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मुद्रा योजना: आसान कर्ज वाली बात हकीकत से बहुत दूर है

बिहार के छपरा के कटहरी बाग में फूलों की एक छोटी सी दुकान चलाने वाले धनंजय कुमार (38 वर्ष) को अपना कारोबार बढ़ाने के लिए कुछ पैसों की जरूरत थी। केंद्र सरकार की 'मुद्रा योजना' के तहत उन्होंने एक नजदीकी बैंक में लोन के लिए अप्लाई किया, लेकिन उन्हें लोन नहीं मिला। धनंजय कुमार सहित दर्जनभर फूल कारोबारियों की लोन की अर्जी को यह कहकर खारिज कर दिया गया कि वे 'फूल वालों' को लोन नहीं दे सकते, क्योंकि यह कच्चा व्यापार है। छपरा से लगभग 500 किलोमीटर दूर लखनऊ के रूदानखेड़ा गांव की रहने वाली किरण गुप्ता (34 वर्ष) ने भी अपना कारोबार बढ़ाने के लिए लोन लेने की कोशिश की थी लेकिन बैंक वालों ने ब्याज का भय दिखाकर लोन देने से इनकार कर दिया। किरण अपने पति के साथ घर पर ही मिठाई के डिब्बे बनाने का एक छोटा सा व्यवसाय करती हैं। वहीं बाराबंकी के बेलहर गांव के सतेंद्र मौर्या (42 वर्ष) को अपनी मोबाइल और रिचार्ज की दुकान को बड़ा करने के लिए लगभग एक लाख रुपए की आवश्यकता थी, लेकिन बैंक ने मुद्रा योजना के तहत उन्हें सिर्फ 50 हजार रुपए का लोन दिया। सतेंद्र कहते हैं कि बैंक ने इसके लिए उनसे कोई वाजिब कारण नहीं बताया। उन्हें बस यह कहा गया कि उनकी योजना में इतना दम नहीं है कि 50 हजार से अधिक का लोन दिया जा सके।

 
8 अप्रैल, 2015 को मोदी सरकार ने मुद्रा योजना (Micro Units Development and Refinance Agency- Mudra) की शुरूआत की थी। कहा गया था कि इससे छोटे और मझोले स्तर का व्यवसाय और रोजगार करने वाले कारोबारियों को नया कारोबार शुरू करने या पुराने कारोबार को बढ़ाने में मदद मिलेगी। उन्हें बिना गारंटी और बिना किसी खास कागजी अड़चनों के सब्सिडी युक्त और कम ब्याज पर आसान कर्ज मिल सकेगा। हालांकि जमीन पर जाने पर पता चलता है कि इस योजना के तहत छोटे व्यवसायियों के लिए लोन लेना उतना आसान नहीं है, जितना सरकार प्रचार करती है और जितना आसान इसे योजना की वेबसाइट पर बताया जाता है। वास्तविक जरूरतमंद लोगों को जानकारी और जागरुकता के अभाव में इस योजना से वंचित किया जाता है। कुछ को ब्याज और लोन का भय दिखाया जाता है, वहीं कुछ की कार्ययोजना (प्रोजेक्ट) और व्यवसाय को कमजोर बताकर लोन देने से इनकार किया जाता है।

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