापाट तालाब में पानी लाने के प्रयास हो रहे हैं लेकिन लाइन सतत नहीं चल पाने से जलस्तर तेजी से गिर रहा है।

यह होगा नुकसान

- जिन किसानों ने बोवनी कर दी थी उनकी फसल खत्म हो जाएगी।

- फसल उत्पादन प्रभावित होगा।

- किसानों को फिर से बोवनी करना होगी।

- पेयजल को लेकर हाहाकार मच सकता है।

किसान क्या करें

- जब तक तीन इंच बारिश नहीं हो जाए तब बोवनी नहीं करना चाहिए।

- सूखे खेतों में बोवनी नहीं करें। थोड़ा पानी गिरने पर बीज अंकुरित होकर नष्ट हो सकता है।

- सोयाबीन की बोवनी करने वाले किसान कृषि वैज्ञानिक की सलाह लें क्योंकि बीज काफी महंगा है।

- कृषि विभाग व कृषि अनुसंधान केंद्र के सतत संपर्क में रहे और वैज्ञानिकों से सलाह देते रहे।