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मृत्यु भोज में हुई शादी, बसने से पहले उजड़ गई गुड्डी की दुनिया!

बाल विवाह के दुष्परिणाम बचपन की शादी नकारने का मारवाड़ में दो माह में तीसरा मामला सामने आया है। ताजा प्रकरण सालवा कलां के राजेंद्र व गुड्डी का है। राजेंद्र ने गुड्डी के साथ हुए बालविवाह को मानने से इनकार कर दिया है। भास्कर ने सालवा कलां जाकर दोनों परिवारों की मनोस्थिति जानी।

सालवा कलां से लौटकर निशी पालसिंह

बचपन में गुड्डे-गुड़िया के खेल की तर्ज पर ब्याही गुड्डी का गुड्डा (राजेंद्र) रूठ गया। दोनों परिवारों के बड़ों ने कितनी बड़ी गलती की, यह गुड्डी के बहते आसुंओं से पता लगता है। गुड्डी से बचपन में हुई शादी को राजेंद्र ने मानने से इनकार कर दिया। पहले वह आगे पढ़ाई जारी रखने की बात कहता रहा और पढ़ाई के बाद पैरों पर खड़े होने की। असल में उसके मन में किसी पढ़ी-लिखी लड़की से शादी करने की इच्छा है।

इस वजह से एक गांव में रहने वाले दो परिवारों में दरार पड़ी और खाप पंचायत बैठ गई। मामला अदालत तक चला गया। बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाने का मारवाड़ में दो माह में यह तीसरा मामला है। हाल में दो युवतियों लक्ष्मी व शोभा ने अपने बचपन में हुए विवाह को मानने से इनकार कर दिया था।

भास्कर ने गुड्डी व राजेंद्र के मामले में उनके गांव सालवा कलां जाकर पड़ताल की। पता चला कि उनकी शादी साढ़े पांच साल पहले 25 दिसंबर 2006 को हुई। इस दिन गुड्डी के दादाजी का बारहवां था। घर में मृत्यु भोज का आयोजन था। इसी भोज में 12 साल की गुड्डी की शादी गांव के ही 16 वर्षीय किशोर राजेंद्र से करवा दी गई। शादी के बाद बीते छह सालों में राजेंद्र ने एमए-बीएड की पढ़ाई कर ली, लेकिन गुड्डी घर के कामों में ही लगी रही।

घर की कमजोर आर्थिक स्थिति ने उसको स्कूल जाने से रोक दिया। मामला गौने तक आया तो राजेंद्र ने बचपन की इस शादी को मानने से इनकार कर दिया। राजेंद्र ने कहा कि वह अभी पैरों पर खड़ा नहीं हुआ है। खुद का पेट नहीं भर सकता तो किसी और का कैसे भरेगा, इसलिए गुड्डी को घर नहीं लाऊंगा। उधर, गुड्डी बोली कि मैं उन्हीं को पति मानती हूं और वे ले जाएंगे तो सहर्ष चली जाऊंगी।

साहसी लक्ष्मी ने नकारा बाल विवाह को

एक साल की उम्र में सात फेरे लेने वाली लक्ष्मी ने यह कहते हुए सुसराल जाने से इनकार कर दिया कि उसकी शादी कब और किसके साथ हुई, उसे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। लक्ष्मी घर छोड़कर अपने भाई के पास जोधपुर आकर रहने लगी। उसने महिला एवं बाल विकास विभाग और सारथी संस्था की सहायता से न्यायालय से अपना बाल विवाह भी निरस्त करवाया।

शोभा लड़ रही है लड़ाई

राजबा गांव की शोभा की शादी 10 साल की उम्र में केरू के लिखमाराम के साथ 1998 में हुई, लेकिन अब शोभा पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है। शोभा अनपढ़ और खान में मजदूरी करने वाले लिखमाराम के साथ नहीं रहना चाहती। शोभा के घर वाले जाति दंड के दबाव के चलते उसका साथ नहीं दे रहे, इसके बावजूद शोभा डरी नहीं बल्कि डटकर अपनी लड़ाई लड़ रही है।