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मासूम मुस्कानों ने मोगल को बनाया बबलू

हाजीपुर। कदम चूम लेती है खुद चलकर मंजिल, राही अगर अपनी हिम्मत न हारे यह पंक्तियां कभी वैशाली के डान रहे बबलू पर पूरी तरह फिट बैठती हैं। अपहरण समेत अन्य संगीन मामलों में कई बार जेल जाने से समाज में उसकी अलग पहचान बन गयी थी। देखते ही देखते गाव का सीधा-साधा बबलू मोगल के रूप में चर्चित हो गया था।

करीब दो दशकों तक पुलिस और उसके बीच लुकाछिपी का खेल चलता रहा। अचानक मोगल के अंदर का बबलू जाग उठा और उसमें ऐसा बदलाव आया कि गरीबों का मसीहा बन गया। शादी न करने का संकल्प ले उसने आजीवन गरीब बच्चों के बीच रहकर उन्हें शिक्षित करने का बीड़ा उठा लिया।

यह बदलते बिहार में परिवर्तन का सुखद एहसास भी करा रहा है। महनार प्रखंड की पहाड़पुर विशनपुर पंचायत के दलित टोले में 42 वर्षीय राजेश कुमार उर्फ बबलू उर्फ मोगल इन दिनों सेवा की अनूठी मिसाल पेश कर रहा है। तंग झोपड़ियों में दलित बच्चों के साथ रहना, उन्हें नहलाना, कपड़े पहनाना, खाना खिलाना और फिर पढ़ाना अब उसकी दिनचर्या हो चुकी है। इससे समय मिला तो बाबा भोले के चरणों में अपने को समर्पित कर देता है। मां विन्ध्यवासिनी में उसकी ऐसी आस्था हो गयी है कि जब भी मौका मिलता है उनके दरबार में मत्था टेकने पहुंच जाता।

उसने पटना विश्वविद्यालय के पटना कालेज से 1989 में स्नातक किया था। राघोपुर अन्तर्गत शिवकुमारपुर के रहने वाले बबलू के पिता सुरेन्द्र प्रसाद सिंह का 1977 में ही निधन हो गया था। बड़े भाई मनोज कुमार सिंह रेलवे में गार्ड हैं। गाव में मां कामिनी देवी अकेले रहती हैं। एक समय ऐसा था जब पटना कालेज में पढ़ने वाला युवक सुनहरे भविष्य के सपने देखा करता था। एक वक्त ऐसा भी आया जब किस्मत ने उसे ऐसे बदनाम चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया जहा से लौट पाना मुश्किल होता है और अगर लौट भी गये तो फिर बदनुमा दाग मिटाना कठिन।

लेकिन, बबलू न सिर्फ लौटा बल्कि समाज के सामने ऐसी मिसाल पेश की कि आज हर कोई उसके इरादों के आगे नतमस्तक है। वर्ष 1990 से वह रामा किशोर सिंह उर्फ रामा सिंह [विधायक, महनार] के साथ है। वह कहता है कि तत्कालीन सत्ता के खिलाफ रामा सिंह के साथ संघर्ष के कारण ही उस पर मुकदमे लादे गये, बदनाम किया गया। आज सच्चाई सामने है। लादे गये अधिकतर मुकदमों में अंतत: वे लोग कोर्ट से बरी हुए। वह मोगल बनने के पीछे की कहानी को भी सत्ता की खामियों के विरुद्ध संघर्ष का हिस्सा बताता है। वह कहता है कि लालू-राबड़ी शासन में बुराइयों के खिलाफ संघर्ष को लेकर उसे फंसाया गया था।

वर्ष 2000 में उसने अपने ऊपर लगे बदनुमा दाग को मिटाने का संकल्प लिया। हाजीपुर की राजपूत नगर कालोनी में बाबा विशालेश्वर मंदिर उसका ध्यान केंद्र हो गया और फिर उनके आशीर्वाद ने उसके इरादों को पंख लगा दिए। समाजसेवा का बीड़ा उठाते हुए बबलू ने वर्ष 2002 में मुहल्ले की सफाई शुरू की। बाद में शहर में उसके कदम बढ़े। प्रो. चंद्रभूषण के साथ मिलकर करीब दो वर्षो तक उसने साफ-सफाई की। पिछले ढाई वर्षो से वह गरीब बच्चों को शिक्षित करने के मिशन में जुटा है।