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मेडिकल कॉलेजों में जिला अस्पतालों से भी कम दवाएं

भोपाल (ब्यूरो)। बात एमजीएम मेडिकल कॉलेज से संबद्ध बड़े अस्पताल की हो या फिर भोपाल के हमीदिया अस्पताल की। इनमें अनेक सुपर स्पेशलिटी सेवाएं तो मिल जाती है, लेकिन मरीजों को दवाइयां नहीं मिलती। डॉक्टर केवल सलाह ही दे पाते हैं।

कारण इन अस्पतालों की इसेंशियल ड्रग लिस्ट (ईडीएल) यानी आवश्यक दवाइयों की सूची में 35 तरह की दवाएं ही शुमार हैं।उधर, जिला अस्पतालों की ईडीएल में 300 दवाइयां हैं। इनमें 200-250 तो हमेशा मिल ही जाती हैं। चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव प्रभांशु कमल ने शुक्रवार को राजधानी के हमीदिया अस्पताल का दौरा किया तो दवाओं की तंगहाली देख चौक गए।

अस्पताल की ईडीएल में शामिल 35 दवाओं में से भी आधी नहीं थी। तीन महीने से बजट की कमी के चलते दवाओं की और तंगी हो गई है। ईडीएल में उन दवाओं को शामिल किया जाता है जो मरीजों के लिए अति जरूरी होती हैं। 90 फीसदी मरीजों को यहीं दवाएं लगती हैं। मेडिकल कॉलेजों के लिए ईडीएल करीब छह साल पहले तय की गई थी। उस समय बीमारियां भी कम थीं और मरीज भी।

सुपर स्पेशलिटी में कार्डियोलॉजी, कार्डियक सर्जरी, पीडियाट्रिक सर्जरी व बर्न एंड प्लास्टिक सर्जरी थी। अब न्यूरोलॉजी, गैस्ट्रोएंटोलॉजी, स्किन, टीबी एंड चेस्ट के सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर हमीदिया में हैं, लेकिन दवाओं की संख्या बढ़ने की जगह कम हो रही हैं। फिर भी नहीं बढ़ीं दवाएं 2013 में सरकारी अस्पतालों में निःशुल्क दवा वितरण योजना शुरू होने के बाद सरकार का दावा है कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों को सभी दवाएं मुफ्त मिल रही हैं। डॉक्टरों को बाहर की दवा लिखने पर भी मनाही है।

सच्चाई यह है कि हर पर्चे में एक-दो दवाएं ही मरीजों को मिल रही हैं। बाकी दवाएं मरीजों को बाजार से खरीदना पड़ रही हैं। 1200 दवाओं का प्रस्ताव भूले मेडिकल कॉलेज में दवाओं की संख्या बढ़ाने के लिए तीन साल पहले इंदौर मेडिकल कॉलेज में सभी डीन की बैठक हुई थी।

इसमें तय किया गया था कि अस्पतालों में दवाओं की संख्या 1200 की जाएगी। इसमें ओपीडी व भर्ती मरीजों के लिए दवाएं शामिल थीं। सभी विभागाध्यक्षों से दवाओं की सूची मांगी गई थी, लेकिन इस पर अमल नहीं हो सका। 290 दवाओं के रेट ही हमीदिया के अधीक्षक डॉ. डीके पाल ने बताया पिछले साल से मेडिकल कॉलेजों को भी सभी दवाएं व उपकरण मप्र पब्लिक हेल्थ सप्लाई कॉरपोरेशन से खरीदना है।

दिक्कत यह है कि कॉरपोरेशन में सिर्फ 290 तरह की दवाओं की खरीदी के लिए दरें तय हैं। मेडिकल कॉलेजों में करीब 1200 तरह की दवाओं की जरूरत होती है। मेडिकल कॉलेजों को अपने टेंडर से दवाएं खरीदने के लिए तीन महीने की छूट दी गई थी, लेकिन अब फिर से कॉरपोरेशन से दवाएं खरीदने की बाध्यता है। कॉरपोरेशन में दवा खरीद के आर्डर देने के दो महीने बाद दवाओं की सप्लाई होती है।

इनका कहना है

मेडिकल कॉलेजों में दवाओं की संख्या बढ़ाने के लिए समीक्षा की जा रही है। कॉरपोरेशन में 290 तरह की दवाओं की दरें हैं, इसलिए शासन से एलयूएन व कॉलेजों के अपने टेंडर से दवाएं खरीदने की मांग की गई है।

डॉ. जीएस पटेल, संचालक, चिकित्सा शिक्षा