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मुद्रा बैंक :समग्र विकास का अंग--- अविनाश राय

हमारे देश में लाखों करोड़ों ऐसे सामान्य नागरिक हैं जो छोटे-छोटे कारोबार और उद्योग चलाते हैं परन्तु वे अक्सर औपचारिक और संगठनात्मक ऋण व्यवस्था के दायरे से बाहर ही रहते हैं, जबकि समग्र अर्थव्यवस्था में सामूहिक रूप में उनका सहयोग बहुत विशाल हो जाता है। यह मानना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का। इस संदेश के माध्यम से उन्होंने उन छोटे-छोटे व्यवसाय, दुकान चलाने वालों और यहां तक कि रेहड़ी-पटरी के सहारे जीवनयापन करने वालों और रिक्शा, तिपहिया आदि के माध्यम से यातायात व्यवस्था में सहयोग देने वालों से लेकर छोटे कृषकों तक को समय-समय पर उनके कार्यों में वित्त की कमी के सम्बन्ध में विशेष प्रयास की आवश्यकता बताई। आज आमतौर पर पूंजीहीन व्यक्ति रिक्शा और तिपहिया वाहन किराये पर चलाता है। सारे दिन की मेहनत के बाद उसे शाम को रिक्शा मालिक को 50 रुपये से लेकर 100 रुपये तक और तिपहिया मालिक को 250-300 रुपये देने पड़ते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि पहले वह आधे दिन की मेहनत की कमाई तो उस मालिक के लिए इकट्ठी करे और उसके बाद शेष आधे दिन की कमाई उसके अपने परिवार के लिए। यदि किसी कारणवश वह शेष आधा दिन काम न कर पाये तो उस दिन की सारी मेहनत की कमाई वाहन मालिक को जायेगी। इस अत्याचार से छुटकारा दिलाने के उद्देश्य से श्री मोदी ने समाज के इस मेहनत करने वाले वर्ग को अपने पैरों पर खड़ा करने के उद्देश्य से मुद्रा बैंक योजना बनाई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस सूत्र को क्रियान्वित करते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इस वर्ष बजट प्रस्तुत करते हुए संसद में प्रस्तुत अपने सम्बोधन में इन लघु व्यवसायियों के सम्बन्ध में कहा कि सरकार का यह कर्तव्य है कि विकास की योजनाएं बनाते समय भारत के प्रत्येक नागरिक को उन योजनाओं में अलग-अलग तरीके से समाहित करने का प्रयास करें। बड़े उद्योग और व्यापार जिस प्रकार देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान देते हैं उसी प्रकार छोटे उद्योगपतियों के योगदान को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। लघु उद्योग अक्सर असंगठित रहता है, इसलिए वे अपनी समस्याओं और मांगों को सरकार के समक्ष संगठनात्मक रूप से प्रस्तुत नहीं कर पाते। भारत में लगभग 6 करोड़ लघु औद्योगिक इकाईयाँ हैं। यह इकाईयां अक्सर एक व्यक्ति की मिल्कियत एवं नियंत्रण में चलती हैं। इनमें भी लगभग 62 प्रतिशत व्यक्ति अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़े वर्ग से सम्बन्धित हैं। ये लोग अर्थव्यवस्था के बिल्कुल निचले पायदान पर लगे रहने के कारण देश में संगठनात्मक ऋण व्यवस्था तक अपनी पहुंच नहीं बना पाते। इसलिए भारत की अर्थव्यवस्था में सहयोग देने वाले ऐसे असंगठित वर्ग के लिए केन्द्र सरकार ने 'मुद्रा बैंकÓ योजना प्रारम्भ करने का निर्णय लिया है। इस योजना में प्रारम्भिक तौर पर 20 हजार करोड़ रुपये का कोष निर्धारित किया है, इसके अतिरिक्त 3000 हजार करोड़ रुपये का गारण्टी कोष भी होगा।
अरुण जेटली ने इस मुद्रा बैंक योजना के माध्यम से नि:संदेह उन लघु व्यवसायियों को सहारा देने का प्रयास प्रारम्भ कर दिया है जिनके लिए बैंक तथा अन्य बड़ी-बड़ी वित्तीय संस्थाओं तक पहुंच बनाना भी सरल कार्य नहीं था। इसका मुख्य कारण इस लघु व्यवसायी वर्ग का असंगठित होना ही नहीं है अपितु इसका मुख्य कारण है कि यह वर्ग शिक्षा में भी पिछड़ा हुआ है। इस वर्ग को ऋण के लिए फार्म भरना, किसी अन्य व्यक्ति की गारण्टी का प्रबन्ध करना तथा कई अन्य औपचारिकताओं को पूरा करने में कठिनाई महसूस होती थी। इसलिए यह वर्ग बैंकों तथा बड़ी-बड़ी वित्तीय संस्थाओं तक अपनी पहुँच नहीं बना पाता था। इस प्रकार वित्तीय संस्थाओं के साथ इन औपचारिकताओं को कठिनाई की तरह समझने वाला यह लघु व्यवसायी ग्राम तथा स्थानीय स्तर के सूदखोरों के चंगुल में फंस जाता था। इस सूदखोरी के चक्रव्यूह में ब्याज की दर 2 से 5 प्रतिशत प्रतिमाह एक सामान्य प्रचलन बन चुका था। 50 हजार रुपये का ऋण लेने वाला व्यक्ति एक या दो हजार रुपये प्रतिमाह ब्याज देने के लिए मजबूर हो जाता था। इस प्रकार ब्याज दर ब्याज का सालों-साल भुगतान करने के बावजूद भी वह मूल ऋण को वापिस नहीं दे पाता था। कई बार तो ऐसे लोगों को अपनी छोटी-मोटी भूमि, सम्पत्तियां या घर के आभूषण आदि भी बेचने पड़ते थे।
दूसरी तरफ बड़ी-बड़ी राशि के ऋणों से जुड़ा भ्रष्टाचार भी इस वर्ग को सदैव बैंकों और बड़ी वित्तीय संस्थाओं से दूर ही रखता था। करोड़ों रुपये के ऋण स्वीकार करने की प्रक्रिया में रिश्वतखोरी की राशियां भी लाखों में होती हंै। दूसरी तरफ यदि किसी व्यक्ति को एक लाख रुपये तक के ऋण की आवश्यकता है तो इसमें से शायद वह हजार-दो हजार की राशि भी ऋणदाता संस्था के भ्रष्ट अधिकारियों को नहीं दे पाता था। इसलिए आज जब सरकार ने मुद्रा बैंक योजना का क्रियान्वयन प्रारम्भ कर दिया है तो स्वाभाविक रूप से इस वर्ग में यह भाव मजबूत हुआ है कि आज केन्द्र सरकार के स्तर से भी उनके लिए एक विशेष सहायता योजना उपलब्ध है। मुद्रा बैंक नामक इस योजना में भ्रष्टाचार की भी कोई उम्मीद नहीं है।
मुद्रा बैंक योजना में लघु व्यवसायियों के लिए भी तीन प्रकार की श्रेणियों में ऋण व्यवस्था घोषित की गई है। शिशु श्रेणी में 50 हजार रुपये तक के ऋण, किशोर श्रेणी में 50 हजार रुपये से अधिक परन्तु 5 लाख रुपये तक के ऋण तथा तरुण श्रेणी में 5 लाख से अधिक परन्तु 10 लाख रुपये तक के ऋण देने की व्यवस्था है। इस योजना में यह स्पष्ट निर्देश है कि 60 प्रतिशत ऋण शिशु श्रेणी के व्यवसायियों को दिये जायें।
इस मुद्रा बैंक योजना से लघु स्तर के सिलाई-बुनाई की गतिविधियों में लगे लोग, स्थानीय यातायात की सेवा देने वाले लोग जैसे रिक्शा, तिपहिया, टैक्सी और छोटे मालवाहन, फोटोकॉपी, कम्प्यूटर, कोरियर, छोटे कैमिस्ट, साइकिल, मोटरसाइकिल तथा कार मरम्मत में लगे कारीगर, अनेकों प्रकार के लघु और कुटीर उद्योगों में लगे लोग जैसे पापड़, अचार, जैम तथा अन्य कृषि सहायक उद्योगों में लगे लोग, हाथकरघा और जरी कार्यों में लगे लोग अब खुलकर छोटे-छोटे ऋणों को प्राप्त कर पायेंगे। इन सारे कार्यों में भी यदि कोई उद्यमी महिला होगी तो उन्हें प्राथमिकता के आधार पर ऋण दिया जायेगा। इस ऋण प्रक्रिया में बड़े ऋणों की तरह गारण्टी जैसी औपचारिकताओं की भी कोई कठिनाई शामिल नहीं है। इस प्रकार के ऋण से नागरिक जो भी मशीनें आदि खरीदेंगे उनके मालिकाना अधिकार पत्रों को बैंक के पास गारण्टी के रूप में रखा जायेगा।
यह योजना भारत के रिजर्व बैंक के द्वारा ही संचालित होगी और ऋणों की व्यवस्था बैंकों आदि के माध्यम से लागू की जायेगी। इस योजना में ब्याज की दर लगभग 1 प्रतिशत मासिक अर्थात् 12 प्रतिशत वार्षिक होगी। मुद्रा योजना के माध्यम से वित्तमंत्री अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री की उस विशेष महत्वाकांक्षा को पूरा करने का प्रयास किया है जिसमें उन्होंने समग्र विकास का अर्थ सबको साथ लेकर विकास के पथ पर चलना बताया था। इस योजना के माध्यम से देश के कोने-कोने में बसे छोटे उद्योगपतियों, व्यवसायियों और अपनी व्यक्तिगत कला के आधार पर जीवनयापन करने वाले लोगों को छोटे ऋण के रूप में एक महत्वपूर्ण सहारा देने की शुरुआत की है।
(लेखक राज्य सभा के संसद सदस्य हैं)