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मार्च के बाद भी इतनी ही रहेगी महंगाई: RBI

विनिर्मित उत्पादों संबंधी मुद्रास्फीति में नरमी के बावजूद खाद्य एवं ईंधन मुद्रास्फीति का दबाव बने रहने की संभावनाओं को देखते हुए आरबीआई का मानना है कि अगले वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति मौजूदा स्तर पर बनी रहेगी।       
 
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मौद्रिक नीति की आज जारी मध्य तिमाही समीक्षा में कहा कि क्षेत्रवार स्तर पर मांग और आपूर्ति के असंतुलन, वस्तुओं के प्रशासित मूल्यों में वृद्धि और इसके परिणामी प्रभावों के मद्देनजर सकल मुद्रास्फीति थोड़ा घट बढ के साथ मौजूदा स्तर पर बनी रह सकती है। 
    
केंद्रीय बैंक की समीक्षा रपट में कहा गया है कि फरवरी 2013 में सकल वस्तुओं के थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति बढ़ कर 6.84 पर हो गई, जो जनवरी में 6.6 फीसदी थी। प्रकटत: यह पेट्रोलियम उत्पादों के प्रशासित मूल्यों में संशोधन (वृद्धि) का प्रभाव लगता है। 
    
साथ ही धातु, कपड़ा और रबर उत्पादों की कीमत में कमी के मददेनजर सितंबर 2012 में शुरू हुई केंद्रीय मुद्रास्फीति (विनिर्मित उत्पादों की मुद्रास्फीति) में कमी जारी रही और फरवरी में यह 3.8 फीसदी पर रही। हालांकि आरबीआई ने कहा कि खुदरा मुद्रास्फीति अभी भी चिंताजनक दायरे में बनी है जो फरवरी 2013 में 10.9 फीसदी के स्तर पर रही।
    
केंद्रीय बैंक ने कहा है कि खाद्य उत्पादों की ऊंची कीमत, न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के कारण बढ़ा दबाव और थोक एवं खुदरा मुद्रास्फीति के बीच की होड़ से भी मुद्रास्फीति प्रत्याशा पर असर पड़ रहा है।
     
आरबीआई ने सरकार से कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाने के मामले में सावधानी बरतने का सुझाव दिया है, क्योंकि इसका सकल मुद्रास्फीति पर असर होता है।
     
आरबीआई ने मध्य तिमाही समीक्षा के दृष्टिकोण में कहा कि वैश्विक स्तर पर जिंसों की कीमत में कमी और घरेलू बाजार में मांग कम होने के कारण कंपनियों की कीमत बढ़ाने की क्षमता कम होने के कारण विनिर्मित उत्पादों की मुद्रास्फीति कम हो रही है। 
    
हालांकि खाद्य मुद्रास्फीति में लगातार बढ़ोतरी के कारण थोक मूल्य आधारित सकल मुद्रास्फीति दायरे से उपर है और उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति दहाई अंक में है। केंद्रीय बैंक ने कहा कि कुल मिलाकर मुद्रास्फीति का प्रबंधन जटिल प्रक्रिया बन गया है और आपूर्ति पक्ष की दिक्कतों को दूर करने की आवश्यकता जाहिर होती है।