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'मास्साब, कछु न कइयो, पढ़बै सो ठीक... न पढ़ै सो ठीक'

छतरपुर से रुमनी घोष। स्कूली परीक्षा में फेल होने पर बच्चों की खुदकुशियों से माता-पिता में खौफ में हैं। इतने खौफ में कि स्कूल पहुंचकर शिक्षकों के सामने गुहार लगाने लगे हैं कि "मास्साब, कछु न कइयो, पढ़बै सो ठीक... न पढ़ै सो ठीक। बस हमाई आंखन के सामने रओ आए।" ऐसे हालात बने हैं बुंदेलखंड में। वही बुंदेलखंड, जहां 12वीं में 75 फीसदी अंक आने के बावजूद 17 वर्षीय शुभांश परिहार ने आत्महत्या कर ली थी।

दुर्गावती हायर सेकंडरी स्कूल छतरपुर के केमेस्ट्री के शिक्षक भरत गुप्ता बोलते हैं वह 85 से 90 प्रतिशत अंक की उम्मीद कर रहा था। काश! हम उसे समझा पाते, लेकिन उससे पहले ही उसने क्षणिक आवेश में इतना घातक कदम उठा लिया। बेटे के बिछुड़ने से पिता चाली राजा इतने गम में हैं कि उनके मुंह से बोल ही नहीं फूटते। बमुश्किल संभले और कहा, बुंदेलखंड में किसान जब खेती-बाड़ी (मई-जून में) शुरू करते हैं।

शुभांश इसी समय पैदा हुआ था, पर जिंदगी की शुरुआत नहीं कर पाया। फिर आसमान की ओर देखकर बोले- देख बेटा...मैं हिम्मत नहीं हारा, आज तेरी बड़ी बहन मानसी को परीक्षा देने भेजा है। छतरपुर से लगभग 35 किमी दूर मलका गांव के एक विवश, मगर निडर पिताकी इस मार्मिक अपील को वे सभी बच्चे सुनें जो अपने सपनों में माता-पिता को शामिल करना भूल जाते हैं।

शुभांश की खुदकुशी के बाद पूरे छतरपुर सहित बुंदेलखंड में हैरानी है। चार दिन बाद भी यहां हर कोई एक ही सवाल पूछ रहा है घर-घर में संघर्ष और कठिनाइयों को देखते आ रहे इस इलाके के बच्चे कब इतने संवेदनशील हो गए कि छोटी सी ख्वाहिश पूरी न हो पाई तो हार मान गए।

गांव का सबसे अच्छा पढ़ने वाला बच्चा था शुभांश

मगर चाली राजा ने वाकई हार नहीं मानी है। बेटे की मौत के चौथे दिन सोमवार को बेटी मानसी को सुबह उठाया और कहा- परीक्षा (बीए फर्स्ट सेमेस्टर) दे आओ। सवाल के जवाब न आए तो कोई बात नहीं। पास न हो पाओ तो कोई बात नहीं, पर हर परीक्षा का सामना करो।

बेटी के आने का इंतजार करते भर दोपहरी में देहरी पर बैठे चाली राजा बोले- शुभांश को भी मैं ऐसे ही बोलता था। दसवीं में 83 प्रतिशत बने, तब भी हम खुश थे और इस बार 75 फीसदी बने, तब भी। गांव का सबसे अच्छा पढ़ने वाला बच्चा।

परिवार में सबसे होशियार, हमें और क्या चाहिए था। दो भाइयों के बीच एक ही बेटा था। खेतीबाड़ी है, नौकरी करने का तनाव भी नहीं था। उसकी इच्छा थी इसलिए रविवार को पीएटी (प्री एग्रीकल्चर टेस्ट) दिलाने सागर ले जाने वाला था। मुझसे बोला- पापा इस बार बाइक से चलेंगे। मैं भी तैयार हो गया। एक हेलमेट घर पर था, दूसरा कहीं से मांगकर लाया था।

शुभांश खुद तो हर परीक्षा से बरी होकर चला गया, मगर पूरे परिवार को इस सवाल को हल करने के लिए छोड़ गया कि आखिर उसने आत्महत्या क्यों की? मां राधा चार दिन से बिस्तर से नहीं उठ पाई है। गांव के बुजुर्ग 62 साल के बलवान सिंह कहते हैं छोटी दिव्यांशी जब तक बड़ी होगी... तब तक शायद इन बच्चों को यह समझ आ जाए कि अंकों के हेर-फेर से जिंदगी नहीं बनती-बिगड़ती।

छतरपुर से रुमनी घोष। स्कूली परीक्षा में फेल होने पर बच्चों की खुदकुशियों से माता-पिता में खौफ में हैं। इतने खौफ में कि स्कूल पहुंचकर शिक्षकों के सामने गुहार लगाने लगे हैं कि "मास्साब, कछु न कइयो, पढ़बै सो ठीक... न पढ़ै सो ठीक। बस हमाई आंखन के सामने रओ आए।" ऐसे हालात बने हैं बुंदेलखंड में। वही बुंदेलखंड, जहां 12वीं में 75 फीसदी अंक आने के बावजूद 17 वर्षीय शुभांश परिहार ने आत्महत्या कर ली थी।

दुर्गावती हायर सेकंडरी स्कूल छतरपुर के केमेस्ट्री के शिक्षक भरत गुप्ता बोलते हैं वह 85 से 90 प्रतिशत अंक की उम्मीद कर रहा था। काश! हम उसे समझा पाते, लेकिन उससे पहले ही उसने क्षणिक आवेश में इतना घातक कदम उठा लिया। बेटे के बिछुड़ने से पिता चाली राजा इतने गम में हैं कि उनके मुंह से बोल ही नहीं फूटते। बमुश्किल संभले और कहा, बुंदेलखंड में किसान जब खेती-बाड़ी (मई-जून में) शुरू करते हैं।

शुभांश इसी समय पैदा हुआ था, पर जिंदगी की शुरुआत नहीं कर पाया। फिर आसमान की ओर देखकर बोले- देख बेटा...मैं हिम्मत नहीं हारा, आज तेरी बड़ी बहन मानसी को परीक्षा देने भेजा है। छतरपुर से लगभग 35 किमी दूर मलका गांव के एक विवश, मगर निडर पिताकी इस मार्मिक अपील को वे सभी बच्चे सुनें जो अपने सपनों में माता-पिता को शामिल करना भूल जाते हैं।

शुभांश की खुदकुशी के बाद पूरे छतरपुर सहित बुंदेलखंड में हैरानी है। चार दिन बाद भी यहां हर कोई एक ही सवाल पूछ रहा है घर-घर में संघर्ष और कठिनाइयों को देखते आ रहे इस इलाके के बच्चे कब इतने संवेदनशील हो गए कि छोटी सी ख्वाहिश पूरी न हो पाई तो हार मान गए।

गांव का सबसे अच्छा पढ़ने वाला बच्चा था शुभांश

मगर चाली राजा ने वाकई हार नहीं मानी है। बेटे की मौत के चौथे दिन सोमवार को बेटी मानसी को सुबह उठाया और कहा- परीक्षा (बीए फर्स्ट सेमेस्टर) दे आओ। सवाल के जवाब न आए तो कोई बात नहीं। पास न हो पाओ तो कोई बात नहीं, पर हर परीक्षा का सामना करो।

बेटी के आने का इंतजार करते भर दोपहरी में देहरी पर बैठे चाली राजा बोले- शुभांश को भी मैं ऐसे ही बोलता था। दसवीं में 83 प्रतिशत बने, तब भी हम खुश थे और इस बार 75 फीसदी बने, तब भी। गांव का सबसे अच्छा पढ़ने वाला बच्चा।

परिवार में सबसे होशियार, हमें और क्या चाहिए था। दो भाइयों के बीच एक ही बेटा था। खेतीबाड़ी है, नौकरी करने का तनाव भी नहीं था। उसकी इच्छा थी इसलिए रविवार को पीएटी (प्री एग्रीकल्चर टेस्ट) दिलाने सागर ले जाने वाला था। मुझसे बोला- पापा इस बार बाइक से चलेंगे। मैं भी तैयार हो गया। एक हेलमेट घर पर था, दूसरा कहीं से मांगकर लाया था।

शुभांश खुद तो हर परीक्षा से बरी होकर चला गया, मगर पूरे परिवार को इस सवाल को हल करने के लिए छोड़ गया कि आखिर उसने आत्महत्या क्यों की? मां राधा चार दिन से बिस्तर से नहीं उठ पाई है। गांव के बुजुर्ग 62 साल के बलवान सिंह कहते हैं छोटी दिव्यांशी जब तक बड़ी होगी... तब तक शायद इन बच्चों को यह समझ आ जाए कि अंकों के हेर-फेर से जिंदगी नहीं बनती-बिगड़ती।