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मोदी का मिशन पूर्वोत्तर- चंदन कुमार शर्मा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्वोत्तर दौरे से क्षेत्र के लोगों को ढेरों उम्मीदें थीं। अगर सिक्किम को भी जोड़ लें, तो वह अपने तूफानी दौरे में इस क्षेत्र के आठ राज्यों में से चार राज्यों में, असम, मणिपुर, नगालैंड और त्रिपुरा पहुंचे। भारत के इस बदहाल और पिछड़े क्षेत्र का बतौर प्रधानमंत्री यह उनका पहला दौरा था। लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी भाजपा के शीर्ष नेताओं के साथ यहां आ चुके थे, और लोगों से जुड़ी महत्वपूर्ण समस्याओं को सुलझाने को लेकर कई घोषणाएं भी उन्होंने की थी। इससे क्षेत्र के लोग खासे उत्साहित हुए, जिसका नतीजा पूर्वोत्तर में भाजपा के अभूतपूर्व प्रदर्शन से निकला।

असम में कुल 14 लोकसभा सीटों में आधी यानी सात सीटें भाजपा को मिलीं। भाजपा की इस जीत की वजह यूपीए सरकार के खिलाफ लोगों की नाराजगी तो थी ही, बांग्लादेश से होने वाले घुसपैठ और अरुोणाचल प्रदेश में बन रही जलविद्युत परियोजना जैसे मुद्दों पर राज्य की सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार की नाकामी भी एक बड़ी वजह थी। चूंकि इन सभी मुद्दों पर भाजपा ने संसदीय चुनाव के दौरान स्पष्ट रूप से जनभावनाओं के साथ जाने का वायदा किया था। इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि मोदी की रैलियों में लोगों की भारी भीड़ उमड़ी।

हालांकि यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रधानमंत्री के दौरे ने क्षेत्र के आम आदमी को निराश भी किया है। जन-संगठन और विपक्षी दल यह आरोप लगा रहे हैं कि चुनाव के दौरान किए गए वायदों से भाजपा अब मुंह मोड़ रही है। सच भी है कि गुवाहाटी में रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने भूमि हस्तांतरण समझौते की चर्चा करते हुए कहा कि राष्ट्र हित के लिए वह इस समझौते के साथ जाना चाहेंगे; इससे भले ही अभी असम को छोटी अवधि में नुकसान हो रहा होगा, लेकिन दीर्घकाल में यह राज्य के लिए फायदेमंद ही होगा। इसी तरह घुसपैठ के सभी रास्ते बंद करने की उनकी घोषणा भी लोगों की उम्मीदें पूरी नहीं की, क्योंकि चुनाव में उन्होंने घुसपैठिए को सीमा पार करने का भी वायदा किया था। यहां तक कि असम में भाजपा के राज्य स्तर के नेता और कार्यकर्ता भी इन बयानों से निराश हैं, क्योंकि उन्हें यह भरोसा था कि मोदी इन मुद्दों पर और मुखर तरीके से जनभावना को प्रकट करेंगे।

यही वजह है कि प्रधानमंत्री के दौरे के साथ ही असम में विरोध-प्रदर्शन भी शुरू हो गए हैं। यह मुश्किल कार्य होगा कि इन संवेदनशील मुद्दों पर भाजपा के रुख से आम लोगों को सहमत किया जाए। 2016 के शुरुआत में हो रहे विधानसभा चुनाव की तैयारी में जोर-शोर से लगी भाजपा के लिए ये मुद्दे खासे महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।

इसी तरह मणिपुर में भी प्रधानमंत्री विवादास्पद सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) के खिलाफ बोलने से बचते रहे। पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों के विपरीत यहां मोदी का स्वागत अलगाववादियों द्वारा बुलाए गए बंद ने किया, जिस वजह से कम लोग उन्हें सुनने आए। यहां राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय की स्थापना का वायदा करने के अलावा प्रधानमंत्री ने क्षेत्र के विकास की सामान्य बातें ही कीं। दिल्ली पुलिस अथवा गुजरात पुलिस सेवा में पूर्वोत्तर के युवाओं की भर्ती का उनका वायदा भी अस्पष्ट ही रहा।

अलबत्ता, नगालैंड में मोदी के दौरे से उत्साह का संचार हुआ है। राज्य के विकास के लिए आकर्षक विकास पैकेज और दीर्घकालीन नगा शांति वार्ता संबंधी पूर्व की घोषणाओं को लेकर प्रधानमंत्री से लोगों की उम्मीदें चरम पर थीं। नगा की विरासत और सभ्यता के प्रतीक हॉर्नबिल त्योहार का उद्घाटन करते हुए नरेंद्र मोदी ने नगालैंड और यहां के लोगों को सराहा और दोहराया कि वह क्षेत्र के विकास को लेकर प्रतिबद्ध हैं। मगर वह उस नगा शांति वार्ता पर चुप्पी साध गए, जो नगाओं का सर्वाधिक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा है। साथ ही, थुइंगलेंग मुइवा और इसाक चिशी स्वू जैसे एनएससीएन नेताओं के साथ मुलाकात नहीं करने से भी कुछ गलत संदेश गया है।

माकपा के गढ़ त्रिपुरा में प्रधानमंत्री मोदी ने पलाताना थर्मल पावर प्लांट की दूसरी इकाई को राष्ट्र को समर्पित जरूर किया, मगर यहां मौजूद बांग्लादेश सरकार के प्रतिनिधियों के समक्ष उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि उनकी सरकार बांग्लादेश के साथ संबंध बेहतर बनाना चाहती है; फिर चाहे वह बिजली खरीदना चाहे, तो वह देने को तैयार हैं। यहां वह जापान के साथ हुए उस द्विपक्षीय समझौते का जिक्र करना नहीं भूले, जिससे पूर्वोत्तर के क्षेत्र को खासा लाभ होगा। इसके साथ ही वह जापान, म्यांमार और भारत को जोड़ने वाले प्रस्तावित कॉरिडोर की पूर्वोत्तर के लिए अहमियत पर भी प्रकाश डाला।

इसमें दो राय नहीं कि विकास की इन तस्वीरों के पूरा होने का मतलब है, क्षेत्र में स्थायी शांति और स्थायित्व। मगर यह नहीं भूलना चाहिए कि केंद्र द्वारा किए जाने वाले विकास कार्यों के प्रति आम लोगों की धारणा अक्सर उलझन वाली रही है। यह हमेशा बेवजह भी नहीं रही है। अरुणाचल प्रदेश की विवादित दिबांग जल विद्युत परियोजना को लेकर केंद्र की मंजूरी ने असम के निचले हिस्से और अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी भाग में लोगों को नाराज किया है। इसके विपरीत जनता की मांग के बावजूद इस क्षेत्र की कई परियोजनाएं समय सीमा खत्म होने के बाद भी पूरी होने का इंतजार कर रही हैं। इन परियोजनाओं में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पूर्व में घोषित परियोजनाएं भी शामिल हैं। हालांकि इन परियोजनाओं को न तो बंद करने की बात है, और न ही अधूरा छोड़ने की। मगर इन्हें पूरा करने में मोदी कितना वक्त लेंगे, यह समय बताएगा।

बहरहाल, अवैध घुसपैठ, भूमि हस्तांतरण समझौता, मूल निवासियों के हितों की रक्षा जैसे कुछ महत्वपूर्ण और भावनात्मक मुद्दे हैं, जिसे नजरंदाज कर कोई भी पार्टी अगर यहां अपना आधार बनाने की कोशिश करती है, तो सफल नहीं हो सकती। लिहाजा भाजपा, खासकर मोदी को अवलिंब इन मुद्दों पर पहल करनी चाहिए, ताकि लोगों में फैली निराशा दूर हो सके।