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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले में फिर गई किसान की जान


इछावर/ब्रिजीस नगर. कर्ज से डूबे सीहोर के एक और किसान ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले में एक पखवाड़े के भीतर ‘ऋणी किसान’ की आत्महत्या का यह दूसरा मामला है।



जान गंवाने वाले किसान पर बैंकों के अलावा साहूकारों का भी लाखों का कर्ज था। आए दिन होने वाले तकाजे और पाले से तबाह फसल से हताश ब्रिजीस नगर के शिवप्रसाद मेवाड़ा ने खेत पर फांसी लगा ली।



इसके अलावा मां के नाम जो जमीन है उस पर भी ट्रैक्टर का लोन है। यह इलाका राजस्व मंत्री करण सिंह वर्मा के विधानसभा क्षेत्र में आता है। एक माह में प्रदेश के चार किसान कर्ज के कारण आत्महत्या कर चुके हैं। सीहोर के डिप्टी कलेक्टर सीएल कुशवाह ने भी पुष्टि की है कि शिवप्रसाद पर कर्ज था।



ब्रिजीसनगर निवासी अमान सिंह के बड़े पुत्र शिवप्रसाद मेवाड़ा (40 ) ने शनिवार शाम करीब साढ़े पांच बजे खेत पर बने मकान में फांसी लगा ली। मृतक के बड़े पुत्र धर्मेद्र ने बताया,‘शाम को मैं पिता के साथ खेत पर ही था। मैं कुछ देर के लिए खेत में फसल देखने गया और लौटकर आया तो देखा कि पिताजी मकान के गेड़े पर रस्सी से फांसी पर झूले थे। मैंने शोर मचाया तो पड़ोसी दौड़कर आए और उन्हें नीचे उतारा, लेकिन तब तक उनकी मृत्यु हो गई थी।’ सूचना मिलते ही एफएसएल अधिकारी जीएस नरवरिया सहित पुलिस मौके पर पहुंची और गहन छानबीन की।



कर्ज से परेशान था शिवप्रसाद- मृतक की पत्नी कोमल बाई ने रिकॉर्डेड बातचीत में ‘भास्कर’ को बताया कि उसके पति ने ‘बैंक आफ महाराष्ट्र’ से 2008 में 4.80 लाख रुपए ऋण लिया था। इसके अलावा किसान क्रेडिट कार्ड पर भी 80 हजार रुपए ऋण लिया हुआ था। ग्राम पंचायत के सरपंच राम सिंह वर्मा ने बताया कि शिवप्रसाद ने बैंक से ट्रैक्टर उठाया था। उसकी किश्त को लेकर वह अक्सर परेशान रहता था।



बैंक से मिल रहे थे नोटिस- शिवप्रसाद ने बैंक में 30 जून 2009 से किश्त जमा नहीं की थी,जबकि उसे 54 हजार रुपए वार्षिक मय ब्याज के जमा करना था। कर्ज न देने के कारण बैंक द्वारा मूलधन, ब्याज व बीमा की राशि जमा करने के लिए मृतक को नोटिस जारी किए जा रहे थे। मृतक के पास 6 एकड़ के लगभग कृषि भूमि है, लेकिन पिछले दिनों पाले के कारण चना व गेहूं की फसल को काफी नुकसान हुआ है।



कई बार समझाया,चुका देंगे कर्ज



‘बैंक से ऋण लेकर ट्रैक्टर लिया था, फसल खराब होने से किश्त अदा नहीं कर पा रहे थे। परेशान होकर भाई ने फांसी लगा ली। मैंने कई बार उन्हें समझाया कि जमीन बेचकर कर्ज पटा देंगे, चिंता मत करो।’



दशरथ सिंह,मृतक का छोटा भाई



13 दिन में दूसरा मामला



इससे पहले 28 दिसंबर को सीहोर के ही गांव चितावलिया लाखा में कमोद सिंह के 30 वर्षीय पुत्र दयाराम ने खेत पर बनी टापरी में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। मृतक की पत्नी ने कर्ज से परेशान रहने के कारण फांसी लगाने की बात कही थी। हालांकि बाद में पुलिस जांच में वह अपने बयान से पलट गई थी।



सरकार की योजनाएं केवल कागजों में



भारतीय किसान संघ के सीहोर जिला अध्यक्ष विक्रम सिंह पटेल कहते हैं कि किसानों के लिए प्रदेश सरकार की योजनाएं कागजों तक ही सीमित हैं। किसान कर्ज के बोझ तले दबते जा रहे हैं। बैंक और विद्युत कंपनी वसूली के लिए दबाव बना रहे हैं।



इस कारण किसान अब आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहा है। मप्र किसान कांग्रेस की सचिव ऊषा सिंह ने बताया कि मुख्यमंत्री कोरी घोषणाएं कर रहे हैं। इस कारण प्रदेश में अब तक 6 किसान आत्महत्या कर चुके हैं।



एक माह में चौथ वाकया



कर्जदार किसान की आत्महत्या का प्रदेश में यह चौथा मामला है। इससे पहले प्रदेश के कृषिमंत्री रामकृष्ण कुसमरिया के गृह जिले दमोह में १६ दिसंबर को हर्रई तेजगढ़ के किसान नंदकिशोर यादव एवं 28 दिसंबर को ग्राम कुलुवा के किसान नंदराम रैकवार ने भी आत्महत्या कर ली थी। दोनों किसान फसलें खराब होने के कारण कर्ज नहीं चुका पाने से परेशान थे।



दमोह में ही 7 जनवरी को टिकरी पिपरिया के किसान गुलाब सिंह और इससे पहले सेहरी गांव के किसान नरेंद्र लोधी ने कीटनाशक दवा पीकर आत्महत्या का प्रयास किया था। हालांकि कृषि मंत्री ने अपने बयान एवं कलेक्टर की रिपोर्ट में कहा था कि कर्ज एवं फसलें खराब होने के कारण किसानों ने आत्महत्या एवं आत्महत्या के प्रयास नहीं किए हैं।



11 लाख रुपए से ज्यादा का कर्ज



बैंक आफ महाराष्ट्र शाखा ब्रिजीस नगर से ट्रैक्टर लोन खाता क्रमांक 749676 पर 16 फरवरी 2008 को 4.80 लाख का लोन। इसी शाखा से किसान क्रेडिट कार्ड पर 1 अप्रैल, 08 को किराना दुकान के नाम पर 80 हजार रुपए लिए।



परिजन के मुताबिक इसके अलावा गांव में भी करीब 6 लाख रुपए मृतक ने ले रखे थे। हालांकि साहूकारों के नाम पता नहीं चल पाए हैं।



बैंक वालों का दबाव बढ़ रहा था



‘बैंक से ऋण लेकर ट्रैक्टर लिया था, फसल खराब होने से किस्तें नहीं दे पा रहे थे। बैंक वाले अक्सर वसूली के लिए घर आते थे और पिताजी पर दबाव बनाते थे।’



धर्मेद्र सिंह,मृतक का बड़ा बेटा



गांव वाले भी मांग रहे थे अपना पैसा



एक साल से बैंक की किस्त जमा नहीं कर पाए थे, इस कारण बैंक वालों का दबाव बढ़ रहा था। गांव में भी कई लोगों का पैसा देना था, वे भी बार-बार अपना पैसा मांग रहे थे।



कोमला,मृतक की पत्नी



परेशानी अभी खत्म नहीं



बैंक अधिकारियों के अनुसार ऐसे मामलों में बैंक को ट्रैक्टर और जमीन दोनों अधिगृहित कर बेचने का अधिकार है। ट्रैक्टर का पंजीयन तो बैंक के ही नाम होता है, इसलिए उसकी नीलामी पंद्रह दिन के अंदर हो जाती है।


जमीन नीलामी के लिए तहसीलदार की मदद लेनी होती है।



ऐसी स्थिति में परिजन को स्वयं बैंक अधिकारियों को एक समझौते का ऑफर दे देना चाहिए। इसमें ट्रैक्टर की बिक्री से जितनी रकम मिले उसके ऊपर कुछ और राशि देकर मामला समाप्त हो सकता है। यदि ऋणी किसान ने ट्रैक्टर के लिए लोन के साथ टर्म इंश्योरेंस कराया है और इसकी अवधि तीन वर्ष से अधिक है तो आत्महत्या के मामलों में भी बीमा कंपनी क्लेम का भुगतान कर सकती है,जिससे कुछ मदद मिल सकती है।