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मिश्रित खेती को बचाने की जरूरत: पीएम

पंतनगर [जागरण संवाददाता]। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि उत्तराखंड की पारंपरिक फसलों का संरक्षण और मिश्रित खेती की पद्धति को बचाने और इसके विकास की आवश्यकता है। उन्होंने मुख्य फसल के साथ अन्य फसलों को बचाने के लिए जैव विविधता को उत्तम उपाय बताते हुए इसको बढ़ावा देने और शोध पर बल दिया। वे शनिवार को गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के 26 वें दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे।

कम संसाधनों से अधिक उत्पादन प्राप्त करने की टिकाऊ तकनीकों को विकसित कर उन्हें लागू किये जाने की जरूरत पर बल देते हुए प्रधानमंत्री ने पारिस्थितिकी एवं कृषि समगतिशीलता को बनाए रखने का आह्वान किया।

उन्होंने कृषि विश्वविद्यालयों व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से अभिनव प्रसार मॉडल बनाने का अनुरोध किया। प्रधानमंत्री ने किसानों तक नवीनतम तकनीकों एवं सूचनाओं को शीघ्र पहुंचाने के लिए पीपीपी मॉडल [पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप] विकसित करने को कहा। कृषि विकास दर पर गंभीर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि इसको दो से बढ़ाकर चार प्रतिशत करने के लिए सभी को समुचित व कारगर प्रयास करने चाहिए।

डा. सिंह ने कहा कि कृषि में निवेश केंद्र सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है, जिससे उत्पादन व उत्पादकता बढ़ सके। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उत्तराखंड की राज्यपाल माग्र्रेट अल्वा ने कहा कि युवाओं को कृषि से जोड़ा जाना चाहिए। कार्यक्रम में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी मौजूद थे।

समारोह से पहले वैज्ञानिकों से अनौपचारिक बातचीत में प्रधानमंत्री ने कहा कि मौसम के बदलते मिजाज के अनुरूप कृषि आधारित कार्यक्रमों में बदलाव और शोध बेहद जरूरी है। उनका कहना था कि दुनिया में खेती योग्य भूमि का 2.3 प्रतिशत, जबकि शुद्ध जल का मात्र चार फीसदी हिस्सा ही देश के पास उपलब्ध है। ऐसे में सीमित संसाधनों के जरिए मुख्य धारा से अलग- थलग पड़े गांवों को विकसित करने से ही लक्ष्य पूरा किया जा सकता है।

विज्ञान वारिधि की मानद उपाधि से नवाजे गए

पंतनगर। विद्वत परिषद की संस्तुति और कुलाधिपति के अनुमोदन पर प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को विज्ञान वारिधि की मानद उपाधि [डाक्टर आफ साइंस, ऑनरिस कॉजा] से नवाजा गया। डा. सिंह को यह उपाधि राज्यपाल माग्र्रेट अल्वा ने दी। विश्वविद्यालय के उद्देश्यों की पूर्ति और विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें यह उपाधि दी गई।